सदाबहार राज कपूर और नरगिस | इनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता | लाखों में एक अभिनेता
वहां राजकपूर ने साफ सफाई से लेकर क्लैप ब्वाय के रूप में भी काम किया लेकिन शर्मा जी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और मधु बाला के साथ ' नीलकमल ' में मुख्य भूमिका सौंपी अगले ही वर्ष सन् 1948 में अपने बैनर आर.के. के तले उन्होंने ' आग ' बनाई ।
इस फिल्म के निर्देशक और नायक वह स्वयं थे । नई शैली में पेश की गई इस फिल्म में बाहरी और आंतरिक सौंदर्य के बीच अंतर का चित्रण किया गया था । सन् 1949 में महबूब की ' अंदाज ' आई । इस फिल्म ने उन्हें सितारों की पंक्ति में बैठा दिया । उसी वर्ष ' बरसात ' भी आई और वह प्रथम श्रेणी के निर्देशकों में शामिल हो गए ।
इस फिल्म के साथ ही फिल्म जगत में शंकर - जयकिशन , शैलेंद्र और हसरत जयपुरी ने प्रवेश किया । राजकपूर फिल्म की हर विधा में माहिर थे । अभिनय में उन्होंने दिलीप कुमार और देवानंद के साथ मिल कर भारत के तीन सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में अपना नाम दर्ज करवाया ।
सन् 1951 में उनकी ' आवारा ' आई । देश ही नहीं विदेशों में भी इस फिल्म ने धूम मचाई । राजकपूर का चार्ली चैप्लिन रूप लोगों को खूब पसंद आया । इस रूप को उन्होंने कई फिल्मों में दोहराया । श्री 420 ' ' अनाड़ी ' , ' तीसरी कसम ' , ' जागते रहो ' , ' जिस देश में गंगा बहती है ' , ' संगम ' और ' मेरा नाम जोकर ' में उन्होंने एक भोले भाले नायक की छवि को पर्दे पर साकार किया ।
उनके द्वारा निर्देशित ' बॉबी ' , ' प्रेम रोग ' और ' राम तेरी गंगा मैली ' सुपर हिट रहीं । वह अपनी फिल्मों नारी पात्रों को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ फिल्माते थे । उनकी ज्यादातर फिल्में सामाजिक सरोकार रखती थीं । उन्होंने आम आदमी का मनोरंजन भी किया और उन्हें संदेश भी दिया ।
सन् 1988 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया । अगले वर्ष उनका देहांत हो गया ।
नरगिस ( 1 जून ,1929 )
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महबूब खान ने उन्हें अपनी एक फिल्म ' तकदीर ' में लिया और उसके बाद नरगिस ने पीछे मुड़कर नहीं देखा । उन्हें भारतीय फिल्मों की पहली स्टार अभिनेत्री माना जाता है । लगभग 50 फिल्मों में विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं निभा कर उन्होंने अपने संवेदनशील अभिनय का लोहा मनवा लिया था।
अपने समय के दिग्गज अभिनेताओं दिलीप कुमार और राज कपूर के साथ उन्होंने सबसे ज्यादा काम किया । ' अंदाज ' में इन तीनों के अभिनय ने दर्शकों का मन मोह लिया था । राज कपूर के साथ उनकी जोड़ी ने फिल्मों में नए कीर्तिमान स्थापित किए । ' आग ' , ' आवारा ' , ' अनहोनी ' , ' बरसात ' , ' श्री 420 ' आदि फिल्मों में इस जोड़ी को देश - विदेश के युवाओं में बेहद लोकप्रिय बनाया ।
नरगिस एक ही किस्म की भूमिकाओं तक सीमित नहीं रहीं । उन्होंने संवेदनशील ' जोगन ' , दोहरी भूमिका वाली ' अनहोनी ' , हल्की - फुल्की कॉमेडी ' मिस इंडिया ' , दिमागी रूप से रोगी लड़की की भूमिका वाली ' रात और दिन ' तथा क्लासिक का दर्जा पा चुकी ' मदर इंडिया ' में अपनी अदाकारी के जौहर दिखाए ।
' मदर इंडिया ' से तो वह विश्व प्रसिद्ध हो गईं । कार्लोयवैरी फिल्म समारोह में श्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीत कर विदेशी पुरस्कार पाने वाली वह पहली भारतीय अभिनेत्री बनीं । फिल्मों के अलावा वह सामाजिक कार्यों में लगी रहती थीं । सन 1972 में उन्होंने भारत में पहला स्पास्टिक स्कूल खोला ।
केवल तीन बच्चों के साथ खोला गया यह स्कूल आज भारत के सभी महानगरों में फैल चुका है । वह अजंता आर्ट ट्रुप की उपाध्यक्ष भी रहीं । ट्रुप के माध्यम से उन्होंने युद्ध में घायल सैनिकों की सेवा की । उन्हें ' द लेडी इन व्हाइट ' के नाम से जाना जाता था । वह भारत स्काऊट्स और वार विडोज़ एसोसिएशन से भी जुड़ी रहीं ।
नरगिस ऐसी पहली अभिनेत्री थीं जो फिल्मों के बाद रचनात्मक और सार्वजनिक क्षेत्र में आईं । वह पहली अभिनेत्री थीं , जिन्हें पद्मश्री दिया गया और संसद में मनोनीत किया गया । सन 1968 में उन्हें उर्वशी पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
3 मई , 1987 में कैंसर से उनकी मृत्यु हुई । उनकी स्मृति में बना नरगिस दत्त मैमोरियल फाऊंडेशन कैंसर के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रहा है ।
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