दिलीप कुमार (11 दिसंबर 1922 --7 जुलाई 1921)
दिलीप कुमार
उसी दौरान प्रसिद्ध अभिनेत्री देविका रानी से परिचय हुआ। उन्हीं की मार्फत सन 1944 में उन्होंने 'बॉम्बे टॉकीज' द्वारा निर्मित 'ज्वार-भाटा' से बतौर नायक फिल्मी दुनिया में पदार्पण किया।
भारतीय सिनेमा के शुरुआती दौर में रंगमंच और सिनेमा माध्यम में अंतर समझ कर अभिनय करने वालों ने दिलीप कुमार जैसे बहुत ही थोड़े कलाकार थे। उन्होंने सिनेमा के मर्म को समझ कर बेजोड़ अभिनय किया।
दिलीप कुमार ने 'आजाद' (1955) 'कोहिनूर' (1961) 'लीडर' (1966), 'राम और श्याम' (1966) जैसी फिल्मों में मनोरंजक भूमिका कर दर्शकों का दिल जीत लिया। और 'अंदाज' में नकारात्मक भूमिका निभाने वाले दिलीप कुमार ने 'पैगाम' और 'नया दौर' में जुझारू नायक की सकारात्मक भूमिका निभाई।
'मधुमति' जैसे रहस्यप्रधान फिल्म हो या 'संघर्ष' का हिंसक नायक या फिर 'मुग़ल-आज़म' का बगावती प्रेमी शहजादा हो या 'गंगा-जमुनी' का ग्रामीण गंगा, दिलीप कुमार ने अपने विशिष्ट अभिनय से इन सभी व्यक्तियों को जीवंत कर दिया। अभिनय जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने 'संगीना', 'शक्ति', 'मशाल', 'विधाता', 'कर्मा', और 'सौदागर' में यादगार भूमिका अदा कीं।
1953 से 1993 के दौरान दिलीप कुमार को सर्वाधिक नौ फिल्म फेयर पुरस्कार मिले जिसमें लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार भी शामिल है। 13वें कार्लो वीवेरी फिल्म महोत्सव (चेकोस्लोवाकिया) में 'गंगा जमुना' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता व पटकथा लेखन का स्पैशल ऑनर डिप्लोमा से सम्मानित किया गया।
भारतीय सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान के लिए सन 1994 में 'उन्हें दादा साहब फाल्के' पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1997 में पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'निशाने-ए-इम्तियाज' से उन्हें सम्मानित किया गया।
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