Top Ad unit 728 × 90

Breaking News

InterestingStories

सो मत जाना | त्रिभुवन और राक्षस | पंचतंत्र की कहानी | जातक कथा

सो मत जाना


सो मत जाना, त्रिभुवन और राक्षस जातक कथा, पंचतंत्र की कहानी, बच्चों की कहानी, राक्षस की कहानी, एक था जंगल, भूत की कहानी, रोचक कथा, डरावनी कहानी


बहुत समय पहले की बात है । असम के जंगलों में एक गांव था सिरकटा । कहते हैं वहां एक बार राक्षसों ने हड्डियों के बने हथियारों से समस्त गांव के निवासियों के सिर काट  दिए थे । उस गांव का व्यापारी धन्नालाल जब परदेस से कमाई करके गांव लौटा तो सुनसान गांव देख कर दंग रह गया । भयभीत - सा धन्नालाल गांव के मंदिर में देवी के चरणों में पहुंचा । 





रोते हुए उसने देवी से पूछा , " मां , यह सब क्या हो गया ? ” ' चिंता मत करो वत्स , तुम्हारा परिवार सुरक्षित है । तुम्हारी पत्नी बच्चों सहित मायके गई हुई है । यह घटना तो उसके मायके जाने के बाद हुई है । " देवी बोली ।  ' अब मैं क्या करूंगा मां ? इन राक्षसों से कैसे पीछा छूटेगा ? " " सुनो , इन राक्षसों को नीचे की ओर देखने की आदत है । एक - दो रोज में राक्षसों का सरदार यहां अपनी बस्ती बसाने आएगा । 





तुम गांव के द्वार को त्रिभुज जैसा बना दो । उसे नीचे की ओर चौड़ा दरवाजा दिखेगा । त्रिभुज का ऊपरी संकरा मुंह नहीं देख पाने कारण वह उस त्रिभुजाकार दरवाजे से टकरा कर मर जाएगा । " देवी ने समझाया । दूसरे ही दिन धन्नालाल ने त्रिभुज के आकार का दरवाजा बनवा दिया । एक दिन राक्षसों का सरदार तेजी से दौड़ता हुआ गांव की ओर आया तथा उसका सिर त्रिभुजाकार दरवाजे के ऊपरी हिस्से में फंस गया । 





राक्षस की वहीं मौत हो गई । डर के मारे बाकी राक्षस वह जंगल छोड़ कर भाग गए । खुशी - खुशी धन्नलाल देवी मां के चरणों में प्रसाद चढ़ाने गया । देवी मां ने उसे समझाया , " धन्नालाल ! मेरे त्रिशूल से तांबा लेकर त्रिभुज की आकृति के कुछ ताबीज बनवा लो । जो इन ताबीजों को पहनेगा , उसके सामने आते ही राक्षस झुलस जाया करेगा । इससे तुम्हारा परिवार सुरक्षित रहेगा । 





" देवी मां को धन्यवाद देकर धन्नालाल मंदिर से बाहर आया । कुछ दिनों के बाद उसने गांव के पास नई बस्ती बसा दी और परिवार वालों के गले में त्रिभुज के आकार के ताबीज डाल दिए । धन्नालाल का परिवार पीढ़ी - दर - पीढ़ी " उन ताबीजों को पहनता रहा । काफी दिन बाद जब परिवार में एक बालक जन्मा तो बालक का नाम रखा गया त्रिभुवन । धीरे - धीरे त्रिभुवन बड़ा होने लगा । 





त्रिभुवन अक्सर अपने दादा जी से उस ताबीज का रहस्य पूछता , किन्तु उसकी बात को हर बार टाल दिया जाता था । रात को चारपाई पर लेटे - लेटे त्रिभुवन घंटों तक सोचता रहता । कई बार उसे सपने में ऐसा लगता जैसे कि वह जंगल में बरगद के पेड़ के पास खड़ा है तथा पेड़ से आवाज आती है , " सो मत जाना ... सो मत जाना । " घबरा कर वह नींद से उठ जाता है । एक दिन उसने मां को कहा कि उसे सपने में ' कोई आवाज सुनाई पड़ती है— ' सो मत जाना । 





' मां ने उसे प्यार से समझाया कि दिन की बातें रात को सपने में दिख जाती हैं । त्रिभुवन मां के उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ । उसने आश्रम में अपने गुरुदेव से पूछा तो उन्होंने कहा , " बेटा त्रिभुवन , तुम्हें किसी बात के लिए चौकस रहने की जरूरत है । सो मत जाना का अर्थ है - होश - हवास में रहना। कभी संकट आए तो घबराना मत बल्कि हिम्मत रखना । " एक दिन त्रिभुवन के पशु जंगल में चरते चरते दूर चले गए । 





त्रिभुवन भी अपने पशुओं को ढूंढते - ढूंढते वहां जा पहुंचा । वहां पहली बार उसने एक विशाल गुफा देखी । वह थक गया था इसलिए गुफा से दूर जाकर एक बरगद के पेड़ की छाया में सुस्ताने लगा । तभी गुफा के अंदर सो रहे बूढ़े राक्षस को कुछ गर्मी - सी महसूस हुई । बूढ़ा राक्षस समझ गया कि यह ताप त्रिभुवन के पुराने पड़ चुके ताबीज के कारण है , अन्यथा तो इस ताबीज के ताप से वह अब तक जल चुका होता । 





यह बूढ़ा राक्षस उस राक्षस सरदार का बेटा था , जो बहुत पहले धन्नालाल के त्रिभुजाकार दरवाजे में मारा गया था । अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए बूढ़ा गुफा से बाहर आया । वह बूढ़ा मायावी राक्षस एक सांप में बदल गया और त्रिभुवन के पैर में डंस कर गायब हो गया । त्रिभुवन को सांप के जहर के कारण मूर्छा सी आने लगी । वह जमीन पर लेट गया । जहर के असर से उसे नींद आ रही थी ।





 उसका शरीर ढीला पड़ता जा रहा था , किन्तु त्रिभुवन ने हिम्मत जुटाई और सोया नहीं । वह जोर - जोर से चिल्लाने लगा , " कोई बचाओ - बचाओ मुझे । ' बहुत देर बाद एक बैलगाड़ी वाला उधर से गुजरा । उसने त्रिभुवन को अपनी बैलगाड़ी पर लाद कर गांव पहुंचा दिया । वैद्य जी ने त्रिभुवन को देख कर हैरानी से कहा , " सांप का काटा व्यक्ति नींद आने से बच नहीं सकता । इसी नींद में वह मौत की नींद सो जाता है । 





इस बहादुर बच्चे ने कमाल की हिम्मत दिखाई है । " वैद्य जी ने दवा देकर त्रिभुवन को ठीक कर दिया । फिर तीसरे दिन त्रिभुवन ने घर वालों को बताया कि " गुफा में बूढ़ा विशाल राक्षस है , उसने मुझे सांप बन कर काटा है । " शाम को सारे परिवार की बैठक हुई । चिंता में डूबे बूढ़े लेकिन अनुभवी दादा जी बोले , " मुसीबत यह है कि ताम्बे के बने ताबीज पुराने हो गए हैं । इनमें अब ज्यादा तपन नहीं है , जो राक्षस को जला सकें । 





" काफी देर सोचने के बाद त्रिभुवन को एक उपाय सूझा , वह बोला , " एक ताबीज से यदि राक्षस नहीं जलता है तो क्यों न हम सब परिवार वाले एक साथ ताबीज पहन कर गुफा में प्रवेश करें । ताबीजों सम्मिलित शक्ति से अवश्य ही राक्षस झुलस जाएगा । " सबको त्रिभुवन का विचार पसंद आया । दूसरे दिन वे सब मायावी राक्षस की गुफा के अंदर पहुंचे । मंत्रपूरित ताबीजों के ताप से नींद से उठने से पहले ही राक्षस जल गया । 




बूढ़े दादा जी ने त्रिभुवन की पीठ थपथपाई । त्रिभुवन बोला , “ दादा जी , धन्यवाद तो उस प्रभु को दीजिए जिसने समय रहते ही सावधान किया कि ' सो मत जाना । "




🙏दोस्तों अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो तो आप कमेंट करना ना भूलें नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी कीमती राय जरूर दें। Discovery World Hindi पर बने रहने के लिए हृदय से धन्यवाद ।🌺



यह भी पढ़ें:-




           ❤❤❤ Discovery World ❤❤❤






सो मत जाना | त्रिभुवन और राक्षस | पंचतंत्र की कहानी | जातक कथा Reviewed by Jeetender on October 20, 2021 Rating: 5

No comments:

Write the Comments

Discovery World All Right Reseved |

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.