स्पेस सूट क्या है रोचक जानकारी | स्पेस सूट की कीमत करोड़ों में क्यों होती है | स्पेस सूट के बिना अंतरिक्ष में क्या होगा?
दोस्तों नीले आकाश की ओर देखना हर किसी को अच्छा लगता है। हम बचपन से आकाश में चांद सितारों को देख-देख कर बड़े हुए हैं। बचपन से ही हमारे अंदर चांद सितारों को नजदीक से देखने की इच्छा होती है। कुछ सौभाग्यशाली लोग होते हैं जिनको आकाश की गहराई में जाने का और नजदीक से चांद तारों को देखने का मौका मिल जाता है।
दोस्तों आपने देखा होगा जब कोई विज्ञानिक अंतरिक्ष यात्रा पर निकलता है तो वह एक खास तरह का सूट पहनकर जाता है । यह सूट मुख्यत: सभी अंतरिक्ष यात्रियों ने पहन रखा होता है और सभी एक जैसे ही दिखाई देते हैं । इस सूट को पहनने के बाद अंतरिक्ष यात्री एक रोबोट की तरह दिखाई देते हैं।
अगर आप यह सोच रहे हैं कि यह उनकी कोई खास यूनिफॉर्म होगी तो आप गलत है। यह कोई यूनिफॉर्म नहीं है बल्कि यह एक स्पेशल सूट होता है जिसमें कई तरह के उपकरण तथा मशीन लगे होते है। यह प्राय सफेद रंग का सूट होता है । यह सूट बहुत भारी होने के साथ-साथ बहुत महंगा भी होता है ।
इसे पहनने में अंतरिक्ष यात्रियों को घंटों का समय लग जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि यह सूट कई भागों में अलग-अलग होता है और इसे फिट करने में सहायक अंतरिक्ष कर्मियों को बहुत मेहनत करनी पड़ती है। इस सूट को पहनते समय भूल की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए क्योंकि इसकी एक कमी अंतरिक्ष यात्री के मृत्यु का कारण भी बन सकती है। यह सूट कई उपकरणों से युक्त होने के कारण इसका मूल्य कई करोड़ों मैं होता है।
अंतरिक्ष ठंडा हो या गरम दोनों ही परिस्थितियां एक अंतरिक्ष यात्री के लिए असहनीय और घातक होती हैं सूर्य की रोशनी में अंतरिक्ष का तापमान 120 डिग्री सेल्सियस और अंधेरे में इस का तापमान घटकर माइनस 100 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।
हम जानते हैं कि पृथ्वी के ऊपर का वातावरण इसके प्रत्येक वर्गमीटर पर एक बड़ी गाड़ी के बराबर दबाव डालता है । इसका पता इसलिए नहीं चलता क्योंकि हमारे शरीर के भीतर तथा बाहर यह दबाव एक समान होता है परन्तु उदाहरण के तौर पर यदि धातु के एक बर्तन के भीतर की हवा को इसके भीतर उबलते पानी द्वारा बाहर निकाल दिया जाए तो बर्तन इस दबाव के कारण पिचक जाएगा ।
इसी तरह अंतरिक्ष में अप्रति रक्षित हुआ एक अतंरिक्ष यात्री न केवल फूल कर मर जाएगा । बल्कि उसका खून भी उबलने लगेगा जिस तापमान पर तरल उबलते हैं वह वातावरणीय दबाव पर निर्भर करता है । 9 किलोमीटर की ऊंचाई पर पानी 74 डिग्री सैंटीग्रेड के तापमान पर उबलने लगता है और 19 किलोमीटर से अधिक ऊंचाई पर खून शरीर से कम तापमान पर उबलने लगता है ।
शून्य दबाव पर अंतरिक्ष यात्री का खून एकदम जानलेवा फोम ( झाग ) में परिवर्तित हो जाएगा । इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए अंतरिक्ष यात्रियों के सूट इस तरह डिजाइन किए जाते हैं ताकि उन्हें यात्राओं के दौरान अंतरिक्ष में विद्यमान खतरों से बचाया जा सके । अंतरिक्ष के खतरों में अत्यधिक तापमान , खतरनाक विकिरण , तेजी से घूमती हुई वस्तुएं तथा शून्य ( वैक्यूम ) आदि शामिल हैं । स्पेस सूट मैंस मैनूवरिंग यूनिट ( एम.एम.यू ) कहा जाता है ।
इस का कपड़ा बहुत - सी परतों का बना होता है जिनमें से प्रत्येक का अपना एक उद्देश्य होता है । भीतरी परतों में से एक तापमान को नियंत्रित करता है । इसे पहन कर अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष यान को छोड़ सकते हैं तथा स्वतंत्र रूप से अंतरिक्ष में उड़ सकते हैं । इसमें ऑक्सीजन गैस के लिए भी व्यवस्था होती है । प्रत्येक सूट में एक आधारभूत लाइफ स्पोर्ट प्रणाली होती है ।
इसमें पर्याप्त मात्रा में पानी तथा ऑक्सीजन रखी जा सकती है जिनकी सहायता से अंतरिक्ष यात्री कई घंटों तक अतंरिक्ष में ' चहलकदमी ' कर सकते हैं । स्पेस सूट में लिक्विड कूलिंग तथा टीलेशन प्रणाली होती है । दरअसल प्रत्येक सूट बहुत से अलग - अलग टुकड़ों से बना होता है । प्रत्येक टुकड़े को आकार के हिसाब से बनाया जाता है । अंतरिक्ष यात्री जिसमें वह अच्छे से फिट हो सके ।
M.M.U के संबंध में एक अत्यंत रोचक तथ्य है इसका भार । पृथ्वी पर इसका भार लगभग 158 किलोग्राम होता है परन्तु इसे अतंरिक्ष में प्रयोग किया जाता है तो यह अंतरिक्ष यात्री को बड़े आराम से चलने - फिरने में सहायता करता है । ऐसा इसलिए क्योंकि अंतरिक्ष में स्थिति भारविहीनता की होती है । अतः स्पेस सूट एक अंतरिक्ष यात्री के लिए जीवनरक्षक उपकरण होता है ।
पृथ्वी पर हम चारों ओर से ऑक्सीजन से धिरे हुए होते हैं। लेकिन धरती से दूर ब्रह्मांड में अंतरिक्ष यात्री बनावटी सांसो पर जीवित रहते हैं। बिना स्पेस सूट के हम अंतरिक्ष में केवल 15 मिनट में ही बेहोश हो जाएंगे क्योंकि वहां ऑक्सीजन है ही नहीं और हवा का दबाव बहुत ही कम है ।अंतरिक्ष यात्रियों को ब्रह्मांड में मौजूद रेडिएशन को भी झेलनी पड़ती है जिसका असर उनके सेहत पर पड़ता है इसीलिए स्पेस सूट के बिना अंतरिक्ष में जाना असुरक्षित ही नहीं बल्कि जानलेवा है।
स्पेस सूट मॉडर्न इंजीनियरिंग की एक बेमिसाल टेक्नोलॉजी होने के साथ-साथ अंतरिक्ष में मानव जाति का भविष्य भी है।आइए हम स्पेस सूट के टेक्नोलॉजी को समझें है । एक स्पेस सूट में ऐसा क्या क्या होता है जो अंतरिक्ष यात्री को प्रोवाइड करवाता है सबसे जरूरी है कि हमें अंतरिक्ष के कम दबाव से सुरक्षित रखे जिसके लिए यह स्पेस सूट के अंदर एक प्रेशराइज एनवायरमेंट क्रिएट करता है और साथ ही इस में ऑक्सीजन की सप्लाई और कार्बनडाई ऑक्साइड के निकालने की व्यवस्था भी होती है।
अंतरिक्ष में सूर्य की अत्याधिक गर्मी और अंधेरे में अत्याधिक सर्दी से बचने के लिए इस सूट के अंदर टेंपरेचर भी एडजस्ट किया जा सकता है और साथ ही इसमें पेशाब करने और पानी पीने की व्यवस्था भी होती है। स्पेस सूट को तैयार करने में और शोध करने में वैज्ञानिकों ने बहुत मेहनत की है।
स्पेस सूट का आविष्कार आज से 80 साल पहले किया गया था और यह उन पायलटों के लिए किया गया था जो अपने एयरक्राफ्ट को बहुत ऊंचाई तक ले जाते थे । पायलट जितनी ऊंचाई पर जाते उतना ही हवा पतला होता जाता जिससे पायलटों को सांस लेने में प्रॉब्लम होती थी और अपने शरीर को सपोर्ट देने के लिए एक सूट की आवश्यकता महसूस होने लगी।
इसके बाद 50 से 60 के दशक में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच में अंतरिक्ष की होड़ शुरू हो गई तो और बेहतर सूट बनने लगे नासा ने जो मरकरी मिशन के लिए स्पेस सूट बनाया था वह सिल्वर कलर का था उनका मानना था कि इससे सूर्य की घातक किरणें रिफ्लेक्ट हो जाएंगे नासा के जैमिनी मिशन के दौरान स्पेस सूट और भी बेहतर और नई टेक्नोलॉजी के साथ बनने लगे।
वजह यह था कि अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष से बाहर निकलकर चहल कदमी करनी थी। स्पेस सूट के विकास में सबसे बड़ी छलांग अमेरिका के अपोलो मिशन को माना जाता है जिसमें अंतरिक्ष यात्री चांद की सतह पर उतरे थे । इस मिशन में जो स्पेस सूट था उसमें 8 घंटे काम करने के लिए बैटरी, हवा, और पानी की व्यवस्था की गई थी । स्पेस सूट कोई मामूली सूट नहीं होता है । इसके अंदर एक ए. सी. कंप्यूटर, पीने का पानी, टॉयलेट करने की व्यवस्था और बैटरी शामिल होता है ।
इसका वजन 56 किलो का होता है और इसके अंदर का प्रेशर 4.3 पी.एस.आई पर मेंटेन किया जाता है। यह सूट एक बार में 8 घंटे के लिए काम में लाया जा सकता है। यह सूट कुछ खास मेटेरियल का बना होता है। नासा के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष का अध्ययन करने के बाद ही इस सूट का विकास किया है। इसे पहनना भी एक जटिल प्रक्रिया है।
सबसे नीचे अंतरिक्ष यात्री एक इनर लेयर पहनते हैं जो नायलॉन की बनी होती है। इसमें एक पानी की ट्यूब होती है जिसमें पानी 40 से 50 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर घूमता रहता है जो अंतरिक्ष यात्री के शरीर के तापमान को बनाए रखता है। इसके बाद मुख्य स्पेस सूट को पहना जाता है। सूट में कई लेयर होते है । वाटरप्रूफ लेयर जो की नमी आदि से बचाता है।
ब्लैडर लेयर जो प्रेशर मेंटेन करती है। बुलेट प्रूफ लेयर भी होती हैं। यह लेयर अंतरिक्ष में तैर रहे अंतरिक्षीय मलवे से बचाती है जोकि गोली की रफतार से अंतरिक्ष में घूम रही होती है । अब आता है हेलमेट और कम्युनिकेशन सिस्टम्स कम्युनिकेशन कैरियर असेंबली हेलमेट पहनने से पहले पहना जाता है और इसमें एयरफोन होने के साथ-साथ माइक्रोफोन भी होता हैं जो अंतरिक्ष यात्री के कम्युनिकेशन में मदद करता हैं।
हेलमेट में दो शीशे लगे रहते हैं पहला वाला सूर्य से निकलने वाली चकाचौंध रोशनी से आंखों की हिफाजत करता है और अंदर वाला हवा को रोककर रखता है। हेलमेट पर लाइट और एक शक्तिशाली कैमरा भी लगा होता है जो नीचे बैठे हुए वैज्ञानिकों को हमेशा अपडेट देता रहता है की अंतरिक्ष यात्री क्या देख रहा है और वह क्या काम कर रहा है। स्पेस सूट का आखरी और इंपॉर्टेंट कॉम्पनेंट होता है लाइफ सपोर्ट सिस्टम्स
जिसमें वह सब होता है जो स्पेस में जिंदा रखने के लिए जरूरी होता है। इस बैकपैक में ऑक्सीजन सिलेंडर और बैटरी के साथ-सथ कार्बन डाइऑक्साइड रिमूविंग सिस्टम, कूलिंग सिस्टम और कम्युनिकेशन इक्विपमेंट होता है और इसके सारे कंट्रोल स्पेस सूट की छाती पर होते हैं इसे कंट्रोल मॉड्यूल कहते हैं। इन सभी महत्वपूर्ण कॉम्पोनेंट को मिलाकर एक स्पेस सूट तैयार किया जाता है। यह स्पेस यात्रियों के लिए जीवन रक्षक सूट होता है इसके बिना अंतरिक्ष में यात्रा करना असंभव है।
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