Math गणित का हमारे जीवन में महत्व
MATH गणित एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है पर इसका महत्व जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि गणित Math क्या है ?
गणित की अनेक परिभाषाएं हैं । उदाहरण के लिए कोई गणित को गणनाओं का विज्ञान कहता है कोई संख्याओं तथा स्थान के विज्ञान के रूप में परिभाषित करता है तथा कोई मापन , मात्रा और दिशा के विज्ञान के रूप में स्पष्ट करता है ।
वास्तव में गणित का शाब्दिक अर्थ है - शास्त्र जिसमें गणनाओं की प्रधानता हो। इस प्रकार गणित के संबंध में दी गई मान्यताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि गणित अंक , अक्षर , चिन्ह आदि संक्षिप्त संकेतों का वह विज्ञान है , जिसकी सहायता से परिमाण , दिशा तथा स्थान का बोध होता है ।
महान वैज्ञानिक गैलीलियो ने गणित के महत्व को स्पष्ट करते हुए , गणित को इस प्रकार परिभाषित किया है - गणित वह भाषा है जिसमें परमेश्वर ने संपूर्ण जगत या ब्रह्मांड को लिख दिया है। अन्य विषयों की अपेक्षा गणित का हमारे दैनिक जीवन से गहरा संबंध है ।
मातृभाषा के अलावा अन्य कोई विषय ऐसा नहीं है जो गणित की तरह हमारे दैनिक जीवन से इतना गहरा संबंध रखता हो । हमारा दैनिक दिनचर्या एवं हमारा व्यवहार पूर्ण रूप से गणित के ज्ञान पर आधारित है ।
गणित के अभाव में हम मनुष्य न तो अपने परिवार को सुचारू ढंग से चला सकता है और न ही समाज में अपने उत्तरदायित्वों को निभा सकता है । इस प्रकार हमारे जीवन का कोई भी पहलू गणित के प्रयोग से अछूता नहीं है । प्रातः उठते ही प्रत्येक व्यक्ति को गणित की आवश्यकता महसूस होती है जैसे कि ठीक समय पर उठ कर ठीक समय पर स्कूल या काम पर जाना ।
बहुत - सी ऐसी दैनिक क्रियाएं हैं जो सही समय पर हो जानी चाहिएं । ये सारी गणनाएं गणित पर ही आधारित हैं । ऐसा नहीं है कि गणित के ज्ञान की आवश्यकता केवल इंजीनियर , उद्योगपति , बैंककर्मी , डाक्टर , गणित - अध्यापक तथा व्यवसाओं से संबंधित व्यक्तियों को ही होती है ।
समाज का छोटे से छोटे व्यक्ति तथा मजदूर , रिक्शा चालक , कुली , सब्जी बेचने वाला , मोची आदि अन्य सभी व्यक्तियों को अपनी रोजी रोटी कमाने तथा अपने परिवार की देखभाल करने के लिए गणित की आवश्यकता होती है । एक गृहिणी को भी , चाहे वह अल्पशिक्षित ही क्यों न हो , पारिवारिक आय और व्यय का हिसाब - किताब रखने के लिए गणित की आवश्यकता होती है ।
सामाजिक जीवन - यापन के लिए गणित के ज्ञान की अत्यधिक आवश्यकता होती है क्योंकि हमारे समाज में जितने भी लेनदेन होते हैं संपूर्ण व्यापार, उद्योग तथा वाणिज्यिक क्रम गणित पर ही आधारित है समाज के विभिन्न अंगों को निकट लाने में सहायक विभिन्न आविष्कारों , सामाजिक कठिनाइयों, आवश्यकताओं आदि में सहायता देने में गणित का बड़ा योगदान है क्योंकि सभी वैज्ञानिक खोजों का आधार गणित विषय ही है ।
गणित को संस्कृति एवं सभ्यता का सृजनकर्ता एवं पोषक भी माना जाता है । रस , छंद , अलंकार संगीत के सभी साज- सामान , चित्रकला और मूर्तिकला आदि । सभी अप्रत्यक्ष रूप से गणित के ज्ञान पर ही निर्भर होते हैं । हमारे कपड़ों के दिन प्रतिदिन सुंदर व नवीन डिजाइन , सुंदर बाग - बगीचे वास्तव में अपनी सरंचना में किसी न किसी रूप में गणित के नियमों का ही पालन करते हैं ।
यदि क्षण भर के लिए गणित को संसार में से हटा दिया जाए तो सोचिए कि सांसारिक स्थिति क्या हो सकती है । सभी प्रकार के होने वाले वाणिज्य व्यापार , बैंकिंग व्यवस्था , बीमा योजनाओं आदि की गति अवरुद्ध हो जाएगी । न हमें रहने के लिए घर मिलेंगे और न ' हम नदियों - दरियाओं को पार करने के लिए पुल बना पाएंगे ।
गणित के ज्ञान के अभाव में न बांध बन पाएंगे और न बिजली की उत्पत्ति होगी । परिणामस्वरूप खेतों की सिंचाई के साधन भी उपलब्ध नहीं हो सकेंगे । ऐसा होने पर संभव है आधुनिक मनुष्य पुरातन काल के मानव जैसा जीवन व्यतीत करने को विवश हो जाए । अतः गणित सुव्यवस्थित ढांचा और संगठन प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है । गणित के अभाव में हमारी जीवन रूपी गाड़ी का महत्वपूर्ण पहिया निकल जाएगा ।
ZERO शुन्य का महत्व
गिनती तथा गणनाओं के लिए हम 10 अंकों पर आधारित अंक प्रणाली का प्रयोग करते हैं । यह प्रणाली स्वतंत्र रूप से कई देशों में लागू है । उदाहरण के लिए गिनती के लिए रोमन प्रणाली लगभग 2000 वर्ष पूर्व विकसित हुई थी जो 10 अंकों पर आधारित है ।
I का चिन्ह 1 का प्रतीक है । V , 5 के लिए , X , 10 के लिए , L , 50 , C , 100 , D , 500 तथा M , 1000 के लिए । इस प्रणाली में कोई संख्या लिखने तथा पढ़ने के लिए कई बार इसमें हमें कुछ जोड़ना तथा कई बार घटाना पड़ता है । इससे किसी प्रणाली को पढ़ना तथा लिखना बोझिल बन जाता है ।
इससे भी बढ़ कर इस प्रणाली में कोई शून्य नहीं है तथा प्लेस वैल्यूज के लिए कोई योजना नहीं है । 1998 दर्शाने के लिए हमें MCMXCVIII लिखना पढ़ता है । रोमनों द्वारा अपनी अंक प्रणाली विकसित करने से काफी समय पूर्व प्राचीन भारत के हिंदुओं ने गणनाओं तथा अंकों के लिए कहीं वैज्ञानिक तथा विकसित प्रणाली तैयार कर ली थी ।
प्राचीन भारतीय गणितज्ञों की जमा अधिक करने वाले अंकों के बारे में बहुत स्पष्ट सोच थी जिससे रोमनों तथा यूनानियों के मुकाबले उन्हें अधिक पेचीदा गणनाएं करने में सहायता मिलती थी । दस तथा सौ के लिए उनके पास अलग से चिन्ह थे । उनकी प्रणाली 9 अंकों तथा शून्य पर आधारित थी ।
भारतीयों ने न केवल बहुत समय पूर्व शून्य का बल्कि डैसिमल सिस्टम ( दशमलव पद्धति ) का भी आविष्कार किया । यह एक बहुत महत्वपूर्ण आविष्कार था और भारतीय गणितज्ञों के शानदार विश्लेषणात्मक दिमाग की गहराई को दर्शाता है । ब्रह्मगुप्त ( 7 वीं शताब्दी ) , महावीर ( 9 वीं शताब्दी ) , तथा भास्कर ( 12 वीं शताब्दी )
जैसे महान भारतीय गणितज्ञों ने इस क्षेत्र में बहुत - सी महत्वपूर्ण खोजें कीं जो नवजागरण तक यूरोपियनों के लिए अनजानी रहीं । अरबों ने यह पद्धति भारतीयों से सीखी जिसे बाद में यूरोप तथा अन्य देशों को पहुंचा दिया गया ।
आधुनिक अंक प्रणाली एक प्लेस - वैल्यू पद्धति है । इसका अर्थ यह है कि किसी अंक का मूल्य किसी संख्या में उसकी स्थिति पर निर्भर करता है । उदाहरण के लिए 9999 में पहले 9 का मूल्य 9000 है , दूसरे का 900 , तीसरे का 90 तथा अंतिम का मूल्य केवल 9 है ।
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