एक था मोनू । उसे पतंग उड़ाने का बड़ा शौक था । खरीदी , लूटी हुई ... चाहे जैसी भी पतंग हो उसे तो बस उड़ाने का मतलब था । अपने घर की सबसे ऊंची छत पर चढ़ कर वह तब तक पतग उड़ाता रहता था , जब तक वह कट न जाए या फिर फट ही न जाए । उस दिन भी वह छत पर था । वह दो पतंगें खरीद कर लाया था ।
दोनों ही कट चुकी थीं अतः वह इस समय आसमान पर उड़ती पतंगें और उनमें आपस में होते पेच देख रहा था । " मां ने अब और पतंगें खरीद कर लाने के लिए मना कर दिया था । मां का नियम था कि छुट्टियों में एक दिन में बस दो पतंगों की खरीद के लिए ही पैसे मिलेंगे । फिर वे चाहे कितनी देर चलें ।
तभी मोनू ने देखा एक लंगोटा छाप पतंग कटी और पास के ही एक घर में जा गिरी । थोड़ी देर तक मोनू खड़ा - खड़ा अंदाजा लगाता रहा , पर बेकार था । मोनू उस पतंग को प्राप्त नहीं कर सकता था । पतंग के डोर कम थी और मोनू लंगड़ में फांस कर उसे अपने पास खींच भी नहीं सकता था । साथ सहसा मोनू के दिमाग में एक स्कीम आई ।
वह तुरन्त ही उस घर में गया और बोला , " आंटी जी , मेरी पतंग टूट कर आपकी छत पर आ गिरी है । उठा लूं ? " बात केवल पंतग की थी । अंतः आंटी जी ने कहा , मोनू बेटे । इसमें पूछना क्या ? तुम्हारी पतंग टूटी है । तुम्हीं ले लो जाकर ...। " इस प्रकार मोनू ने झूठ बोल कर पतंग हासिल कर ली ।
इस सफलता के बाद तो जैसे मोनू जी ने झूठ बोलने की झड़ी ही लगा दी । आस पड़ोस में किसी की भी पतंग टूट कर गिरे, मोनू जी रोनी - सी सूरत बनाकर पतंग हथिया लेते और घर आ कर अपनी इस कामयाबी से बहुत खुश होते । मां पूछती, " यह पतंग कहां से लाए ? " " मोनू तुरन्त उत्तर देता , पड़ोस की आंटी जी के घर से ले आया । वहां कट कर गिरी थी । "
यह झूठ बोलकर मोनू और अपनी बता कर लाई गई पतंग की बात साफ गोल कर जाता क्योंकि वह जानता था कि मां को झूठ से नफरत है । बेचारी मां यही समझती कि मोनू को पतंग का दीवाना समझकर लोग उसे सहर्ष पतंग दे देते हैं । वह यह भी समझतीं कि एक कट कर आई पतंग को किसी को देने में भला किसे परेशानी हो सकती थी ?
फिर पड़ोस के कुछ घरों में तो बच्चे भी नहीं थे जो पतंग खुद ही उड़ाने की जिद करते । अब तो मोनू की बल्ले - बल्ले थी। इस तरह से उसे ढेर सारी पतंगें उड़ाने को मिल रही थीं । एक दिन की बात है हमेशा की तरह एक बार पुनः शर्मा अंकल के यहां पतंग गिरी । पतंग दूर से आई थी और मोनू को नहीं मालूम था कि यह कट कर आई थी या फिर किसी की टूट कर ।
मोनू फौरन शर्मा अंकल के यहां पहुंच गया । दरवाजा खुला हुआ था । ऐसा लगता था मानो अभी अभी ही कोई और भी शर्मा के यहां आया था ... । और फिर हमेशा की तरह मोनू का रटा रटाया आग्रह " अंकल मेरी ...। " अभी वह अपनी बात पूरी भी न कर पाया था कि उसने देखा कि वही पतंग लेकर एक लड़का शर्मा अंकल की सीढ़ियों से उतर रहा था ।
शर्मा अंकल परेशान थे । गिरी पतंग एक और दावेदार दो । दोनों ही कह रहे थे कि पतंग उसकी ' टूटी ' है । सट्ट को पतंग के संदर्भ में दावेदारी करते हुए देखे कर सीढ़ियां उतरते लड़के ने कहा , " अंकल यह झूठ बोल रहा है । यह पतंग मेरी है । मैं इसे उड़ा रहा था । टूट गई थी ।
मैं इसे नहीं दूंगा ... इतना कह कर उसने झट से पतंग को अपने पीछे छिपा लिया । " शर्मा अंकल ने पूछा , मोनू बेटे, क्या तुम सच कह रहे हो ? " " हां अंकल ! पतंग मेरी है । टूट गई थी । " मोनू ने साफ झूठ बोला । वैसे ही जैसे हमेशा बोलता था।'ठीक है अंकल । यदि पतंग इसकी है तो इससे पूछो कि इसने पतंग के कन्ने के किस रंग के धागे से बांधे थे ?
" ये शब्द पतंग के दूसरे दावेदार लड़के के थे । मोनू चुप था । क्या कहे ? पतंग उसकी होती तो वह बताता कि उसने कन्ने किस रंग के धागे से बांधे थे ? उसे क्या मालूम था कि लेने के देने पड़ जाएंगे । अन्यथा सीढ़ियां उतरते समय वह देख लेता कि पतंग के कन्ने कैसे रंग के धागे से बंधे हैं ? इस समय भी लड़के ने पतंग को अपने पीछे छुपा रखा था ।
मोनू की चुप्पी ने शर्मा अंकल को बता दिया कि वह झूठ बोल रहा है । उन्होंने कहा , " मोनू बेटे ! झूठ बोलना बुरी बात है । आज पतंग के लिए तो कल किसी और चीज को हथियाने के लिए भी तुम झूठ बोलोगे ? मोनू ऐसे रंगे हाथों पकड़ा जाएगा इसकी तो उसने स्वयं कल्पना भी नहीं की थीं ।
अपनी सफलता से तो वह इतना फूल गया था कि उसके दिमाग में यह बात ही नहीं आई थी कि कभी वास्तविक पतंग का मालिक भी उसी की तरह पतंग लेने आ सकता है । फिर अपनी पतंग लेकर वह लड़का चला गया । जाते - जाते उसने एक घृणा की दृष्टि मोनू पर भी डाली थी ।
मानो मन ही मन उसने कहा हो , " कैसे झूठ बोल रहा था ? " मोनू की नजरें झुकी हुई थीं और वह भी बुझे कदमों से घर लौटने लगा । तभी शर्मा अंकल पुनः बोले , " ठहरो मोनू ! " मोनू थम गया । फिर शर्मा अंकल अपने कमरे में गए और वहां से लाकर उसे एक पतंग देते हुए बोले , " यह लो बेटे और हां झूठ मत बोला करो ।
इसका मतलब तुम पहले भी मेरे या किसी अन्य के घर से झूठ बोल कर पतंगें ले जाते रहे हो ? आइंदा ऐसा नहीं करना । मेरे यहां कट कर टूट कर आई पतंगें वैसे भी मेरे लिए बेकार हैं । मेरे यहां तो कोई पतंग उड़ाने वाला भी नहीं है ... । ” मोनू ने संकोच किया पर शर्मा अंकल ने जबरदस्ती उसे पतंग दे दी । कुछ सोचते हुए मोनू ने पतंग ले ली ।
शायद उसे भी लगा थी कि झूठ बोलना अच्छी बात नहीं । घर लौटते हुए मोनू यह भी सोच रहा था कि जो पतंग शर्मा अंकल ने उसे दी थी वह कब कट या टूट कर उनके यहां गिरी थी ? उसने तो देखा नहीं ? शर्मा अंकल को विश्वास था कि भविष्य में अब मोनू झूठ नहीं बोलेगा उनके विश्वास का आधार था ।
घर आने से पूर्व मोनू ने कान पकड़ कर शर्मा अंकल कहा था , " सॉरी ' कल । मम्मी से शिकायत न कीजिएगा । " । मोनू के सॉरी कहने के अंदाज से शर्मा अंकल को लगा था कि भविष्य में मोनू झूठ नहीं बोलेगा ...।
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