Top Ad unit 728 × 90

Breaking News

InterestingStories

घमंडी राजकुमार सुधर गया | राजा का बेटा जो बहुत उपद्रवी था आखिर वह कैसे सुधरा | Moral and Interesting story

राजकुमार सुधर गया (कथा)



घमंडी राजकुमार , राजा की कहानी,एक था राजा,राजकुमार की कहानी, raja ki kahani in hindi, दयालु राजा, राजा विक्रम सिंह, राजा का बेटा, राजा का निर्दई बेटा,शिक्षाप्रद कहानी,moral stories, धार्मिक कहानी, राजा का महल,राजा रानी की कहानी, धर्म की रक्षा, राजकुमार सुधर गया, Discoveryworldhindi.com


मिथलेशगढ़  का राजा वीर सिंह बड़ा ही प्रजा पालक , न्यायप्रिय ,नम्र एवं प्रजावत्सल था । उसके राज्य में सबको समान अधिकार प्राप्त थे । जाति धर्म का कोई भेदभाव नहीं था । चारों ओर सच्चाई , ईमानदारी तथा भाईचारे का बोलबाला था । 



चोर लुटेरों का नाम मात्र भी डर नहीं था और न ही घर के दरवाजों पर ताले लगाए जाते थे । वीर सिंह अपनी प्रजा के सुख - दुख में बराबर का भागीदार रहता । इसलिए प्रजा भी अपने राजा का बहुत सम्मान करती थी । राजा वीर सिंह जितने नैतिक एवं जीवन मूल्यों के उपासक थे , उनका पुत्र विक्रम सिंह उतना ही विरोधी प्रवृत्ति का था । 



वह बहुत ही दुष्ट , उद्दण्ड , निर्दयी तथा उत्पाती था । वह प्रतिदिन नए - नए उपद्रव कर निर्दोष तथा सीधे - सादे लोगों को डराया करता , फिर भी राजा से विक्रम सिंह की शिकायत करने का कोई साहस नहीं कर पाता था । प्रजा की इस कमजोरी को ताड़ कर विक्रम सिंह और अधिक से अधिक क्रूर व अत्याचारी होता गया । 



विक्रम सिंह को राजा का पुत्र होने का भी बहुत घमंड था । राजा वीर सिंह से राजकुमार विक्रम सिंह के व्यवहार की शिकायतें छुपी न रह सकीं । राजा ने उसे बहुत समझाया लेकिन विक्रम सिंह पिता की बातों को एक कान सुनता और दूसरे कान से निकाल देता । 



हार कर राजा ने बहुत से उपदेशक एवं शिक्षा शास्त्री राजकुमार को सदशिक्षा देने के लिए नियुक्त किए । उन्होंने भी राजकुमार विक्रम सिंह की दुर्बुद्धि को सुधारने की बहुत कोशिश की , लेकिन सब बेकार । विक्रम सिंह के व्यवहार में जरा - सा भी सुधार न हो सका । 



जैसे - जैसे विक्रम सिंह की उम्र बढ़ती गई वैसे - वैसे उसकी धृष्टता भी बढ़ती गई । प्रजा उसके उत्पीड़न से परेशान हो हा - हाकार कर उठी । एक दिन मिथलेशगढ़ में भिषगाचार्य नाम के एक प्रसिद्ध महात्मा पधारे । राजा वीर सिंह ने उन्हें ससम्मान अपने यहां आमंत्रित किया और विनम्रता से हाथ जोड़ते हुए कहा , 



“ ऋषिवर , आपकी अनुकम्पा से मेरे राज्य में कोई भी कमी नहीं है । चारों ओर खुशहाली है लेकिन मैं अपने पुत्र के व्यवहार से बहुत दुखी हूं । वह निर्दोष लोगों को कष्ट पहुंचाता है । उसके कारण मैं बड़ा चिंतित हूं । वह हमारा एकमात्र कुलदीपक है । मैं उसे इस रूप में नहीं देख सकता । आप कुछ कीजिए ऋषिवर , समय रहते कुछ कीजिए । " 



यह कहते - कहते राजा वीर सिंह के नेत्रों में आंसू छलछला आए। भिषगाचार्य विक्रम सिंह की उद्दंड प्रवृत्ति से पूर्णरूपेण परिचित थे लेकिन राजा के विनम्र निवेदन को वह अस्वीकार न कर सके । उन्होंने गर्दन हिला कर मौन स्वीकृति प्रदान कर दी । भिषगाचार्य ने विक्रम सिंह को सुधारने के अनेक प्रयास किए । 



लेकिन विक्रम सिंह के व्यवहार को बदलने में वह भी सफल नहीं हो सके । अंत में एक दिन भिषगाचार्य विक्रम सिंह को घुमाते - घुमाते एक पौधे के पास ले गए और बोले , " वत्स , इस नन्हे से पौधे की एक पत्ती चख कर तो देखो , कैसा स्वाद है इसका ? " 



विक्रम सिंह के व्यवहार में जरा - सा भी सुधार न हो सका । जैसे - जैसे विक्रम सिंह की उम्र बढ़ती गई वैसे - वैसे उसकी धृष्टता भी बढ़ती गई । प्रजा उसके उत्पीड़न से परेशान हो हा - हाकार कर उठी ।



विक्रम सिंह ने पौधे की एक पत्ती तोड़ कर जैसे ही चबानी शुरू की उसका पूरा मुंह अजीब - सी कड़वाहट से भर गया । उसने तुरन्त पत्ती को मुंह से निकाल कर फैंक दिया , साथ ही क्रोध में आकर उस छोटे से पौधे को भी उखाड़ डाला । 



भिषगाचार्य ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा , वत्स , यह तुमने क्या किया ? इस नन्हे से पौधे को क्यों उखाड़ फैंका ? " " महात्मा जी , यह नन्हा - सा पौधा अपनी शैशवावस्था में ही इतना कड़वा है तो बड़ा होने पर तो यह विष वृक्ष ही बन जाएगा। ऐसे पौधे को तो जड़ से उखाड़ कर फैंकना ही उचित था , अन्यथा यह तो लोगों के लिए समस्या ही बन जाता । " 



विक्रम सिंह की बात सुन भिषगाचार्य ने गंभीर स्वर में कहा , " वत्स , अगर तुम्हारे व्यवहार से पीड़ित प्रजा भी तुम्हारे प्रति ऐसी ही नीति से काम ले तो तुम्हारी क्या दशा होगी ? स्मरण रखो पुत्र दुनिया में शील गुण ही सर्वोत्तम गुण है । यदि तुम फलना - फूलना चाहते हो तो स्वयं भी इन्हीं गुणों का अनुसरण करो । इसी में तुम्हारा कल्याण है । "  



विक्रम सिंह भिषगाचार्य की बातों से बहुत प्रभावित हुआ । विक्रम सिंह ने उसी दिन से क्रोध , हिंसा , असत्य एवं दुष्टता को त्याग कर नम्रता , अहिंसा , सत्य एवं शिष्टता की राह को अपना लिया ।




🙏दोस्तों अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो तो आप कमेंट करना ना भूलें नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी कीमती राय जरूर दें। Discovery World Hindi पर बने रहने के लिए हृदय से धन्यवाद ।


यह भी पढ़ें:-




           💙💙💙 Discovery World 💙💙💙



घमंडी राजकुमार सुधर गया | राजा का बेटा जो बहुत उपद्रवी था आखिर वह कैसे सुधरा | Moral and Interesting story Reviewed by Jeetender on January 29, 2022 Rating: 5

No comments:

Write the Comments

Discovery World All Right Reseved |

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.