वाद्य यंत्र प्यानो
जिराफ प्यानो |
हार्पसी कोर्ड की तुलना में स्पर्श के प्रति अधिक संवेदनशील वाद्य यंत्र तैयार करने के प्रयासों के अंतर्गत वाद्य यंत्रों के इतालवी आविष्कारक बार्टोलोमियो क्रिस्टोफोरी ने 18 वीं शताब्दी के आरम्भ में एक एस्केपमैंट हैमर मैकेनिज्म का आविष्कार किया ।
इसमें हार्पसी कोर्ड वाली एक्शन विधि अपनाने के स्थान पर चमड़े के शीर्ष वाले प्रहारक हार्पसी कोर्ड की - सी आकृति वाली कैबिनेट के भीतर कब्जों के साथ जोड़े गए थे जोकि स्वतंत्रतापूर्वक कुंजियों ( कीज़ ) के ऊपर आ जाते थे । इस मैकेनिज्म से इसे बजाने वालों को इसकी डायनैमिक्स पर अधिक नियंत्रण प्राप्त हो जाता था । प्रारम्भिक काल के इस प्यानो का नाम क्रिस्टोफोरी ने ' ग्रेवी केम्बालो कोलप्यानो ए फोर्ट ' रखा जोकि नर्म एवं उच्च ध्वनि वाला हार्पसी कोर्ड ही था ।
जर्मनी में गॉटफ्रायड सिल्बरमैन ने क्रिस्टोफोरी के विचारों की नकल करके सर्वप्रथम प्यानो निर्माता बनने का श्रेय प्राप्त किया । उसने ये उपकरण फ्रैडरिक द ग्रेट और को बेचे , जिन्होंने इनमें अत्यधिक रुचि एवं उत्साह प्रदर्शित किया । अठारहवीं शताब्दी में सिल्बरमैन के जोहाने जुम्पे नामक एक शिष्य ने चौरस प्यानो का आविष्कार किया ।
प्यानो की इस किस्म का बड़ी संख्या में निर्माण किया गया तथा इसमें ध्वनि से मेल खाने के लिए अत्यंत कोमल संगीत लहरी का समावेश किया गया था । पैडलों के स्थान पर प्रारम्भिक दौर के चौरस प्यानो ( स्कवायर्स ) में हाथ से रोकने की व्यवस्था थी । साथ ही इसमें एक ढक्कन बना हुआ था , जिसे आधा या पूरा बंद किया जा सकता था ।
प्यानो के विकास की कहानी के साथ ही इसे बनाने वाली अनेक विख्यात हस्तियों बाडवुड , एरार्ड , विकरिंग , बैकस्टीन तथा स्टीनवे आदि के बीच जबरदस्त व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता भी देखने को मिली । उन्नीसवीं शताब्दी के आते - आते अनेक आकृतियों और आकारों में प्यानो का निर्माण किया जाने लगा , जिनमें से कुछ तो काफी दिलचस्प थीं ।
उदाहरणार्थ जिराफ एवं पिरामिड नामक प्यानो काफी लम्बूतरे थे जोकि रखने में जगह की काफी बचत करते थे । बहरहाल , स्वरूप चाहे जैसा भी रहा हो , 19 वीं शताब्दी में प्यानो के निर्माता बेहतरीन उपलब्ध सामग्री का उपयोग करके इन्हें अधिक से अधिक भव्य एवं नयनाभिराम बनाने के लिए प्रयत्नशील रहे ।
ऐसे कुछ प्यानो ने तो ' कलैक्टर्स आइटम ' का दर्जा प्राप्त कर लिया विशेषकर ऐसे प्यानो ने जिन्हें किसी अन्य वस्तु के रूप में भी ढाला जा सकता था जैसे कि ड्रैसिंग टेबल , टेबल , सिलाई मशीनों तथा कॉकटेल कैबिनटों के रूप में ।
आधुनिक प्यानो
सबसे अधिक लोकप्रिय तथा विविधतापूर्ण वाद्ययंत्रों में से एक है आधुनिक प्यानो । इसे एकल या सहयोगी वाद्ययंत्र के रूप में घरों , रॉक बैंड्स तथा कंसर्ट के मंचों पर देखा जा सकता है । प्यानो सर्वाधिक प्रचलित किस्म जिसे स्कूलों तथा घरों में प्रयोग किया जाता है । वह है जो सीधी नीचे से ऊपर की ओर खड़ी रहती है और इसका आविष्कार 1800 ईस्वी के आस - पास जान इस्साक हाकिन्स ने फिलाडेल्फिया में किया था ।
अपराइट प्यानो में तार लम्बवत लगाए जाते हैं और इसके दो पैडल होते हैं । साफ्ट या बायां पैडल तथा सस्टेनिंग या बाईं तरफ का पैडल । वाला आधुनिक प्यानो के ही बोर्ड में सात अष्टकों वाला एक कंपास या सात अष्टक तथा एक माइनर तीसरा होता है । इसके तार आमतौर पर इस्पात के बने होते हैं परन्तु बॉस तारों की गूंज को बढ़ाने के लिए इस पर तांबे से प्रहार किया जाता है ।
तार एक लोहे के बने फ्रेम में फैले होते हैं । 15 वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही इसकी कीज को इस तरह अरेंज किया गया जैसे कि आधुनिक प्यानो में । विशाल प्यानो में तार लम्बवत लगाए होते हैं और इसके तीन सबसे महत्वपूर्ण आकार हैं बेबी , बोडायर तथा कंसर्ट । बेबी या कांपैक्ट मिनिएचर ग्रैंड आमतौर पर 1.6 मीटर तथा 1.75 मीटर के बीच लम्बा होता है । बोडायर ग्रैंड 1.8 मीटर से 2.1 मीटर के बीच लम्बा होता है । इनमें से सबसे बड़ा है कंसर्ट ग्रैंड जो 2.1 मीटर से 2.7 मीटर लम्बा होता है ।
ग्रैंड प्यानो कई मामलों में अपने छोटे रिश्तेदारों से बेहतर है । इसकी आवाज इसकी खुले हुए ढक्कन के द्वारा बाहर फैलती है तथा साऊंड बोर्ड के नीचे के फ्लोर द्वारा शौक लेने की बजाय परिवर्तित हो जाती है । कई बार इस वाद्ययंत्र में तीसरा पेडल भी शामिल किया जाता है । जिससे इसके चुने हुए अलग - अलग नोट्स को स्वतंत्र रूप से बनाए रखने में सहायता मिलती है ।
सभी प्यानो की पिच रेंज काफी विस्तृत होती है । तथा बहुत विविधतापूर्ण होती है प्यानो की भावात्मक टोन ने बहुत से संगीतकारों को इस शानदार वाद्ययंत्र के लिए संगीत रचना करने के लिए प्रेरित किया ।
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