छोटी सी जीभ के कितने बड़े काम | जीभ द्वारा स्वाद का पता कैसे चलता है | जीभ के बारे में विस्तृत जानकारी
हमारी जीभ
आमतौर पर चार इंच लम्बी और कोई दो औंस की आपकी जीभ विशेष प्रकार की कोशिकाओं का समूह है जिसमें अन्य अंगों की अपेक्षा कहीं ज्यादा लचीलापन है । दांतों की दीवारों में बंद बेचारी हमारी जीव को हर समय खतरा बना रहता है कि कहीं दांतों के बीच आकर कट न जाए।
मगर जीभ के लचीलेपन और हर समय हिलते रहने से ऐसा बहुत कम होता है । देखा जाए तो आपकी जीभ कभी न थकने वाला जिमनास्ट हैं । आपकी जीभ श्लेष्मा यानी लिसलिसे पदार्थ की झिल्ली से धिरी एक लचीली चमड़ी ही है , जिसमें मांसपेशियां और तंत्रिकाओं का एक विशेष जाल बुना हुआ है ।
जीभ की ऊपरी सतह पर छोटे - छोटे उभार होते हैं । इनमें ही जगह - जगह पर स्वादांकुर यानी टेस्टबड होती है । असल में इन स्वादांकुरों में ही स्वाद कोशिकाएं रहती हैं जो स्वाद की संवेदनाओं को प्राप्त करती है । जीभ के नीचे की ओर फ्रेंयूलम नामक रजू यानी कॉर्ड होती है ।
इसी के फैलाव और सिकुड़ने से जीभ छोटी - बड़ी होती है । जब यह रज्जू सिकुड़ कर छोटी हो जाती है तो जीभ में सख्ती आ जाती है । इस दिशा में बोलने की क्रिया भी गड़बड़ा जाती है मगर इस दोष को आसानी से दूर किया जा सकता है ।
आपकी जीभ हालांकि बोलने का यंत्र नहीं है , मगर यह भी सच है कि बिना इसकी गति के स्वर निकलना भी संभव नहीं है । जीभ के तालू और होंठ पर लगने से ही अलग - अलग दशाओं में स्वर निकलता है । आप जीभ को दांत से दबा लें और फिर बोलकर देखें । पहले से सही आवाज तो नहीं निकलेगी और जो भी निकलेगी वह समझ में नहीं आएगी ।
इस तरह जीभ साफ बोलने में विशेष रूप में मदद करती है । तभी तो जब आप बहुत बोलते हैं तो कहा जाता है कि बड़ी जीभ या जुबान चल रही है और अगर चुप रहो तो कहा जाता है जुबान सिल गई है क्या या मुंह में जीभ नहीं है ।
जीभ पर पाए जाने वाले स्वादांकुर ही एक तरह से हमारे जीवन में स्वाद घोलते हैं । मिठास हो , खट्टापन हो , नमकीन हो या फिर कड़वाहट , जीभ पर फैले ये स्वादांकुर ही हमें उसका आभास कराते हैं और हां अगर किसी चीज में कोई स्वाद नहीं है तो उसका फीकापन भी यही बताते हैं ।
आपने जीभ पर खाने की चीज रखी नहीं कि उसे झट से पता चल जाता है कि इसमें नमक नहीं या चीनी नहीं है या फिर कोई चीज बहुत तीखी है । पहले वैज्ञानिकों की राय थी कि ये स्वादांकुर अलग अलग जगह पर अलग अलग होते हैं यानी जीभ के आगे मिठास के तो इसके आगे नमक के , बीच में खट्टे तो अंत में कड़वे ।
मगर अब यह गलत साबित हो चुका है । असल में इनका कोई स्थान निश्चित नहीं होता । ये तो सारे मुंह में फैले रहते हैं अगर ये एक निर्धारित जगह पर ही होते तो आपको शर्बत वहीं मीठा लगता जहां मिठास के स्वादांकुर है । जहां तक स्वाद समझने की बात है वह सब लोगों में अलग - अलग होती है । जरूरी नहीं कि चाकलेट का स्वाद आप जितनी जल्दी समझ लें हम भी समझ लें ।
हमारी आपकी स्वाद संवेदनाएं अलग - अलग हो सकती हैं । इसी तरह बहुत - सी ऐसी चीजें हैं जिनका स्वाद आपको अच्छा लगता , हो , आपके दोस्त को वह नापसंद हो । आपमें से कुछ गन्ने का रस बड़े स्वाद से पीते हैं जबकि आपके दोस्त को शायद वह बिल्कुल नहीं भाता होगा । तो इस तरह से स्वाद की संवेदना अलग - अलग लोगों में अलग - अलग होती है । इसी से जुड़ी होती है स्वाद अपना लेने की बात ।
कड़वी दवाई को पहली बार आप बड़ी मुश्किल से पीते हैं मगर जब कई बार पीनी पड़ती है तो हम उसमें दूसरा अपनी पसंद का स्वाद मिला देते हैं । इस तरह नापसंद स्वाद पर पसंद का स्वाद हावी हो जाता है । इसे कड़वी दवा को शहद में मिलाकर खाना ।
जब भी आप लोग कुछ खाते हैं तो इसे चबाना पड़ता है । इस तरह भोजन को लुगदी बन जाती है । इस काम में भी जीभ ही मदद करती है । भोजन को बार - बार दांतों के नीचे ले जाने का काम जीभ ही तो करती है । वैसे भी यह बात मानी गई है कि किसी भी खाने वाली चीज का सही स्वाद तभी सामने आता है जब वह द्रव रूप में हो ।
आपने देखा कि आइसक्रीम भी जब पिघलती है तभी उसका स्वाद जीभ को पता चलता है । स्वाद कोशिकाओं से जुड़ी तंत्रिकाएं इसके पिघलते ही मस्तिष्क को इसके स्वाद खबर पहुंचाती हैं । आपकी इस जीभ का साफ रहना बहुत जरूरी है । अगर यह साफ न रही हो तो एक तो आपको बीमार कर देगी दूसरा तुम्हें खाने की चीजों का सही पता भी नहीं लग पाएगा ।
इसके गंदे रहने के पीछे दो कारण होते हैं एक तो यह कि अगर इसकी सफाई न की जाए तो जीभ की लगातार मरती रहने वाली कोशिकाएं इसकी ऊपरी सतह पर इकट्ठी होकर तह जमाती जाती हैं । दूसरे जो कुछ आप खाते हैं उसके बारीक कण भी जीभ पर इकट्ठे होकर उसकी गंदगी बढ़ाते हैं। इन्हीं खाद्य कणों में धीरे - धीरे फफूंद भी पनपने लगती है । अगर जीभ साफ रहे तो बिल्कुल लाल रहती है ।
यह जीभ ही है जो आदमी की हर उम्र में एक समान साथ देती है । यानी चीनी का जो स्वाद बचपन में आएगा वहीं बुढ़ापे में । ठीक एक जैसा । बढ़ती उम्र के साथ दिखाई देना , सुनना , चलना वगैरा कम होते जाते हैं । मगर जीभ हर उम्र में एक - सा ही स्वाद दिलाती है । हां , कई बार जिंक की कमी हो जाने से स्वाद जरूर गड़बड़ा जाता है ।
मगर इसमें बेचारी जीभ का क्या दोष । यह गलती तो आपकी ही है क्यों होने दी जिंक की कमी । यानी जीभ आपके स्वाद पर कोई चोट नहीं करती ।
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