बैंगन का भुर्ता
लेकिन ओकापी के राजा बनते ही उसके इर्द - गिर्द खुशामदी लोगों की भीड़ एकत्र होने लगी । वे बात - बात पर राजा की तारीफ करते थे । ओकापी को यह सब बुरा लगता था । वह वीर प्रवृत्ति का व्यक्ति था । उसे इस प्रकार की चाटुकारिता तथा खुशामद से सख्त नफरत थी ।
लेकिन उसके मना करने के बावजूद वे लोग अपनी आदत से बाज नहीं आते थे । चाह कर भी ओकापी उनके साथ सख्ती नहीं कर पाता था परन्तु चाटुकारिता से वह परेशान भी बहुत था । राजा जब अधिक परेशान हो गया तो एक दिन उसने अपने गुरु के पास जा कर परामर्श करने का निश्चय किया ।
वह किसी तरह उन खुशामदी लोगों से छुटकारा पाना चाहता था। पर छुटकारा पाने के लिए यह जानना बहुत जरूरी था कि कौन - कौन खुशामदी हैं ? ऐसे लोगों का पता लगाने का उपाय राजा ओकापी की समझ में नहीं आ रहा था । इसलिए उसने गुरु की शरण में जाने का निश्चय किया था ।
उसका गुरु दूर एक जंगल में कुटिया बना कर रहता था । ओकापी ने उसके पास जा कर अपनी मनोव्यथा कह सुनाई । गुरु बोला , " सुनो , मैं तुम्हें खुशामदी लोगों से छुटकारा पाने का एक आसान - सा उपाय बताता हूं । मेरी बात ध्यान से सुनना । " गुरु की बात सुन ओकापी की खुशी का ठिकाना न रहा ।
उसने गुरु को प्रणाम किया और अपने किले में लौट आया । अगले दिन सवेरे उसने नाश्ते में बैंगन का भुर्ता बनाने का आदेश दिया । रसोइये ने बड़ी लगन से बैंगन का भुर्ता बनाया और नाश्ते के समय राजा के सम्मुख पेश कर दिया । भुर्ता सचमुच स्वादिष्ट था ।
राजा चाव से खाने लगा और खाते वक्त बीच - बीच में तारीफ भी करता जाता । नाश्ते के कक्ष में राजा के दरबार के कई खुशामदी लोग भी मौजूद थे । उन्होंने जब ओकापी को भुर्ते की तारीफ करते देखा तो भला वे क्यों चुप रहते । वे सब भी हां - में - हां मिलाने लगे । " हां , वीर सरदार ! बैंगन का भुर्त बड़ा स्वादिष्ट होता है ।
इसके खाने से शरीर अधिक बलशाली होता है । " एक दरबारी बैंगन की प्रशंसा के पुल बांधता हुआ बोला । ओकापी ने सुना तो उसके होंठों पर मुस्कान थिरक आई ।
नाश्ते के कक्ष में राजा के दरबार के कई खुशामदी लोग भी मौजूद थे । उन्होंने जब ओकापी को भुर्ते की तारीफ करते देखा तो भला वे क्यों चुप रहते । वे सब भी हां - में - हां मिलाने लगे ।
वह जोर-जोर से खिलखिला कर हंसने लगा । अन्य खुशामदियों ने राजा को हंसते देखा तो उनसे भी न रहा गया । वे भी जोर - जोर से हंसने लगे । ओकापी ने नाश्ता खत्म कर लिया और आराम से बैठ गया । अभी कुछ ही समय गुजरा था कि राजा पेट पर हाथ फेरते हुए दर्द से कराहने लगा ।
खुशामदियों ने अवसर अनुकूल पाया । वे पास खिसक आए और सहानुभूति पूर्वक पूछने लगे , " हे सरदार ! आपको अचानक क्या हो गया ? " ओकापी बोला , " लगता है , बैंगन का भुर्ता खाने से पेट में दर्द हो गया है । " एक खुशामदी तुरन्त बोला , " बैंगन का भुर्ता कभी नहीं खाना चाहिए । यह वादी करता है । "
दूसरा बोला , " मैं तो वीर सरदार को सुझाव दूंगा बैंगन की खेती पर ही पाबंदी लगा दी जाए । " तीसरा भला कहां चूकने वाला था । वह बोला , ' हां , बैंगन एक निकृष्ट सब्जी है । " ओकापी का चेहरा क्रोध से लाल हो गया । वह चीख कर बोला , " खामोश ! अभी थोड़ी देर पहले तो तुम सब बैंगन की तारीफ करते नहीं थक रहे थे , अब बुराई शुरू कर दी ! "
चाटुकार दरबारियों के चेहरे शर्म से पीले पड़ गए । वे अपने चेहरे छुपाने लगे । एक दरबारी ने साहस एकत्र करके कहा , " सरदार ! हम तो आपके मन देख कर बातें करते हैं । " दूसरा बोला , " आपको खुश रखना ही तो हमारा परम कर्त्तव्य है । " तीसरा बोला , " हम आपकी बात कैसे काट सकते हैं । "
" तुम लोग हमारे दरबारी हो । हमें सच्चाई से अवगत कराना तुम्हारा परम कर्त्तव्य है । परन्तु तुम तो अपने स्वार्थ के लिए हमारी खुशामद में लगे रहते हो । तुम लोगों को हमारे दरबारी बने रहने का कोई हक नहीं है । तुम लोग न राज्य के हितैषी हो , न हमारे । " राजा ओकापी क्रोध से बिफर उठे , " गुणहीन लोग चापलूसी करके ही अपना काम चलाते हैं ।
कर्त्तव्यनिष्ठ और कर्मवीर प्राणी को भला ऐसी बातों के लिए समय ही कहां मिल पाता है । " खुशामदी दरबारियों के चेहरे लटक गए । वे समझ चुके थे कि राजा पर उनकी चापलूसी का भेद खुल चुका है ।
अत : उन्होंने वहां से निकल चलने में ही अपनी भलाई समझी । इस घटना के पश्चात सभी चापलूस और खुशामदी लोगों से राजा को हमेशा हमेशा के लिए छुटकारा मिल गया । - प्रमोद त्रिवेदी “ पुष्प "
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