बाल कहानी
मामा जी आए थे । दूसरे दिन जब वह गए तो संजू के हाथ में पचास रुपए का खरा नोट थमा गए थे । उन्होंने उसे वह नोट थमाते हुए सलाह दी थी , " अपने लिए कुछ खाने की चीज मंगवा लेना ...। ” नोट को अपने हाथ में थामे - थामे संजू काफी देर तक सोचता रहा ... उसे क्या लेना चाहिए ?
ढेर सारी चाकलेट ? नहीं चाकलेट ठीक नहीं रहेगी ... मां कहती है , ज्यादा चॉकलेट खाने से दांत खराब हो जाते हैं । तो फिर क्या ठीक रहेगा ? ढेर सारी पतंगें ? या मांजे वाली डोर ? जींस वाली पेंट तो पचास रुपए में नहीं आ सकेगी ? कोई खिलौना ? इसी समय उसे पड़ोस की उसकी दोस्त अंजलि के पास रखी पप्पी बैंक की याद आई ।
पप्पी बैंक एक खिलौने वाली गुल्लक थी । चाबी भरकर जब उसमें कोई सिक्का रखकर उसका बटन दबाया जाता था तो उसमें हलचल मचती थी । उसमें एक कुत्ता नजर आता था जो बाहर निकलता और वापस अपने घर में जा छुपता था । कुत्ता अपने पंजे से सिक्के को अंदर लेता था । उससे असमंजस में पड़ा देखकर मां ने कहां "
संजू बेटे , यह नोट इधर लाओ । इसे मैं अपने पास रख लेती हूं , बाजार चलना । मैं इससे आपके लिए कुछ अच्छी पुस्तकें खरीद दूंगी । जिनसे आपकी जानकारी भी बढ़ेगी " । हां । यह ठीक रहेगा मम्मी । वैसे मामा जी ने इसे मुझे कुछ खाने - पीने के लिए दिया है लेकिन मुझे आपकी बात सही लगती है।
मैं इससे विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिकों वाली पुस्तक खरीदूंगा । ठीक रहेगा न मम्मी ? " संजू ने कहा । ऐसा लगता था कि शायद मां की सलाह पर उसका असमंजस दूर हो गया था । देख लेना । आपको जो पुस्तक अच्छी लगी ले लेना । हो सकता है दुकानदार जो पुस्तक दिखलाए उनमें से आपको कोई और पुस्तक पसंद आ जाए । "
मां ने कहा । उन्हें इस बात की खुशी थी कि संजू को उनकी पुस्तक वाली सलाह पसंद आ गई थी । अन्यथा उन्हें लगता था कि कहीं पहले की तरह संजू मामा के दिए गए रुपयों से कोई ऐसी - वैसी चीज लेने की जिद न करे । पुस्तकों से उन्हें भी लगाव था । वह कई मासिक , वार्षिक पत्रिकाएं मंगवाती थीं ।
इन पुस्तकों में संजू और उसके पापा की भी पसंद सम्मिलित थी । अखबार तो उनके घर नियमित रूप से हॉकर डालता ही था । वहीं पत्रिकाएं भी दे जाता था । मां की बात सुनकर संजू चुप हो गया था । उसने नोट मां को दे दिया । मां ने उसे अपने पास सुरक्षित रख लिया ।
मां और संजू के बीच इस बात की सहमति भी बनी थी कि शनिवार की शाम को बाजार जाकर पुस्तक खरीदी जाएगी । मां ने संजू से यह भी कहा था कि जरूरी नहीं है कि पचास रुपए वाली ही पुस्तक खरीदी जाएगी । हो सकता है कि पचास रुपए में दो अच्छी पुस्तकें आ जाएं । या फिर हो सकता है कि एक, लेकिन पंचास रुपए से ज्यादा वाली पुस्तक पसंद आए ?
ऐसी स्थिति में वह अपने पास से जरूरत के मुताबिक पैसे मिला देंगी । बस पुस्तक अच्छी होनी चाहिए । संजू को भी मां की यह बात उचित लगी थी । संजू और मां के बीच शनिवार का दिन इसलिए तय हुआ था क्योंकि उस दिन सैकेंड सैचरडे था । उस दिन हमेशा की तरह संजू के स्कूल की छुट्टी थी ।
जिस दिन का इंतजार था वह आया । संजू तो तैयार था ही । मां भी बस तैयार होने वाली थीं कि दरवाजे पर दस्तक हुई ...। दरवाजा मां ने खोला । पीछे संजू भी आकर खड़ा हो गया था । " कहिए ? " मां ने दरवाजे पर खड़ी एक महिला से पूछा । उसके साथ एक पुरुष और तीन अन्य महिलाएं और भी थीं ।
" हम एक स्वयं सेवी संगठन से हैं । चंदे के लिए आए हैं । " मां ने संगठन का नाम पूछा । वह एक जागरूक महिला थी और नहीं चाहती थी कि कोई ऐसे - वैसे संगठन के लोग आकर उन्हें बेवकूफ बनाएं और चंदा ठगकर चलते बनें । संगठन का नाम बताया गया ।
कुछ और पूछताछ से स्पष्ट हो गया कि आगंतुक एक अच्छे स्वयं सेवी संगठन से थे । मां ने उन्हें आदर के साथ कमरे में बिठाया । पानी पिलाया । वह चाहती थीं कि सभी लोग चाय पीकर ही जाएं लेकिन उनके इस अनुरोध को आए हुए लोगों ने यह कहकर विनम्रता पूर्वक मना कर दिया , " कष्ट न कीजिएगा । अभी काफी काम बाकी है ।
" मां ने भी ज्यादा दबाव डालना उचित नहीं समझा । वे जानती थीं कि समाज सेवा के काम में समय की क्या कीमत होती है । उन्होंने कहा , " आप इक्यावन रुपए की रसीद काट दीजिएगा । " आए हुए संगठन के लोग भी सुलझे हुए थे । दानी की इच्छा का सम्मान " करते हुए उनमें से एक जो पुरुष था ने रसीद बनाना शुरू कर दिया ।
नाम पूछने पर मां ने संजू के पापा का नाम बताया । अभी रसीद पूरी कट पाती कि अब तक चुप बैठा संजू बोला : " मम्मी एक बात कहूं ? " " क्या बेटे ? " मां ने पूछा । उन्हें आश्चर्य था । आखिर चंदे के संदर्भ में संजू क्या कहना चाहता है । " आप गुस्सा तो नहीं होंगी ? " संजू ने कहा ।
वह शिष्ट था और जानता था कि जब बड़े लोग बात कर रहे होते हैं तो बीच में टोका नहीं जाता । आगंतुक चार महिलाओं में से एक जो सलवार - कुर्ता पहने थी , को भी आश्चर्य था कि आखिर यह छोटा सा बच्चा क्या कहना चाहता है ? " नहीं ... नहीं । क्या कहना चाहते हो ? " मां ने कहा ।
उन्हें अपनी गाइडेंस पर इतना भरोसा तो था ही कि संजू कुछ ऐसा वैसा नहीं कह सकता है । " मैं चाहता हूं कि चंदे की धनराशि एक सौ एक रुपए हो । " संजू ने कहा । इससे पहले मां कुछ कह सके , संजू ने पुन : कहा , " मेरे पचास रुपए आप अपने इक्यावन रुपए में मिला दें ।
" मां अवाक उन्हें तो स्वप्न में भी आशा नहीं थी कि संजू स्वयं को खर्च के लिए मिली धनराशि चंदे के रूप में भी देने के लिए तैयार हो जाएगा । वह भी स्वेच्छा से । फिर मां ने संजू की इच्छा पूरी कर दी । संगठन के लोग भी सारी बात समझ कर खुश हुए और एक सौ एक रुपए की रसीद मां को थमा कर चले गए ।
जाते - जाते वे यह कहना नहीं भूले थे कि संजू के दिए पचास रुपए उन्हें हमेशा याद रहेंगे । फिर उस दिन बना प्रोग्राम टल गया । यद्यपि मां ने कहा था , " चलो चलते हैं । तुम्हें पुस्तक मैं अपने पास से दिला देती हूँ । " लेकिन संजू ने मना कर दिया था ।
उसकी इच्छा थी कि वह कुछ दिन तो यह अहसास को महसूस करे कि उसने मामा जी का दिया खरा नोट एक ऐसे काम के लिए दे दिया था जो चाकलेट , पुस्तकों की खरीद से भी ज्यादा श्रेष्ठ था ।
🙏दोस्तों अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो तो आप कमेंट करना ना भूलें नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी कीमती राय जरूर दें। Discovery World Hindi पर बने रहने के लिए हृदय से धन्यवाद ।🌺
यह भी पढ़ें:-
💙💙💙 Discovery World 💙💙💙
No comments:
Write the Comments