सूर्य
यूं तो आकाश में असंख्य तारे हैं , पर सूर्य एक ऐसा तारा है जो न सिर्फ पृथ्वी के समस्त प्राणियों को जीवन देता है बल्कि अन्य दैनिक क्रियाकलापों के संपादन में भी सहायक है । सूर्य ही पृथ्वी पर दिन - रात , मौसम परिवर्तन एवं वर्षा होने में सहायक है । सच कहां जाए तो सूर्य पृथ्वी पर रहने वाले समस्त प्राणियों का पालनकर्त्ता है ।
शायद यही वजह है कि विश्व के अनेक भागों में आज भी लोग सूर्य की देवता की तरह पूजा करते हैं । सूर्य के पास कोई दैवीशक्ति हो या न हो , फिर भी उसकी महत्ता आज के वैज्ञानिक युग में अति महत्वपूर्ण है । इसका कारण है- सूर्य के पास ऊर्जा की विशाल राशि ।
सम्पूर्ण ब्रह्मांड में अपना विशिष्ट महत्व रखने वाला सूर्य आखिर चमकता कैसे है ? यह सवाल जितना अहम है उतना ही विचित्र एवं रहस्यमयी भी है । आखिर उसके पास ऊर्जा की इस विशाल राशि की आपूर्ति निरंतर कहां से होती रहती है , जिससे वह एक पल बिना . रुके या बुझे लगातार जलता और चमकता रहता है ।
काफी समय पहले लोग मानते थे कि सूर्य जलते हुए कोयले का विशाल गोला है । वास्तव में देखने पर लगता ऐसा ही है लेकिन यह सत्य नहीं । सूर्य का जितना द्रव्यमान है और जितने समय से यह जलता आ रहा है उससे स्पष्ट है कि यदि वास्तव में यह जलते हुए कोयले का गोला होता तो वह बहुत पहले ही जलकर खत्म हो चुका होता । दूसरी धारणा के अनुसार सूर्य हाइड्रोजन गैस का जलता हुआ गोला है ।
इस मान्यता के अनुसार हाइड्रोजन गैस के जलने से सौर ऊर्जा की उत्पत्ति होती है । यह सिद्धान्त मुख्यतः इस बात की जानकारी के आधार पर दिया गया कि सूर्य में मुख्यतः हाइड्रोजन गैस की प्रधानता है लेकिन यह सोचने योग्य है कि हाइड्रोजन गैस तभी जल कर ऊर्जा दे सकती है जब वहां ऑक्सीजन हो ।
यदि इस स्थिति को नजर अंदाज भी कर दिया जाए । तो यह असंभव है कि हाइड्रोजन के दहन से ही ऊर्जा की इतनी विशाल राशि उत्पन्न हो सके । इसके बाद इस बात को समझने के लिए कि तारे कैसे नाभिकीय दहन द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करते हैं क्वांटम भौतिकी द्वारा रेडियोधर्मिता की व्याख्या की गई ।
इस महत्वपूर्ण खोज को बिना इस प्रसंग के प्रयोग में लाया गया कि तारों पर क्या घटित होता है । सन् 1928 ई . में गैमो ने ' क्वांटम यांत्रिक सूत्र ' की खोज की । इसके बाद सन् 1938 में नाभिकीय क्रियाओं का परीक्षण करके हेंस बेथे ने यह पता लगाया कि तारों के आंतरिक भाग में हाइड्रोजन का संलयन होता है ।
यानी नाभिक आपस में जुड़ जाते हैं । जिससे हीलियम का निर्माण होता है । सूर्य मैं हाइड्रोजन गैस के पाए जाने के प्रमाण पहले ही मिल चुके थे । अतः इस सिद्धांत को बल मिला । बाद में जाकर इसी आधार पर ही जर्मनी के भौतिक शास्त्री हेंस बेथे ने यह बतलाया कि सूर्य की इस विशाल राशि एवं उसके चमकने की प्रमुख वजह नाभिकीय संलयन ही है ।
हेंस बेथे ने सूर्य के चमकने के पीछे दो प्रक्रियाओं को जिम्मेदार ठहराया । पहली प्रक्रिया वह है जिसमें हाइड्रोजन से हीलियम बनती है । इसे प्रोटीन - प्रोटॉन ( P - P ) श्रृंखला कहा जाता है । दूसरी प्रक्रिया , CNO चक्र कहलाती है जो सूर्य से भी बड़े तारों के लिए अति महत्वपूर्ण है ।
संक्षेप में इतना समझ लेना जरूरी है कि सूर्य के केंद्र में जो हाइड्रोजन के नाभिक होते हैं वे बहुत ही तीव्र गति से गमन करते हैं । यही नाभिक आपस में जब जुड़ जाते हैं तो वे एक भारी तत्व के नाभिक का निर्माण करते हैं । नाभिकीय संलयन की इस प्रक्रिया में ऊर्जा की विशाल राशि उत्पन्न होती है जो सूर्य के चमकने का प्रमुख कारण है ।
"यदि हम सूर्य में से एक टुकड़ा काट सकें तो हम इसकी सतह के नीचे हाईड्रोजन की परतें देखेंगे । इसमें सूर्य कलंक तथा धधकती गैस की विशाल धाराएं जिन्हें प्रोमिनॅसेज कहा जाता है और जो आग की मेहराबें बनती हैं , मौजूद होती हैं।"
अब तक सूर्य के चमकने के पीछे जितने भी सिद्धान्त और तर्क दिए गए , उनमें इसी सिद्धान्त को सबसे अधिक सही एवं विश्वसनीय माना जाता है । अतः हम यह कह सकते हैं कि सूर्य के चमकने का कारण है -'नाभिकीय संलयन ' ।
एक नजर में:-
"सूर्य ने लगभग 5 अरब वर्ष पहले आकाश चमकना शुरू किया । यह अंतरिक्ष में घूमती गैसों तथा धूल के बादलों से बना है । धीरे - धीरे यह बादल छोटा और घना होता गया । जब बादल सिकुड़ा , इसका भीतरी भाग गर्म हो गया । अंततः यह इतना अधिक गर्म हो गया कि यह चमकना शुरू हो गया और इस तरह सूर्य का जन्म हुआ । बाकी के बादल ने सौर प्रणाली को बनाया जिसमें ग्रह , चंद्रमा , क्षुद्रग्रह तथा धूमकेतु शामिल हैं ।"
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