होजा बने अमीर
मुराद अमीर तो था लेकिन उतना ही कंजूस भी था । शहर का सबसे बड़ा कंजूस था वह । एक दिन होजा ने उससे पूछा, " क्या आप मुझे अपनी जमा की हुई दौलत का भंडार दिखा सकते हैं । बदले में मैं आपको एक दीनार दूंगा । " मुराद बड़ा खुश हुआ ।
उसने एक दीनार अपनी जेब के हवाले किया और होज़ा को एक विशाल कमरे में ले गया जहां उसकी दौलत का अंबार लगा हुआ था । होज़ा ने सोने - चांदी और हीरे - मोतियों के उस ढेर पर निगाह डाली और चुपचाप बाहर आ गए । " अब मैं भी उतना ही अमीर हूं जितने कि आप ।
" उन्होंने मुराद से कहा । ' भला यह कैसे हो सकता है ? " मुराद ने परेशान होकर पूछा । आप अपनी दौलत को खर्च तो करते नहीं , सिर्फ उसे देखते रहते हैं । " , होज़ा ने जवाब दिया , " अब इसे मैंने भी देख लिया । इसलिए मैं भी आपके बराबर अमीर हुआ या नहीं ? "
घोड़े का भोजन
एक आदमी होज़ा से अपने घोड़े के बारे में शिकायत कर रहा था। " यह नाममात्र के लिए खाता - पीता है । " वह बोला , " सिर्फ इतना कि जिंदा रह सके । तुम्हारे ख्याल से इसे क्या तकलीफ है ? " " तुम तो खूब खाते - पीते हो न " होज़ा ने पूछा।"
मैं ... ? मैं तो भरपेट खाता हूं । एक बार में तीन प्लेट पुलाव , एक भुना हुआ मुर्गा , बारह रोटियां , सात केले और हांडी भर खीर । " आदमी ने जवाब दिया । " तब तो तुम्हारे घोड़े को कोई तकलीफ नहीं है ! " होज़ा ने कहा , " फर्क सिर्फ इतना है कि तुम घोड़े की तरह खाते हो और वह आदमी की तरह।"
शेखू और जोखू की नोकझोंक
बादशाह अकबर के राज में आगरा की उसी गली में शेखू और जोखू आमने - सामने के मकानों में रहते थे । दोनों में नोक - झोंक चला करती थी । शेखू हमेशा जोखू को फंसाने और नीचा दिखाने की जुगत सोचता रहता था ।
एक सुबह शेखू ने अपने घर के दरवाजे पर खड़े होकर ऊंची आवाज में कहा , " खुदा की खुदाई खुदा ही जाने । " सामने के घर से जोखू चिल्लाया , " खुदा की खुदाई मैं भी जानूं । " ऐसे ही मौके की तलाश शेखू को थी । उसने जाकर बादशाह से शिकायत कर दी कि जोखू ने खुदा की तौहीन की है ।
जोखू को दरबार में हाजिर होने का हुक्म हुआ । वहां जोखू से बादशाह ने पूछा , " जोखू ! क्या तुमने सचमुच यह कहा था कि खुदा की खुदाई मैं भी जानता हूं ? " जोखू ने बिना डरे जवाब दिया , " हां , जहांपनाह , मैंने यह कहा लेकिन मैं अपनी बात साबित करके दिखा सकता बादशाह चकित हुआ।
बोला , " अच्छा ! तो साबित करके दिखाओ । " जोखू ने महल के पास बहती यमुना नदी की ओर इशारा करके कहा , " हजूर शेखू यह बताए कि अगर यह नदी खुदा की खुदाई नहीं है तो और किसकी है । " बादशाह ने उसकी बात स्वीकार कर ली ।
वह मान गया कि नदी खुदा की खुदाई का एक नमूना है और यह सभी जानते हैं । उसने जोखू को बरी कर दिया । शेखू बुरी तरह चिढ़ गया । बहुत सोचने के बाद एक दिन सुबह उसने अपने घर के दरवाजे पर खड़े होकर ऊंची आवाज में कहा , " मेरे दिल की मैं ही जानूं । " जैसी कि शेखू को आशा थी , जोखू अपने घर के दरवाजे से चिल्लाया , " तेरे दिल की मैं भी जानूं ! "
मामला फिर बादशाह अकबर के पास पहुंचा और जोखू को फिर दरबार में हाजिर होना पड़ा । वहां शेखू और जोखू के बीच यह झड़प हुई । शेखू , " मेरे दिल की मैं ही जानूं । " जोखू , " तेरे दिल की मैं भी जानूं । " शेखू , " तो फिर बता मेरे दिल में क्या है? " जोखू , “ तेरे दिल में यह है कि खुदा बादशाह सलामत को एक बेटा दे । "
बात ऐसी थी कि शहजादा सलीम का तब तक जन्म नहीं हुआ था और अकबर बेटा पाने के लिए पीरों - फकीरों , देवी देवताओं की मनौतियां मानता फिर रहा था । अब शेखू दरबार में यह कैसे कह देता कि उसके दिल में यह चाह नहीं है कि बादशाह सलामत के बेटा हो । उसे यह कबूल करना पड़ा कि उसके दिल में यही था ।
शेखू खिसिया कर रह गया और इनाम में लदा जोखू अपनी मूंछों पर ताव देता हुआ अपने घर गया ।
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