जनता की परीक्षा
प्राचीन काल की बात है । गंगा नदी के किनारे एक गांव लदौर बसा था , जो हरिपुर राज्य का ही एक भाग था । हरिपुर के राजा वीरभद्र थे । बहुत ही दयालु एवं थे । अमीर हो या गरीब , वह सभी को एक नजर से देखते थे ।
प्रजा की सारी समस्याएं खुद सुनते थे और उन्हें दूर भी करते थे । वह चाहते थे कि प्रजा भी सबके साथ एक समान ही व्यवहार करे । वीरभद्र की पत्नी जीवन ज्योति बहुत ही समझदार थी । राजमहल की सुख सुविधाओं के बीच रहते हुए भी वह राज काज में रुचि लेती थी । जीवन ज्योति राजा से राजनीति पर चर्चा करती , राय भी देती । राजा भी पत्नी की बातों को ध्यान से सुनते थे ।
एक दिन राजा और रानी दोनों ही बगीचे में टहल रहे थे । अचानक रानी ने पूछा , " महाराज क्या आपको लगता है । कि आपकी प्रजा सुखी है । " वीरभद्र ने उत्तर दिया , इसमें कोई संदेह नहीं है । दरबार में प्रजा से मिलता रहता हूं , उनसे बातचीत करने से तो यही लगता है कि सब सुखी हैं ।
"आप हर किसी से समान व्यवहार करते हैं लेकिन क्या आपके इस आदर्श का पालन प्रजाजन भी करते हैं ? क्या वे भी अमीरी - गरीबी और भेदभाव को छोड़कर एक - दूसरे की सहायता करते हैं ? " जीवन ज्योति ने प्रश्न किया । राजा वीरभद्र सोच में पड़ गए । इस बारे में तो उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था ।
कुछ देर बाद वह बोले " यह जानने का तो मैंने कभी प्रयास ही नहीं किया । तुम ही बताओ मुझे क्या करना चाहिए । " रानी की योजनानुसार राजा ने अपने अंगरक्षकों तथा सैनिकों को लदौर गांव में भेज दिया । उन्हें गांव के लोगों पर कड़ी नजर रखने और कुछ दिन वहीं रुकने का आदेश दिया।
सबके जाने के बाद राजा भी भिखारी के वेश में उसी गांव के एक चबूतरे पर जाकर बैठ गए । राजा ने देखा कि गांव वाले उनके सैनिकों एवं अंगरक्षकों के सम्मान एवं आदर - सत्कार में लगे हुए हैं और अपने - अपने घरों से खाने - पीने की वस्तुओं को लेकर उन्हें देते जा रहे हैं परन्तु चबूतरे पर बैठे राजा की ओर देख कर भी वे अनदेखी करते जा रहे थे ।
राजा ने उनसे खाने के लिए मांगा तो उन्होंने दुत्कार दिया । राजा भूखे - प्यासे वहीं बैठे रहे । धीरे - धीरे रात हो गई । थोड़ी देर बाद बारिश भी शुरू हो गई । ठंड का मौसम था । राजा भीगते हुए वहीं बैठे रहे । गांव वालों ने राजा की कोई परवाह नहीं की ।
उसी चबूतरे के पास एक बुढ़िया की झोंपड़ी थी । उसके दो बेटे थे । दिन भर मजदूरी करके दोनों बेटे जो कुछ लाते उसी में तीनों गुजारा करते थे । बुढ़िया दोनों बेटों को खाना परोस कर बाहर भीगते हुए हाथ धोने गई तो उसने चबूतरे पर बैठे व्यक्ति को देखा । बुढ़िया ने अंदर आकर अपने बेटों से कहा , " शायद चबूतरे पर कोई भिखारी बैठा हुआ है । भीग भी रहा है । उसे जाकर ले आओ ।
" एक मां की बात सुनकर दोनों बेटे थाली छोड़ कर बाहर निकल गए । वे भिखारी बने राजा के पास पहुंचे । भिखारी बारिश में भीगते हुए कांप रहा था । बड़े बेटे ने उनसे पूछा , " भाई आप कौन हैं ? कहां से आए हैं ? हमारे साथ चलिए । पास ही हमारी झोंपड़ी है । आप वहां बारिश और ठंड से बच जाएंगे ।
" वीरभद्र ने जवाब दिया , " मैं मुसाफिर हूं । मुझे दूर जाना था । किंतु यहीं रात हो गई और बैठ गया । मैं अनजान व्यक्ति हूं । आप मुझे अपने साथ क्यों ले जाना चाहते हैं ? मैं छोटे भाई ने कहा , आप इस गांव के अतिथि हैं । हमारे राजा का कहना है कि सबके साथ एक जैसा व्यवहार करो । किसी से भेदभाव मत करो ।
आप हमारे गांव से भूखे नहीं जा सकते । जो भी रूखा - सूखा है वही खा कर हमें कृतज्ञ करें । वीरभद्र उनके साथ चल पड़े । वह खाना खाते समय सोचने लगे , " कितने आश्चर्य की बात है । पूरे गांव में एक यही परिवार है जो मेरे आदर्शों पर चलता है बाकी सब अपना स्वार्थ देखते हैं । "
खाना खाकर वीरभद्र उसी झोंपड़ी में सो गए । सुबह उठकर वीरभद्र ने दोनों भाइयों को अपना परिचय दिया । राजा का परिचय पाकर दोनों भाई आश्चर्यचकित रह गए । जब गांव वालों को पता चला तो वे भी वहां दौड़े आ गए । गांव के सभी समृद्ध लोग राजा को अपने घर चलने के लिए अनुरोध करने लगे परन्तु वह किसी के साथ नहीं गए ।
सारे गांव वाले अपने किए पर लज्जित थे । उन्होंने राजा से क्षमा मांगी । प्रण किया कि आगे से वे सभी के साथ एक जैसा ही व्यवहार करेंगे । वीरभद्र दोनों भाइयों को राजमहल में लाए और उन्हें अपने यहां नौकरी देने के साथ ही ढेर सारा ईनाम भी दिया ।
जीवन ज्योति ने हंसते हुए राजा से पूछा , " महाराज , क्या मेरा सुझाव आपके काम आया । " राजा ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया , " तुम ठीक कहती थी । राजा जनता के बीच जाकर ही उसे समझ सकता है । "
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