किस्मत बड़ी या मेहनत
एक बार मेहनत और किस्मत साथ - साथ चली जा रही थी । दोनों में से कौन बड़ा है और ज्यादा श्रेष्ठ है , इस बात को लेकर दोनों के बीच विवाद शुरू हो गया । दोनो ही अपने आपको बड़ा और श्रेष्ठ साबित करने पर तुली थीं । इसी बहसबाजी के दौरान किस्मत ने मेहनत से कहा , " मेरे बगैर किसी को कुछ भी नहीं मिल सकता ।
इसी से तुम मेरे महत्व को समझ सकती हो कि मैं यानी किस्मत कितनी बलवान हूं । " लेकिन मेहनत किस्मत के इन तर्कों से सहमत न हुई । दोनों जिस रास्ते से गुजर रही थीं , उसी रास्ते से उस समय एक बहुत गरीब व्यक्ति भी गुजर रहा था । इस पर किस्मत ने उस व्यक्ति के आगे एक हीरे की अंगूठी डाल दी । जब उस व्यक्ति की नजर हीरे की अंगूठी पर पड़ी तो वह खुद को किस्मत का धनी समझ कर वह अंगूठी ले चलता बना ।
चलते - चलते उसे प्यास लगी तो वह थोड़ी ही दूर एक नदी किनारे पानी पीने के लिए रुका । जैसे ही वह पानी पीने के लिए नीचे की ओर झुका , अंगूठी उसकी जेब से निकल कर पानी में जा गिरी और उसे एक मछली ने निगल लिया । इस पर वह व्यक्ति बहुत दुखी हुआ और अपनी किस्मत को कोसता हुआ आगे बढ़ चला ।
वह अभी कुछ ही दूर गया था कि किस्मत ने उसके आगे अब की बार एक हीरे का हार डाल दिया । हीरे का हार रास्ते में पड़ा मिलने पर एक बार फिर वह अपनी किस्मत पर खुश हुआ और खुशी के इसी आलम में आगे बढ़ चला । थोड़ी ही दूर जाने पर अचानक एक कौआ उड़ता हुआ आया और हार पर झपट कर वह हार लेकर चम्पत हो गया । बेचारा फिर अपनी किस्मत को कोसते हुए आगे की ओर चल पड़ा ।
इस बार भी वह थोड़ी ही दूर गया था कि उसे मार्ग में एक बड़ा - सा पारस पत्थर पड़ा दिखाई दिया । इस बार वह यह सोचकर बड़ा खुश हुआ कि अब तो वह इसे बेच कर बहुत बड़ा आदमी बन जाएगा और फिर उसे कभी जीवन में मेहनत - मजदूरी करने की जरूरत नहीं पड़ेगी । पारस पत्थर लिए वह अपने घर पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी पत्नी पड़ोस में ही गई हुई है ।
पारस पत्थर रख वह खुशी खुशी पत्नी को बुलाने चला गया लेकिन इसी दौरान एक अन्य पड़ोसन किसी काम से उसके घर आई और पारस पत्थर पर नजर पड़ते ही चुपचाप उसे उठा कर चलती बनी । उधर जब वह अपनी पत्नी के साथ घर लौटा तो पारस पत्थर को गायब पाया और निराश होकर अबकी बार तो अपनी किस्मत पर रोने लगा ।
हीरे की अंगूठी , हीरे का हार , पारस पत्थर आदि बेशकीमती चीजें मिलने के बाद उसने सोचा था कि अब उसे जीवन में कभी मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी लेकिन भूखे - प्यासे आखिर कब तक जीया जा सकता था । आखिर उसने मेहनत करके जीवनयापन करने की ठान ली और काम की तलाश में घर से निकल पड़ा ।
किस्मत के बाद अब बारी थी मेहनत की परीक्षा की । हताश निराश वह व्यक्ति अपनी ही धुन में जा रहा था कि रास्ते में उसे एक कुल्हाड़ी नजर आई , जिसे वहां मेहनत ने रखा था । कुल्हाड़ी पाकर वह बहद प्रसन्न हुआ और लकड़ी काटने के लिए आगे बढ़ चला । एक वृक्ष के पास पहुंच कर वह उसे काटने लगा कि तभी पेड काटते - काटते उसने देखा कि पेड़ की खोह में एक हीरे का हार रखा है ।
हार देख कर वह तत्क्षण उसे पहचान गया कि वह वही हार है , जो उसे रास्ते में मिला था और एक कौआ इसे लेकर उड़ गया था। लकड़ियों का ढेर तथा हार लेकर वह घर पहुंचा । हार देख कर उसकी पत्नी भी बहुत खुश हुई । दोनों मिल कर अब मेहनत कर खुशी - खुशी जीवन यापन करने लगे । इस बीच उस व्यक्ति के दिमाग में एक दिन अचानक यह बात आई कि क्यों न मछलियां पकड़ कर मछली बेचने का ही काम किया जाए ।
यह सोच कर वह नदी के पास जा पहुंचा और ढेर सारी मछलियां पकड़ लाया । मछलियां लेकर वह बाजार पहुंचा तो उसकी सारी मछलियां अच्छे दाम पर बिक गईं , सिर्फ एक मछली बाकी बच गई । उसने सोचा कि इस मछली को आज रात घर में ही पका लेंगे । घर पहुंच कर जैसे ही पकाने के लिए उसने मछली को काटा तो मछली के पेट से हीरे की वही अंगूठी बाहर आ गिरी , जो उससे पानी पीते वक्त नदी में गिर गई थी ।
हीरे की अंगूठी वापस मिलने पर पति - पत्नी की खुशी का कोई ठिकाना न रहा । इसी खुशी के आलम में ही दोनों जोर - जोर से चिल्लाने लगे , " मिल गया , मिल गया । " इस पर उनकी पड़ोसन , जिसने उनके घर से पारस पत्थर चुराया था , उसे लगा कि शायद उन लोगों ने मेरे घर में रखे पारस पत्थर को देख लिया है ।
यही सोच कर उसने पारस पत्थर उन्हें लौटाते हुए उनसे क्षमा मांगी और भविष्य में ऐसी गलती न करने का आश्वासन दिया । अब तो पति - पत्नी और भी खुश हुए और खुशी खुशी रहने लगे लेकिन उन्होंने मेहनत करना फिर भी नहीं छोड़ा । यह सब देख किस्मत ने भी माना कि मेहनत से बड़ी कोई चीज नहीं है और इसके बिना कुछ भी संभव नहीं है ।
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