चींटियों का अद्भुत संसार
चींटियों का संसार बड़ा विचित्र है । संसार के देशों में 140 से भी अधिक किस्म की अनोखी चींटियां पाई जाती हैं । साईबेरिया में आधा इंच लम्बी उड़ने वाली नीले रंग की चींटियां पाई जाती हैं । ये अक्सर मीठे - मीठे फलों का रस चूसती रहती हैं ।
अमेरिका के उत्तरी रेगिस्तान में काले रंग की ऐसी जहरीली चींटियां पाई जाती हैं , जिनसे विष का निर्माण भी किया जाता है। दक्षिण अफ्रीका के जंगलों में फ्रेरिक्सी जाति की लाखों चींटियां अपने समूह में रहती हैं । दरअसल ये नशाखोर होती हैं।
ये नशे के पीछे अपना सब कुछ बर्बाद कर लेती हैं , हां इन चींटियों को ' पियक्कड़ ' नाम से भी जाना जाता है । इन पियक्कड़ चींटियों का नशा भी अजीब है । अफ्रीका की वादियों में गैबरिला नामक एकोडन नस्ल का कीड़ा पाया जाता है । यह लाल रंग का होता है तथा इसका शरीर बिल्कुल चिकना होता है।
चींटियां जब इसके बदन को काटती हैं तो इसके बदन से एक तरह का सुगंधित द्रव निकलना शुरू हो जाता है । इस सुगंधित द्रव में एक तरह का नशा होता है जिसे ग्रहण कर चींटियां अपनी मस्ती में मस्त रहती हैं हां , ये चींटियां इस कीड़े को अपने बिल में खास मेहमान बना कर रखती हैं ।
उसके खाना - खुराक की विशेष देखभाल करती हैं । यहां तक कि उसके बच्चों की भी देख - रेख करती हैं । इस आदर सत्कार के बदले ये कीड़ा इन चींटियों को जब भी आवश्यकता होती है उनका प्रिय ' ड्रिंक ' प्रदान करता है ।
यह मीठा नशीला द्रव इन चींटियों को पतन की ओर इस हद तक धकेलता है कि ये अपना रोजमर्रा का कार्य और स्वयं के अंडों , बच्चों की देखभाल का काम भी नजरअंदाज कर जाती हैं । अपना सारा समय वे कीड़े की सेवा व उसके आस - पास ही डोलते रहने में व्यतीत कर देती हैं ।
चाहे वह उनके लाखों अंडे भी खा जाए तो कुछ नहीं , बस ड्रिंक मिलता रहना चाहिए । इसी तरह की सफेद चींटियां आस्ट्रेलिया के पर्वतों पर भी मिलती हैं , लेकिन ये जहरीले जीव - जन्तुओं का खून चूस कर नशा किया करती हैं । मैडागास्कर में तीन इंच लम्बी चींटियां घने जंगलों में वृक्षों के खोखल में पाई जाती हैं ।
यह किसी भी सोते हुए पक्षी पर एक साथ हमला करती हैं , फिर उसके जिस्म का पूरा खून चूस कर ही दम भरती हैं । खून चूसने के उपरांत इन चींटियों को एक तरह का नशा चढ़ता है और ये अपने स्थान पर आकर दो - तीन दिन तक बेहोश पड़ी रहती हैं । नशा उतरने पर ये पुनः नए शिकार की तलाश में चल पड़ती हैं ।
कोमारा द्वीप की चींटियां तो बड़ी खतरनाक होती हैं । ये जब अपने विशाल समूह में होती हैं तो खड़े वृक्षों तक को चट कर जाती हैं , प्रकृति के लिए यह चींटी कैंसर का काम करती है । यहां के आदिवासी इन चींटियों के हमले से बचने के लिए बन्दर पाल कर रखते हैं क्योंकि ये बन्दर इन चींटियों को बड़े चाव से खाना पसंद करते हैं ।
अलास्का की खाड़ी के कोडिएक , एफोग्नक व श्यक द्वीपों में हरे रंग की चींटियां पाई जाती हैं , ये वृक्षों के पत्तों को चूस कर नशा करती हैं तथा अपने शरीर का रंग गिरगिट की भांति बदल लेती हैं।
क्या चींटियां हमेशा कॉलोनियों बना कर रहती हैं ?
अर्जुन ने पूछा , " मैम क्या चींटियां हमेशा कॉलोनियां बना कर ही रहती हैं ? " मैम ने उत्तर दिया , " हां , वे ऐसा ही करती हैं । चींटियां हमेशा कॉलोनियों में ही रहती हैं । जिस तरह से वे इन कॉलोनियों को व्यवस्थित करती हैं , यह एक बहुत ही उल्लेखनीय बात है ।
चींटियों की बस्तियों में आप लाखों चींटियों को एक साथ रहते देख सकते हैं , और कुछ कॉलोनियां ऐसी भी हैं जिनमें मात्र सोलह चींटियां ही होती हैं । उनकी ये बस्तियां भूमिगत या मिट्टी के बने ऊंचे टीलों में हो सकती हैं । उनकी बस्ती किसी पेड़ पर भी हो सकती है ।
इस नन्हे से कीट की लगभग 2000 प्रजातियां पाई जाती हैं । इनमें से सबसे सामान्य हैं काली तथा लाल चींटियां । इन बस्तियों में रानियां , पंखदार नर तथा मादाएं तथा पंखविहीन मजदूर चींटियां होती हैं । क्या आप जानते हैं कि इनमें बहुत भीषण युद्ध भी होते हैं ।
उनकी लड़ाई छोटी प्रजातियों से होती है जिन्हें वे उनकी बस्तियों से खदेड़ कर अंडों , लारवों तथा संग्रह किए हुए भोजन को छीन लाती हैं । इस तरह छीने गए अंडों तथा लारवों का बड़ी सावधानीपूर्वक पालन - पोषण किया जाता है । जब वे वयस्क चींटियां बन जाते हैं तो उन्हें गुलाम बना लिया जाता है जो जीवनपर्यन्त उनकी सेवा करते हैं ।
चींटियों की एक विशेष किस्म ' ड्राइवर एंट्स ' कहलाती है जो मांस खाती हैं । ये चींटियां मध्य अफ्रीका , दक्षिण अमेरिका तथा दक्षिणी एशिया में पाई जाती हैं । जीवित मांस की तलाश में वे लम्बी कतारों में चलती हैं । सबसे बड़े जानवर भी उस समय असहाय हो जाते हैं जब ' ड्राइवर एंट्स ' उन पर आक्रमण करती हैं तथा काटती हैं ।
यदि वह जानवर किसी जलाशय तक पहुंच कर इन चींटियों को डुबो नहीं देता तो उसके कंकाल में बदलने में कोई समय नहीं लगता । "
वीवर नामक चींटियां अपने लिए टैंट बनाने हेतु पत्तों को आपस में सिल देती हैं । वे अपने लारवों का इस्तेमाल सूइयों एवं धागे के रूप में करती हैं । प्रत्येक चींटी एक ' युवा ' सूंडी को अपने मुंह में पकड़ती है तथा दो पत्तों के सिरों में घुसेड़ देती है । यह सूंडी एक चिपचिपा , रेशमी धागा बनाती है जो दोनों पत्तों को मजबूती के साथ एक - दूसरे के साथ सी देता है ।
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