हर्ष की वीरता
हर्ष ने घर में घुसते ही अपने दादा जी को ढूंढा । वह अपने हाथ में पोलिथीन का थैला लिए हुए था । ऐसा लग रहा था मानो वह दादा जी से मिलने के लिए बहुत जल्दी में हो । उसे वह छत पर मिले । वह वहां धूप में बैठे अखबार पढ़ रहे थे ।
" दादा जी , आप सारा दिन अखबार पढ़ते रहते हैं । आपको अपने प्यारे पोते से भी बात करने की फुर्सत नहीं मिलती । मैं हूं कि आपसे बात करने के लिए हमेशा तरसता रहता हूं । " हर्ष ने अपने दादा जी को देखते ही शिकायती स्वर में कहा ।
' अरे हर्ष , तू कब आया बेटा ? तू तो सचमुच मेरा प्यारा पोता है। " उन्होंने अखबार एक ओर रख कर हर्ष की पीठ थपथपाते हुए कहा , " अखबार तो मैं समय बिताने के लिए पढ़ता हूं बेटा । कहो , तुम्हें जो भी कहना हो । दिल खोल कर कहो । ' आपको तो मालूम ही है दादाजी कि पिताजी सरकारी नौकर हैं । उन्हें ड्यूटी पर जाना पड़ता है ।
वैसे भी उन्हें मुझसे बात करने का समय कम ही मिलता है । मम्मी घर के कामों में व्यस्त रहती हैं । ऐसे में यदि मुझे कुछ पूछना हो तो आपसे ही पूछूंगा । आप खुद भी मेरे बिना बेचैन - से रहते हैं । मुझे यदि घर आने में जरा सी देर हो जाती है तो आप मुझे ढूंढने के लिए बाहर निकल पड़ते हैं । " " ठीक कह रहे हो हर्ष तुम ।
तुम्हारे बिना मेरा भी यहां मन नहीं लगता है बेटा । पूछो , जो भी पूछना हो । " ' दादा जी , विपत्ति में फंसे किसी व्यक्ति की सहायता हमें करनी चाहिए या नहीं ? मुझे लगा कि इस प्रश्न का सही उत्तर आप ही दे सकते हैं , इसलिए पूछ रहा हूं । " हर्ष बोला। " हां बेटा , हमें विपत्ति में फंसे हर व्यक्ति की सहायता अवश्य करनी चाहिए ।
मैं तो यहां तक कहूंगा कि हमें अपनी सामर्थ्य अनुसार हर जरूरतमंद की सहायता करनी चाहिए । सच्चे इंसान का यही कर्त्तव्य है । " दादाजी ने उत्तर दिया । " सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त इंसान के समीप से गुजरने वाला व्यक्ति यदि पुलिस की जांच - पड़ताल के भय से उसे उठा कर अस्पताल नहीं ले जाता , ऐसे व्यक्ति को आप कायर कहेंगे या वीर
जब दुर्घटनाग्रस्त इंसान के प्राण बचाने के लिए ऐसा किया जाना बहुत ही जरूरी हो ? " हर्ष ने दूसरा प्रश्न पूछा । अ ... अ ... ऐसा क्यों पूछ रहे हो तुम ? " पलट कर प्रश्न पूछते हुए दादा जी की जुबान लड़खड़ा गई थी । उनका दायां हाथ खुद के चेहरे से पसीना पोंछने के लिए माथे तक जा पहुंचा था । हालांकि चेहरे पर पसीना था ही नहीं ।
तो बधाई दीजिए अपने आप को , और मिठाई खिलाइए मुझे । आप का यह प्यारा पोता आज कायर बनने की अपेक्षा वीर बन कर लौटा है ।
' ओह दादा जी ! आप घबरा क्यों रहे हैं ? मैं तो सिर्फ ज्ञान बढ़ाने के लिए ऐसा पूछ रहा हूं । बताइए न प्लीज़ । " हर्ष मचल उठा था । " कायर ! " दादाजी ने बहुत धीमे से कहा । मानो उनसे किसी ने जबरदस्ती कहलवाया हो । " तो बधाई दीजिए अपने आप को , और मिठाई खिलाइए मुझे ।
आप का यह प्यारा पोता आज कायर बनने की अपेक्षा वीर बन कर लौटा है । " खुशी से छलछलाता स्वर था हर्ष का । ' वह कैसे ? " एकदम से पूछा था दादाजी ने । ' चौराहे पर आज एक दुर्घटना हो गई थी । जिसमें कोई गाड़ीवाला एक बूढ़े आदमी को कुचल कर लहूलुहान कर दिया और आगे निकल गया । उसका सिर सड़क से टकरा कर फट गया था ।
सिर से खून बहने लगा था और वह वहीं सड़क पर पड़ा तड़प रहा था । वह हाय - हाय किए जा रहा था । परन्तु पुलिस व कचहरी के चक्कर में फंसने के भय से किसी ने उसे उठा कर अस्पताल नहीं पहुंचाया । मैं अभी - अभी ट्यूशन पढ़ कर लौट रहा था । मुझसे उसका तड़पना देखा न गया ।
मैंने उसे थ्री - व्हीलर में डाल कर अस्पताल पहुंचाया । थ्री - व्हीलर वाले को अपनी जेब से पचास रुपए दिए । वैसे तो उसने भी उस बूढ़े को ले जाने से साफ इंकार कर दिया था । कहिए , वीरता का काम किया है कि नहीं मैंने ? " हर्ष ने अपनी बात समाप्त करते हुए दादाजी से पूछा था । "
दादाजी ने चुपचाप अपना कांपता - सा हाथ पोते के सिर पर दिया । वे स्वयं कुछ देर पहले दूसरों की देखा - देखी उस बूढ़े के पास से चुपचाप निकल आए थे। तब वह चाह कर भी उसकी सहायता नहीं कर पाए थे । अब उनका मन स्वयं को । धिक्कार रहा था । - - रामकुमार आत्रेय
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