अनुराधा की कहानी
रविवार के दिन अन्य घरों की महिलाओं की भांति किरण मल्होत्रा भी काफी व्यस्त थी । थोड़ा सवेरे उठना ही पड़ा , नहीं तो सारा काम होगा कैसे ? आज दीवारों की तस्वीरों को साफ किया , घर के सभी कोनों में लगी मकड़ियों के जालों को लम्बी पतली छड़ी में समेटा और खिड़कियों के लोहे को बड़े रुमाल से पोंछा। बेटी अनुराधा मां की सहायता में व्यस्त थी ।
उसकी टीचर ने कहा था कि मां की घरेलू काम में यथासंभव सहायता करनी चाहिए । सो , आठ वर्ष की अनुराधा बड़े उत्साह से मां के काम में सहायता करती थी । हाथ में झाडू एवं बड़ा रुमाल लेकर श्रीमती मल्होत्रा इतनी व्यस्त थीं कि उन्हें कुछ याद ही नहीं था । " भई वाह ! आज तो लगता है सारा घर पूरे वर्ष के लिए साफ सुथरा हो जाएगा ।
अरे ! मेरी अनुराधा भी मां की सहायता कर रही है । वैरी गुड! वैरी गुड ! आइए अब थोड़ी चाय तो पी लीजिए । ये रहे अनु के लिए दूध और बिस्कुट। मैंने अपने हाथों से ये सब तैयार किया है। " श्री मल्होत्रा ट्रे पर चाय और दूध का गिलास रखते हुए बोले । "पापा गीता के लिए कुछ नहीं बनाया ? उसके लिए भी दूध लाइए न प्लीज । "
अनु गीता को देखती हुई बोली । श्री मल्होत्रा को कोई उत्तर न सूझ रहा था । इस बीच श्रीमती मल्होत्रा बोल उठीं , " ठीक है , ठीक है । उसे भी दूंगी । पहले तुम तो ले लो । आ जा , इधर आ। " अनुराधा कभी मम्मी पापा की ओर देखती तो कभी गीता की ओर । दस वर्ष की गीता उनके घर की नौकरानी थी । वर्ष भर पहले इन लोगों के घर काम पर लगी थी । बर्तन मांजना , घर में झाडू देना , पोंछा लगाना उसका काम था ।
निकट की बस्ती में उसकी मां रहती थी । उसके पिता मजदूरी करते थे । एक दिन सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गई । परिवार पर वज्र टूट पड़ा । उसके दो छोटे भाई भी थे । लाचार हो उसकी मां ने किरण मल्होत्रा मेम साहब के यहां गीता को काम पर लगा दिया । मां ने सोचा गीता को दो समय खाना - जलपान तो मिलेगा । स्वयं तथा दो बच्चों के लिए छोटा - मोटा काम करती । मेम साहब के यहां से गीता का मासिक पगार ले आती तो घर चलाती ।
" नहीं मम्मी ! गीता को भी दीजिए । पापा , मम्मी को बोलिए न । " अनुराधा मचल रही थी । " बेटे , उसे भी मम्मी देगी न। पहले तुम तो खा लो । " श्री मल्होत्रा बोले । " नहीं , उसे भी दूध - बिस्कुट दीजिए , नहीं तो मैं नहीं खाऊंगी । " " यह क्या बदतमीजी है । मैंने कहा न , उसे भी दूंगी । नौकर या नौकरानी बाद में खाती हैं । "
श्रीमती मल्होत्रा क्रोध में बोल रही थीं । " क्यों मम्मी , नौकर- नौकरानी बाद में क्यों खाती हैं ? हम पहले क्यों ? नहीं , वह भी हमारे साथ खाएगी और इसी टेबल पर खाएगी। " अनुराधा ने भी हठ पकड़ लिया । " तुम्हें दूध पीना है या नहीं ? नहीं पीना है तो जाओ यहां से । बैठो गीता के साथ , खेलो उसके साथ । " श्रीमती मल्होत्रा क्रोध से बोलीं ।
अनुराधा के हृदय को चोट लगी । वह रोती - रोती अपने कमरे में चली गई । पीछे - पीछे गीता भी गई । दोनों की आंखों से झर - झर आंसू गिर रहे थे । शाम को किरण ने अनुराधा को बुलाया और प्यार से उसके बालों को सहलाती हुई बोली , " अनु , सवेरे तुम्हें जिद नहीं करनी चाहिए थी । एक तो गीता नौकरानी है , दूसरे वह तुम्हारी तरह पढ़ना - लिखना भी तो नहीं जानती ।
इसी कारण गीता हमारे यहां काम करती है । " " तो उसे भी पढ़ाइए न मम्मी । वह भी मेरी तरह स्कूल जाएगी । हम दोनों एक साथ पढ़ेंगी । नहीं , नहीं ! गीता को भी स्कूल भेजिए न मम्मी । " अनुराधा बोल रही थी । अनु की बातों को किरण काट नहीं पा रही थीं । वह सोचने लगी , सच में गीता को पढ़ने का अवसर नहीं मिला इसीलिए वह मेरे घर में नौकरानी का काम करती है ।
उसे भी अगर जीवन की सारी सुविधाएं मिलतीं तो वह भी मेरी अनु की भांति स्कूल जाती , अच्छा खान खाती । अनुराधा और गीता की आत्मा तो एक जैसी है । सुख से सुखी और दुख से दुखी तो दोनों ही होती हैं । गीता क्यों रोई? अनु की आत्मा को गीता के कारण चोट पहुंची तो गीता की आत्मा भी अनुराधा की व्यथा व्यथित हुई ।
मिसेज मल्होत्रा को अपनी भूल का अहसास हुआ । वह अत्यंत अशांत थीं । सोचने लगीं , " नहीं , नहीं ! अनु ने मुझे हरा दिया है। मेरा हृदय और मन आज पराजित हुआ । " रात में श्रीमती मल्होत्र ने अपने पति से कहा , " अपने जीवन की एक बड़ी भूल का प्रायश्चित करना चाहती हूं । " " कौन सी भूल ? "
श्री मल्होत्रा ने पूछा । " इतने दिनों तक गीता की अवहेलना कर मैंने उसके प्रति बड़ा अन्याय किया है । मैंने सच में घोर पाप किया है । आज अनु ने मेरी आंखें खोल । हैं । मैंने प्रण किया है कि दोनों को समान रूप से देखूंगी । अवश्य ही इन पाप का प्रायश्चित भी मुझे करना है । " " प्रायश्चित ! कैसा प्रायश्चित ? क्या करना चाहती हो तुम मल्होत्रा ने अचकचा कर पूछा । "
हां प्रायश्चित ! आज से मैं अनु के साथ - साथ गीता को । पढ़ाऊंगी । अक्षर ज्ञान देकर अनु के स्कूल में गीता को भर्ती कराऊंगी । उसकी छिपी प्रतिभा को मुझे बाहर लाना है । वह भी एक दिन अनु के साथ - साथ पढ़ी - लिखी नारी के रूप में समाज में प्रतिष्ठित होगी । मैं उसके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखूंगी । " " यह तो बहुत ही अच्छा विचार है। गीता भी पढ़ लिखकर एक दिन अवश्य ही एक सुयोग्य नागरिक बनेगी । ऐसी मेरी आशा है ।
मल्होत्रा प्रसन्न होकर बोले । उसके बाद गीता भी अनुराधा के साथ पढाई - लिखाई करने लगी । -हीरा लाल मिश्र
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