भोजन ही जीवन है। भोजन से ही हमें ताकत मिलती हैं जिससे हम दिन भर की गतिविधियों को करते हैं। दिन भर हम तरह-तरह की स्वादिष्ट पदार्थों को खाते हैं। पर क्या आप जानते हैं खाना खाने के बाद वह भोजन कहां जाता है हमारा शरीर उसे कैसे बचाता है भोजन से हमें एनर्जी कैसे मिलती है? आइए इन सब बातों को जाने ।
हमारा शरीर ईंधन से चलने वाले वाहनों के समान ही है । अगर कार को पैट्रोल न मिले तो वह रुक जाती है , उसी प्रकार यदि हमारे शरीर को भोजन का ईंधन न मिले तो वह भी कमजोर पड़ जाएगा और कोई भी काम न कर पाएगा ।
मनुष्य अपना भोजन ठोस रूप में लेता है जिसे शरीर में पचा लिया जाता है । शरीर को ताकत प्रदान करने वाले उपयोगी तत्व भोजन से . अलग - अलग अंगों द्वारा निकाल लिए जाते हैं और बेकार पदार्थ शरीर से बाहर निकाल दिए जाते हैं । जैसे ही भोजन मुंह में आता है , ऊपरी तथा निचले जबड़े हरकत में आ जाते हैं ।
इसके साथ ही मुंह से लार निकलनी शुरू हो जाती है । यही लार कई बार केवल अच्छे भोजन को देखते ही या उसके बारे में बातचीत करने से भी निकलने लगती है । इसलिए तो कहते हैं कि अच्छी खाने की चीज का नाम लेते ही ' मुंह में पानी ' आ जाता है ।
असल में यह पानी या लार एक प्रकार का एंजाइम होता है जिसे टाइलिन कहते हैं । इस लार के भोजन में मिलते ही दांत उसे कूटना शुरू कर देते हैं । इस तरह मुंह में आए भोजन का रूप एक तरह से लुगदी के समान हो जाता है जो आसानी से ग्रसनी यानी हलक में फिसल कर आमाशय में जा पहुंचता है।
इसीलिए कहा जाता है कि भोजन को खूब चबाकर खाना चाहिए । आमाशय पाचन संस्थान का वह भाग है जहां मुंह से आए भोजन की और भी ज्यादा पिसाई की जाती और वह एक तरह से सूप के रूप में बदल जाता है । जैसा कि आप लोग जानते ही होंगे हमारे भोजन में प्रोटीन होता है ।
यह प्रोटीन बड़े अणुओं के रूप में होता है , आमाशय में ही इस प्रोटीन की क्रिया पेप्सीन नामक एंजाइम से होती है । इससे प्रोटीन के अणु सरल अणुओं यानी पेप्टाइड्स में बदल जाते हैं । इन अणुओं को
"हमारे भोजन में प्रोटीन होता है । यह प्रोटीन बड़े अणुओं के रूप में होता है , आमाशय में ही इस प्रोटीन की क्रिया पेप्सीन नामक एंजाइम से होती है । इससे प्रोटीन के अणु सरल अणुओं यानी पेप्टाइड्रस बदल जाते हैं ।"
तोड़ने के लिए आमाशय से निकलने वाला हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भी विशेष रूप से सहायक होता है । अब भोजन सूप के रूप में अगले भाग ड्यूओडनम से गुजरता हुआ छोटी आंत में जा पहुंचता है ।
इस बीच ड्यूओडनम से जुड़े अंग अग्नाशय तथा यकृत द्वारा विशेष रस निकालते हैं , जो भोजन को और भी अधिक सरल रूप में बदल डालते हैं । अग्नाशय से निकले रस में ट्रिप्सीन काइमोट्रिप्सीन , कार्बोक्सीपेप्टीडेज , एमाइलेज तथा लाइपेज एंजाइम निकलते हैं ।
इसमें ट्रिप्सीन तथा काइमोट्रिप्सीन शेष बचे प्रोटीन को और भी सरल कर देते हैं जबकि एमाइलेज की स्टार्च यानी मांड को शक्कर में बदल डालता है । लाइपेज एंजाइम वसा पर क्रिया कर उसे डे घुलनशील बना डालता है । छोटी आंत असल में भोजन का अंतिम पड़ाव है ।
यहां स्थित ग्रंथियां अमीनो - पेरीडेज तथा हाइसेके - राइडेज यानी माल्टेज , लेक्टोज तथा सूक्रेज एंजाइम निकालती हैं । इनसे क्रिया करने के बाद अमीनो अम्ल , ग्लूकोज तथा शर्करा पदार्थ बनते हैं । इस तरह से सरल होने के बाद भोजन छोटी आंत की दीवार द्वारा सोख लिया जाता है और व्यर्थ के पदार्थ को गुदा की ओर धकेल दिया जाता है ।
इस प्रकार हम जो कुछ भी खाते हैं वह शरीर के पाचन संस्थान में सरल रूप में आकर छोटी आंत द्वारा सोख लिया जाता है और शरीर में शक्ति के रूप में आ जाता है ।
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