बीमार बैलगाड़ी
गांव में रामलाल एक किसान रहता था । वह बहुत ही मेहनतकश था । रामलाल के पिताजी ने रामलाल का विवाह बचपन में ही अपने दोस्त की बेटी बिमला के साथ तय कर दिया था । गांव के रीति - रिवाज के अनुसार सबको चलना ही पड़ता था ।
ऊपर से रामलाल आज्ञाकारी होने के कारण कभी अपने पिता की आज्ञा को नहीं टालता था और युवा होने पर उसने अपने पिता की पसंद की लड़की बिमला से ही विवाह रचा लिया । बिमला बहुत भोली थी या यों कहें कि बावली ही थी । कुछ समय बाद रामलाल के पिता का स्वर्गवास हो गया था
अब उसके घर में वह , उसकी पत्नी बिमला और उनका बेटा राजू रहते थे । रामलाल की खेती बाड़ी ईश्वर की कृपा से अच्छी फल - फूल रही थी और उसने कुछ पैसे बचाकर एक बैलगाड़ी भी खरीद ली । एक दिन रामलाल को खाद - बीज खरीदने के लिए शहर जाना था । जाते - जाते उसने कहा " बिमला , नई बैलगाड़ी है , यह अपनी बेटी की तरह हैं थोड़ा इसका ध्यान रखना । ' उसने हां में सिर हिला दिया ।
बैलगाड़ी दिन भर धूप में ही खड़ी थी । दिन में बिमला ने जब बैलगाड़ी को हाथ लगाया , तो वह बैलगाड़ी उसे गर्म लगी । उसे याद आया कि उसके पति ने कहा था कि बैलगाड़ी उसकी बेटी की तरह है , तो उसने सोचा कि मुझे अपनी बैलगाड़ी का ज्यादा ख्याल रखना चाहिए । उसने सोचा कि बैलगाड़ी को तो बुरखार हो गया है ।
वह झट से अपनी पड़ोस की ताई को बुला लाई । ताई हमेशा बिमला के कामों में नुस्ख निकाला करती थी । ताई ने भी सोचा खूब अच्छा मौका है बिमला को ज्यादा मूर्ख साबित करने का , उसने भी बैलगाड़ी को हाथ लगाया और कहा ' बिमला , सच में तेरी बैलगाड़ी को तो बुरखार आ गया है ।
तुम ऐसा करो घर के सारे बिस्तर लाकर इस पर डाल दो , शायद बुखार कम हो जाए । ' बिमला ने तुरंत घर के सारे रजाई बिस्तर गाड़ी पर डाल दिए । रात को वह सारा घर का काम खत्म करके गाड़ी की तबीयत देखने गई । गाड़ी को हाथ लगाया तो गाड़ी एकदम ठंडी हो चुकी थी । फौरन ताई को आवाज लगाई- ' ताई जल्दी आओ , देखो मेरी गाड़ी को क्या हो गया ।
' ताई ने गाड़ी को छुआ और कहा- ' तेरी गाड़ी तो ठंडी हो गई मतलब मर गई , अब तो तू जल्दी से इसको जला दे । मरी हुई चीज को ज्यादा देर घर में रखने का रिवाज नहीं है । ' अगले दिन रामलाल शहर से लौटा तो उसने पूछा- बिमला गाड़ी कहां है ?
घर में बैठने के लिए । एक भी बिस्तर नहीं है और बेटा राजू कहां है , नजर नहीं आ रहा । बिमला तो गाड़ी के मर जाने के कारण उदास बैठी थी । रोते रोते बोली- ' आप शहर क्या गए पीछे से आपकी गाड़ी को तो तेज बुखार आ गया । सारे घर के गर्म कपड़े गाड़ी पर डाले फिर भी ठीक नहीं हुई ।
रात होते - होते गाड़ी ठंडी होकर मर गई तो मैंने बिस्तर समेत गाड़ी का दाह संस्कार कर दिया । राजू गाड़ी के अस्थि कलश को लेकर हरिद्वार गया है । इसीलिए बैलगाड़ी नहीं है , बिस्तर नहीं हैं , राजू भी नहीं है । ' सारा किस्सा सुन रामलाल ने अपना सिर नोंच लिया कि हे भगवान ! कैसी बावली औरत से शादी हुई है ।
उसने समझाया कि हे बुद्धिमान बिमला , बुखार तो जीवित लोगों को आता है , निर्जीव गाड़ी , हल , फावड़े को नहीं । बिमला ने कहा कि आप ही ने तो कहा था कि वह अपनी बेटी की तरह है , तो मैने सोचा कि यदि आप उस बैलगाड़ी को इतना ही चाहते हैं , तो मुझे भी उसकी सेहत का पूरा - पूरा ध्यान रखना चाहिए ।
मुझसे उसका बुखार देखा नहीं गया और मैं परेशान हो गई इसीलिए मुझे यह कदम उठाना पड़ा । रामलाल ने कहा मूर्ख अपनी किसी भी प्रिय चीज को अपने बच्चों की तरह मानना चाहिए लेकिन निजीव चीज के साथ जीवित चीजों की तरह व्यवहार थोड़े ही करना चाहिए । बिमला के पैरों तले की जमीन खिसक गई ।
उसने कहा- तो आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया । ' रामलाल ने बिमला के साथ - साथ ताई की भी अच्छी खबर ली । पूरे गांव में रामलाल के परिवार का मजाक बन गया । उनके घर को बीमार बैलगाड़ी वालों का घर कहा जाने लगा । बिमला ने पश्चाताप किया और कहा- आगे से ध्यान रखूंगी । पर रामलाल ने डांटकर कहा- अब पछताये होत का , जब चिड़िया चुग गई खेत '
और रामलाल निकल पड़ा खाती के घर की ओर नई बैलगाड़ी बनवाने के लिए । उधर राजू भी अपना सिर मुंडाकर चला आ रहा था । रामलाल ने एक बार फिर अपना सिर पीट लिया और कहा बेटा तेरी मां अगर मूर्खता कर रही थी तो तू तो समझदार था।
राजू ने कहा यदि आप अपने पिता की आज्ञा का पालन कर मेरी मां से विवाह कर सकते हैं तो फिर मैं अपनी मां की आज्ञा से बैलगाड़ी का दाहसंस्कार क्यों नहीं कर सकता ?
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