खून लाल क्यों होता है?
क्या आप जानते हैं कि रक्त का रंग लाल क्यों होता है ? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें खून की बनावट के बारे में जानना होगा । हमारे खून के चार मुख्य संघटक होते हैं , प्लाज़्मा , सफेद रक्त कणिकाएं ( कोशिकाएं ) , लाल रक्त कणिकाएं तथा प्लेटलैट्स । मनुष्य के शरीर में पाए जाने वाले रक्त का आधे से अधिक भाग प्लाज्मा होता है ।
यह पीले रंग का एक गाढ़ा द्रव होता है जिसमें प्रोटीन्स , एंटीबॉडीज़ , फाइब्रिनोजन , कार्बोहाइड्रेट्स , वसा , लवण आदि होते हैं । प्रोटीन शरीर के विकास में मदद करते हैं । एंटीबाडीज़ हानिकारक जीवाणुओं को मारते हैं तथा उनके द्वारा उत्सर्जित विषों को निष्क्रिय करते हैं । फाइब्रिनोजन घावों से रक्त के बहने को रोकते हैं ।
सफेद रक्त कणिकाएं संख्या में काफी कम होती हैं । इनका आकार लगभग .01 मिलीमीटर होता है । प्रत्येक 700 लाल रक्त कणिकाओं के पीछे एक सफेद रक्त कणिका होती है । ये बीमारियों के जीवाणुओं से लड़ कर शरीर की सुरक्षा करती हैं ।
प्लेटलैट्स आकार में बहुत छोटे होते हैं , लगभग 0.002 मिलीमीटर के रक्त के एक क्यूबिक मिलीमीटर में 1,50,000 से 400,000 प्लेटलैट्स होते हैं । ये रक्त के जमने में विशेष रूप से सहायक होते हैं । लाल रक्त कणिकाएं रक्त को इसका रंग देती हैं । ये तश्तरी की आकृति की होती हैं । इनका आकार लगभग .008 मिलीमीटर होता हैं ।
ये कोशिकाएं शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक ऑक्सीजन ले जाती हैं । इनमें हीमोग्लोबिन नामक एक पिगमेंट होता है जिसका रंग लाल होता है और वही दरअसल खून का रंग लाल बनाता है । हीमोग्लोबिन लौह तथा प्रोटीन्स से बना होता है ।
किसी स्वस्थ महिला में मौजूद प्रत्येक क्यूबिक मिलीमीटर खून में लगभग 45 लाख लाल रक्त कणिकाएं होती हैं । दूसरी ओर पुरुष में प्रत्येक क्यूबिक मिलीमीटर रक्त में लगभग 55 लाख लाल कोशिकाएं होती हैं । लाल रक्त कोशिकाओं की कमी के कारण एनीमिया ( रक्ताल्पता ) हो जाती है । जैसे ही रक्त फेफड़ों से होकर गुजरता है , इन कणिकाओं ऑक्सीजन द्वारा सोख ली जाती है तथा सारे शरीर में पहुंचा दी जाती है ।
प्रत्येक लाल कोशिका लगभग चार महीने तक जीवित रहती है और फिर अधिकतर तिल्ली में टूट जाती है । पुरानी लाल कोशिकाएं प्रति सैकेंड 20 कोशिकाओं के हिसाब लाख से जिगर तथा अन्य स्थानों पर नष्ट होती रहती । खराब हो चुकी कोशिकाओं को बदलने के लिए नई लाल कोशिकाएं हमेशा बनती रहती हैं ।
खून की विभिन्न किस्मों की खोज ?
आस्ट्रेलियन फिज़ीशियन कार्ल लैंडस्टेनर ने यह खोज की कि प्रत्येक व्यक्ति में ज़रा - सी भिन्न किस्म का रक्त होता है । उन्होंने मानवीय रक्त की कम से कम तीन किस्मों या श्रेणियों की पहचान की और उन्होंने उन्हें ए , बी तथा ओ का नाम दिया । उनकी खोज से यह पता चलता है कि रक्त दान करने से लोग विभिन्न तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं ।
ऐसा इसलिए क्योंकि रक्तदाता अर्थात रक्त देने वाले व्यक्ति का रक्त रक्तप्राप्तकर्त्ता के रक्त से मैच नहीं करता या मेल नहीं खाता। उदाहरण के लिए यदि रक्त की ' ए ' किस्म किसी ' बी ' किस्म के रक्त वाले व्यक्ति को दी जाए तो सीरम अर्थात रक्त में पाया जाने वाला साफ तरल लाल रक्त कोशिकाओं को एक - दूसरे के साथ ढेले के रूप में जोड़ देगा जो अत्यधिक खतरनाक हो सकता है ।
यही कारण है कि रक्तदान के लिए रक्त की किस्मों का मिलान बहुत सही तरीके से किया जाता है ।
मैक्स प्लैंक का क्वांटम सिद्धांत
जर्मन भौतिकविज्ञानी मैक्स प्लैंक ने अपने खोज कार्यों से यह परिणाम निकाला कि किसी प्रणाली के भीतर अलग - अलग स्थिर मात्राओं में होने वाले ऊर्जा बदलावों को ' क्वांटा ' कहा जाता है जिसे हम ऊर्जा के ' पैकेट ' के रूप में मान सकते हैं । इस सिद्धांत से पहले का सिद्धांत कि ऊर्जा हस्तांतरण एक निरन्तर प्रक्रिया है उलट जाता है ।
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