रंग बिरंगी पतंग
बच्चो , रंग - बिरंगी पतंगों का शौक आप में से अधिकांश को होगा । नीले आकाश में उड़ान भरती इन पतंगों पर सवार आपके सपने भी नित नई ऊंचाइयां छू लेते हैं । क्या आप जानते हैं कि इस अनूठी पतंग का आविष्कार कब , कहां और कैसे हुआ था ?
इनका इतिहास करीब 3000 वर्ष पुराना है । चीन में पहली बार बांस और रेशम के कपड़े की पतंग बनाई गई थी । उसके पश्चात हर काल में पतंग अपने रूप के साथ साथ महत्ता भी बदलती रही । 19 वीं सदी में पतंगों को वैज्ञानिक शोध के लिए उपयोग किया जाता रहा तो दूसरी ओर 20 वीं एवं अब 21 वीं सदी में सैन्य कार्यों के लिए भी वहां इनका प्रयोग किया जाता रहा है ।
चीन में इसके उद्भव का मुख्य कारण था इसके निर्माण में प्रयोग होने वाले सामान की सुगम उपलब्धता । इसके फ्रेम के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बांस तथा कागज के स्थान पर तब प्रयुक्त रेशम चीन में बहुतायत में थे । पतंग की लोकप्रियता चीन के पश्चात पूरे एशिया , वहां से यूरोप और अब अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया , अफ्रीका तक फैल चुकी है ।
अमेरिकी राजदूत एवं वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रैंकलिन ने पतंगों द्वारा वातावरण में ऊंचाइयों की वातावरण में मौजूद विद्युत तरंगों के बारे में प्रयोग किए । अमेरिकी वैज्ञानिक एलैग्जैंडर ग्राहम बैल ने भी पतंगों से कुछ प्रयोग किए थे । 12 नवम्बर 1894 को लॉरेंस हारग्रेव को चार ' सैलुलर ' पतंगों की रेल के सहारे धरती से कई फुट ऊंचा ' उड़ा ' दिया गया ।
इसी प्रकार 7 नवम्बर 1903 को सैमुएल फ्रैकलिन कोडी ने पतंगों के सहारे उड़ते हुए इंगलिश चैनल पार किया था । 19 वीं तथा 20 वीं सदी की शुरूआत में पतंगों द्वारा सैनिकों को ऊंचाई तक पहुंचा कर दुश्मन की सेना का अवलोकन करवाया जाता था।
दूसरे विश्व युद्ध ( 1939-1945 ) के दौरान तोपखानों पर निशाना साधने के लिए भी पतंगों का उपयोग होता रहा । बीते समय में पतंगें चाहे जिस भी कार्य के लिए प्रयोग की जाती रही हों भारत में इनका विभिन्न पर्वों पर उल्लास दर्शाने और मुकाबलों के लिए इस्तेमाल होता है ।
पतंग की डोर पर मांझा चढ़ाता यह व्यक्ति |
भारतीय परम्परा का अभिन्न हिस्सा हैं ये रंग - बिरंगी पतंगें । इन्हें उड़ाना और हवा में पेंच लड़ा कर किसी अन्य की पतंग की डोर काट कर उसकी ' आई बो ' करना आप बच्चों को कितना रोमांचित कर देता है , इसका अंदाजा सभी को है । पंजाब और गुजरात में तो विशेष पर्वों पर पतंगों की धूम देखते ही बनती है ।
आपने भी अपने बचपन में पतंगे जरूर उड़ाई होंगी । पतंगों को उड़ाने में जितना मजा आता है उससे ज्यादा मजा तो पतंगों को लूटने मैं आता है। छोटे बच्चे से लेकर बड़ों तक पतंग उड़ाने का मजा लेते हैं। पतंग उड़ाते समय बच्चों द्वारा कुछ शब्द ऐसे होते हैं जो बहुत ही मजेदार तरीके से बोले जाते हैं । आइए उनके बारे में जानते हैं।
कन्नी बांधना
पतंग को खरीद के लाने के बाद सबसे पहले उसकी कन्नी बांधी जाती है। कन्नी बांधना भी एक कला है। कन्नी अगर गलत तरीके से बंध गई तो पतंग उड़ने का नाम नहीं लेगी। कन्नी बांधने से पहले हवा को समझा जाता है। हवा अगर तेज हो तो आगे की कन्नी बड़ी और पीछे की छोटी रखनी पड़ती है उसके बाद उसे सीधा करके मेजर करना पड़ता है ।
झोप निकालना
पतंग के कन्नी बांधने के बाद पतंग की झोप निकाली जाती है। इसके लिए पतंग को अपने सर पर रख कर पतंग के बीच के तिल्ले को थोड़ा मोड़ा जाता है। ऐसा करने से पतंग ज्यादा भागती नहीं है और आसमान में स्थिर खड़ी रहती है ।
पतंग को खिला देना
पतंग अगर आसमान में बहुत दूर तक उड़ जाए और वह छोटी दिखाई देने लगी तो उसे पतंग का खिल जाना कहते हैं।
खिच्चा मारना
जब बच्चे अपने पतंग की पेच किसी दूसरे पतंग से लड़ाते हैं तो उस समय एक खास कला के द्वारा पतंग को इतनी जोर से खींचा जाता है कि वह पतंग दूसरी पतंग को आसानी से काट देती है। उसे ही खिच्चा मारना कहते हैं ।
ढील छोड़ना
पेच्चे लड़ाने की दो कला होती है जिसमें पहले में खिच्चा मारकर तो दूसरे में ढीले छोड़कर पतंग को काट दी जाती है । पतंग की पेच लड़ने के बाद अपने पतंग को ऊपर की ओर स्थिर रखते हुए लगातार ढील छोड़ी जाती है जिससे दूसरे की पतंग आसानी से कट जाती है ।
आई बो
जब एक बच्चे द्वारा किसी दूसरे की पतंग काट दी जाती है तो बच्चे खुशी से जोर-जोर से कटी हुई पतंग को 'आई बो' कहते हैं। दोस्तों कई बच्चे तो पतंग उड़ाने में इतने माहिर होते हैं कि वह कटी हुई पतंग को अपने पतंग में फंसा कर अपने पास खींच लाते हैं।
दोस्तों पतंगों के नाम भी बहुत मजेदार होते हैं जैसे गुड्डा पतंग, परी पतंग तथा लिप्पो पतंग । लिप्पो पतंग वह होती है जो तेज हवा में भी आसमान में स्थिर खड़ी रहती है। वह पतंग अन्य पतंगों की तरह आसमान में ज्यादा मचलती नहीं है । छोटे बच्चे इसे हाथ में पकड़े रहते हैं और पतंग आसमान में एक जगह स्थिर खड़ी रहती है।
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