कोहरा क्या होता है ?
सर्दियों में आप जब सुबह - सुबह घर से बाहर जाते हैं तो कई बार हल्के - हल्के बादल धरती से कुछ ऊपर छाए रहते हैं । इस धुएं जैसे आवरण को धुंध या कोहरा कहते हैं । ऐसे में जब आपको दूर - दूर तक कुछ दिखाई नहीं देता तो आपके मन में एक प्रश्न जरूर उठता होगा कि आखिर वह धुआं - सा क्या है और कैसे बनता है ?
आइए आपको हम बताते हैं : कोहरा एक प्रकार का बादल होता है , जो पृथ्वी के सम्पर्क में आ जाता है । कोहरा पृथ्वी की सतह के पास की वायु में उपस्थित पानी के वाष्प के संघनन से बनता है । जब वायु में वाष्पकणों की मात्रा इतनी हो जाती है कि किसी निश्चित तापमान पर अधिक जलवाष्प इसमें नहीं समा सकते तो यह पानी , बर्फ के बहुत छोटे - छोटे कणों में बदल जाता है ।
भारत में बादल फटने की दुर्घटनाएं होती ही रहती हैं । ये अधिकतर पर्वतीय क्षेत्रों में ही होती हैं । सन् 1997 में शिमला के पास चडगाव , 2000 में किन्नौर जिले तथा सतलुज नदी के ऊपरी कांठे पर , 2001 में कांगड़ा बैजनाथ गांव पर , 1970 में उत्तरांचल ( तब उ.प्र . ) में बादल फटने की दुर्घटनाएं हुई थीं ।
पूर्व में भी बादल फटने की मिसालें मिलती हैं । 1876 में मेघालय में खासी और जयन्तिया पर्वत श्रेणी में 24 घंटों में 40-41 इंच बरसात हो गई थी । 1995 में चेरापूंजी में एक ही दिन में 60.47 इंच वर्षा हुई थी । ऐसा लगा था मानो किसी ने हौज पाइप खोल दिया है । 1941 में सूरत जिले के धरमपुर गांव में 38.8 , 1949 में मुंबई में 26.9 इंच लगातार वर्षा हुई थी ।
ये सभी बादल फटने की घटनाएं ही थीं । 1988 में किन्नौर जिले में सलिडन गांव में सैंकड़ों लोग मारे गए थे । सन् 2000-2003 के बीच 4 घटनाओं में 600 से अधिक लोग प्राकृतिक आतंक का शिकार बने थे । बादल फटने के कारणों की वैज्ञानिक अपने मतानुसार व्याख्या करते हैं । मौसम विभाग के अधिकारी बताते हैं कि आकाश में पानी भरे बादल एकाएक नीचे गिरते हैं ।
ये अचानक किसी एक ही स्थान तक मर्यादित होते हैं । कई बार नीचे से ऊपर हवा का दबाव होने से वह बादल को बरसने से रोक देती है । मैदान से बढ़कर बादल पर्वतीय हवा से टकराते हैं । तब बिजली - सी कड़कड़ाहट की आवाज होती है । यह बरसात ही है परंतु नीचे की हवा के दबाव के कारण बादल ऊपर ही रहता है और बादल में पानी इकट्ठा हो जाता है ।
ज्यों ही बादल कम होता है बादल अपना दरवाजा सा खोल देता है और बरसात विनाश का दृश्य उपस्थित कर देती है । उससे भयंकर जान और माल की हानि होती है । बादल फटने को रोकने का मनुष्य के पास कोई इलाज नहीं । अकाल मौत का दूसरा नाम बादल फटना है । यह प्राकृतिक विनाशलीला ही है ।
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