प्राचीन दार्शनिकों के अनुसार ऐसा माना जाता था कि प्रत्येक पदार्थ बहुत छोटे कणों से मिल कर बना होता है लेकिन वैज्ञानिक जानकारी के अभाव में वे इस बात को प्रयोगों द्वारा साबित नहीं कर सकते थे । जॉन डाल्टन पहले ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने 1803 में आणविक सिद्धांत को सामने रखा ।
उनके सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक पदार्थ बहुत छोटे कणों से बना होता है जिन्हें अणु कहा जाता है । अणु अर्थात ' एटम ' एक यूनानी शब्द है जिसका अर्थ है ' जिसे काटा नहीं जा सकता हो । ' यहां ' ए ' का अर्थ है ' नो ' यानी नहीं तथा ' टॉम ' का ' कट ' यानी काटना । अणु को कभी भी बनाया नहीं जा सकता और न ही नष्ट किया जा सकता है ।
अणु की बनावट क्या है ?
एक समान तत्व के अणु एक जैसे होते हैं लेकिन विभिन्न तत्वों के अणु अलग - अलग तरह के होते हैं । डाल्टन के ये सभी दावे आधुनिक शोधकर्ताओं द्वारा गलत साबित कर दिए गए हैं । अब यह एक स्थापित तथ्य है कि अणु किसी पदार्थ का सबसे छोटा कण नहीं है । दरअसल यह आगे और बहुत छोटे कणों से बना होता है ।
अणु की बनावट की तुलना हमारी सौर प्रणाली से की जा सकती है । सूर्य के गिर्द जैसे ग्रह चक्कर लगाते हैं , ऋणात्मक रूप से आवेशित ' इलैक्ट्रोन्स ' घनात्मक रूप से आवेशित ' न्यूक्लियस ' के गिर्द अलग-अलग कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं । अणु का लगभग सारा पिंड न्यूक्लियस की ओर संकेंद्रित होता है ।
न्यूक्लियस दो तरह के कणों से बना होता है जिन्हें प्रोटोन्स तथा न्यूट्रोन्स कहा जाता है । प्रोटोन्स घनात्मक रूप से आवेशित कण होते हैं जबकि न्यूट्रोन्स तटस्थ या न्यूट्रल कण होते हैं । प्रोटोन का पिंड लगभग न्यूट्रीन के पिंड के बराबर ही होता है । प्रोटोन्स तथा न्यूटोन्स न्यूक्लियस में कम रेंज की आकर्षण आणविक शक्तियों से बंधे होते हैं ।
इलैक्ट्रॉन्स न्यूक्लियस के गिर्द अलग - अलग चक्राकार या वर्तुलाकार कक्षाओं में घूमते रहते हैं । इलैक्ट्रोन्स की संख्या, जो पहली कक्षा में जा सकते हैं दो है , दूसरी में आठ तथा तीसरी मैं अठारह , चौथी में इनकी संख्या बत्तीस होती है और इसी तरह यह संख्या बढ़ती जाती है । सबसे बाहरी कक्षा में स्थित इलैक्ट्रोन्स ' को वालेन्स ' इलैक्ट्रॉन्स कहा जाता है ।
किसी भी तत्व के गुणधर्म वालेन्स इलैक्ट्रोन्स की संख्या पर निर्भर करते हैं । जब अणु को ऊर्जा प्रदान की जाती है तो सबसे बाहर वाले इलैक्ट्रोन इसे सोख लेते हैं तथा और बाहरी कक्षा की ओर आकर्षित हो जाते हैं । जब वे वापस अपनी मूल कक्षा में वापस गिरते हैं तो उत्सर्जन या विकिरण उत्पन्न होता है ।
आज अणु को तोड़ना संभव हो गया है । एटम बम इस नई खोज का परिणाम है । एटम को तोड़ने की प्रक्रिया को ' न्यूक्लियर फिशन अर्थात नाभिकीय विखंडन कहा जाता है जिसका इस्तेमाल आणविक ऊर्जा संयंत्रों में विद्युत ऊर्जा बनाने के लिए भी किया जाता है ।
जॉन डाल्टन का परमाणु सिद्धांत
जॉन डाल्टन |
अणु या मॉलीक्यूल्स किसी पदार्थ को बनाते हैं । अणु सदैव सचल रहते हैं । कभी स्थिर नहीं होते । भौतिक विज्ञान पदार्थ तथा ऊर्जा के साथ संबंधित है । एक भौतिक विज्ञानी के लिए विश्व पदार्थ तथा ऊर्जा का ही दूसरा नाम है और अणु किसी तत्व का सबसे छोटा भाग है जो किसी रासायनिक प्रतिक्रिया में भाग लेने में सक्षम होता है ।
पदार्थ ठोस , तरल या फिर गैसीय रूप में हो सकता है। भौतिक विज्ञान का अध्ययन प्राचीन यूनान में प्रारंभ हुआ था। यूनानियों का मानना था कि पदार्थ नन्हे अविभाज्य अणुओं से बना होता है। शब्द ' एटम' या अणु का जन्म स्थान भी यूनान ही है जिसका अर्थ होता है अविभाज्य अर्थात जिसे तोड़ा या विभाजित न किया जा सके ।
उनका मानना था कि पदार्थ अणुओं से बनते हैं परन्तु उन्होंने कभी इसके साथ परीक्षण नहीं किया था । यह बस एक सिद्धांत तथा दर्शन था । एक अंग्रेज वैज्ञानिक जॉन डाल्टन थे जिन्होंने सबसे पहले 1803 में पदार्थ की आणविक थ्योरी ( सिद्धांत ) सामने रखा । उन्होंने नन्हे अणुओं से बने बहुत से ठोस , तरल तथा गैसीय पदार्थों का अध्ययन किया ।
उन्होंने यह दावा किया कि विभिन्न पदार्थों के अणुओं के गुण अलग - अलग होते हैं तथा उनका भार भी अलग - अलग होता है फिर भी अणु के कार्य तथा प्रवृत्ति के बारे में सही जानकारी नहीं मिल पाई । अर्नेस्ट रदरफोर्ड नामक एक अंग्रेज भौतिक शास्त्री ने अपना अणु में नाभिकी ( न्यूक्लियस) का सिद्धांत प्रस्तुत किया ।
उन्होंने 1919 में यह भी आविष्कार किया कि किस तरह नाइट्रोजन को आक्सीजन न्यूक्लियर में बदला जा सकता है ।इलैक्ट्रॉन के आविष्कार ने यह सिद्ध किया कि इसका परिमाण एक अणु से कम होता है ।
आज हम जानते हैं कि एक अणु में इलैक्ट्रॉन्स , प्रोटोन्स न्यूट्रॉन्स शामिल होते हैं तथा परन्तु आज भी अणु एक रहस्य ही बना हुआ है क्योंकि इसके बारे में अभी भी सब पता नहीं है।
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