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सरपंच की धूर्तता | एक चालाक सरपंच की कहानी | लालची सरपंच | बाल कहानी

बाल कहानी

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किसी गांव का सरपंच अव्वल दर्जे का धूर्त था वह गांव के लोगों से चुन - चुन कर दोस्ती किया करता । जब दोस्ती घनिष्टता में बदल जाती तो उनके संग भागीदारी में व्यापार किया करता जब बहुत मुनाफा मिलता तो वह अपने पार्टनर को डरा धमका कर भगा दिया करता और यह भी कहता , यदि यह बात किसी से कही तो मुझसे बुरा कोई न होगा । 




अब तक वह कई भोले भाले लोगों को अपना शिकार बना कर लाखों रुपए हड़प चुका था । एक दिन उसकी दोस्ती गांव के रामदयाल नामक किसान से हुई । रामदयाल के पास एक बीघा जमीन थी । सरपंच ने जब पार्टनरशिप में व्यापार की चर्चा उससे की तो वह बड़ा खुश हुआ । 




उसने अपनी तमाम जमीन बेच दी और जमीन के पैसे सरपंच को देते हुए कहा , ये पूरे पांच लाख हैं । आप भी पांच लाख मिला लीजिए और फिर दोनों मिल कर व्यापार शुरू करते हैं। सरपंच के सुझाव के मुताबिक गांव में गुड़ का कारखाना लगाया गया । गुड़ बनते ही किस्मत से भाव दोगुने बढ़ गए । बढ़े भाव को देखकर सरपंच के मन में लोभ समा गया । 




उसने रामदयाल को धोखा देने की चाल चली । जब पूरा गुड़ बिक गया तो सरपंच ने रामदयाल से कहा , " देखो दोस्त । तुम्हें व्यापार करने की सलाह मैंने दी थी । इस कारण व्यापार में जो मुनाफा हुआ उसका तीन चौथाई हिस्सा मैं लूंगा व एक चौथाई तुम्हें मिलेगा । " ' लेकिन तुमने तो व्यापार में पार्टनर की बात कही थी । " 




" सो , तो ठीक है , लेकिन तुम्हें मेरा नियम मानना ही होगा यदि मेरे नियम का उल्लंघन करोगे तो बहुत पछताओगे । " " क्या मतलब ? " रामदयाल ने पूछा । " यही कि तुम्हें एक पैसा भी नहीं मिलेगा । " लेकिन रामदयाल अपनी जिद पर अड़ गया । बोला , " मैं तो बराबर का हिस्सा लूंगा । " दोनों में खूब बहस चली । अंत में सरपंच ने अपनी योजना में रंग भरते हुए कहा , 




" देखो पार्टनर मंदिर के रास्ते पर जो वृक्ष है उस पर देवता का साया है , वह वृक्ष हर बात का जवाब सही ढंग से देता है । क्यों न हम अपने विवाद का निर्णय उसी से ले लें । " अब सरपंच ने ससुराल जाकर अपने बूढ़े ससुर को फुसलाया , " यदि आप मेरी बात मान लेंगे तो मैं आपको दस हजार रुपए दूंगा । 




" दरअसल उसका ससुर भी लोभी था ।  बोला , " बताओ दामाद जी मुझे क्या करना होगा ? " " तुम्हें मेरे साथ गांव चलना होगा । गांव के बाहर मंदिर के रास्ते पर एक पुराना वृक्ष है । उसी में एक बड़ी खोखल भी है , उसी में छिपकर बैठना होगा । मैं अपने पार्टनर को वहां लेकर आऊंगा । जब धन के बंटवारे के संदर्भ में चर्चा करते हुए न्याय की बात कहूँ तो मुझे पार्टनर से तीन चौथाई धन देने की बात कहना । " 




" हां , दामाद जी यह काम तो मैं कर दूंगा । " लोभी ससुर ने मुस्कराते हुए कहा । फिर दोनों घोड़े पर बैठ कर गांव की ओर चल दिए । जब दोनों गांव की सीमा में प्रवेश करने लगे तो सरपंच ने कहा- ससुर जी । कल भोर में आकर इसी वृक्ष की खोखल में छिप जाना । दूसरे दिन भोर में ससुर की खोखल में आकर बैठ गया। 




थोड़ी देर उपरांत सरपंच और रामदयाल पेड़ के नजदीक आए । उनके साथ गांव कई लोग भी थे । लोग पेड़ के फैसले सुनने के लिए बेताब थे । अब मौका देख कर सरपंच ने कहा , वृक्ष देवता । व्यापार में मुझे और मेरे पार्टनर को लाभ हुआ है । कृपया आप निर्णय दे दोनों में धन का बंटवारा किस तरह हो ? यह सुनकर चारों तरफ सन्नाटा छा गया । 




गांव के लोग आंखें फाड़ - फोड़ कर पेड़ और देखने लगे । अचानक थोड़ी देर में वृक्ष से आवाज गूंजी , " मेरा फैसला यह है कि सरपंच साहब को तीन चौथाई धन मिलना चाहिए क्योंकि गुड़ का कारखाना लगाने का सुझाव सरपंच साहब ने दिया था । " गांव के लोगों ने आज तक किसी वृक्ष को बोलते नहीं देखा था । सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ । 




बेचारा रामदयाल भी की आश्चर्य में डूबा था कि इस ने यह कैसा फैसला सुनाया । पेड़ के खोखल को देख कर रामदयाल के मस्तिष्क में बात उपजी । उसने सोचा इस सरपंच ने जरूर मेरे साथ कोई गहरी चाल चली है , जिसकी बदौलत यह मुझे धोखा देकर धन ऐंठन चाहता है । अब रामदयाल ने हाथ जोड़कर कहा, 




" हे वृक्ष देवता मुझे आपका फैसला मंजूर हैं , लेकिन भविष्य में आप किसी गरीब के साथ ऐस अन्याय न करें इसलिए मैं एक विशेष प्रबंध करने जा रहा हूं । " अब रामदयाल ने पेड़ के खोखल में सूखी घास डाली और आग लगा दी । आग लगने से पेड़ के खोखल में छिपा सरपंच का ससुर रोते बिलखते बाहर निकल आया गांव वालों के समक्ष हाथ जोड़कर बोला " मुझे बचा लो । 




मेरा दामाद अव्वल दर्जे का झूठा है । इसके बहकावे में आकर मैंने यह कदम उठाया था । " अपनी पोल खुलते देखकर सरपंच भागने लगा , लेकिन गांव के लोगों ने पकड़ कर उसकी जम कर मुरम्मत की । तब कहीं जाकर उसने यह स्वीकार किया , " मैंने अब तक कई लोगों को ठगा है ।" 



जब उसने लोगों को ठगा धन वापस दिया तब ही उसे माफ किया गया। अब गाँव का नया सरपंच रामदयाल बन चुका था।   - कमल सौगानी



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सरपंच की धूर्तता | एक चालाक सरपंच की कहानी | लालची सरपंच | बाल कहानी Reviewed by Jeetender on October 30, 2021 Rating: 5

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