अमर शहीद लाला जगतनारायण 31 मई 1899
हिंद समाचार पत्र समूह के संस्थापक , महान स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेवी लाला जगत नारायण जी का - जन्म 31 मई 1899 को वजीराबाद ( अब पाकिस्तान ) में श्री लखमी दास चोपड़ा के घर में हुआ था । उनकी माता का नाम श्रीमती लाल देवी था ।
श्री लखमी दास चोपड़ा महाराजा रणजीत सिंह के विश्वस्त अधिकारियों में से एक दीवान मूल राज चोपड़ा के पोतों में से थे । दीवान मूल राज चोपड़ा की अनन्य स्वामी भक्ति से प्रसन्न होकर महाराजा रणजीत सिंह ने उन्हें वजीराबाद में कुछ भूमि एवं ' दीवानों ' की हवेली ' के नाम से प्रसिद्ध एक महल उपहार स्वरूप प्रदान किया था ।
लाला जगत नारायण जी का बचपन इसी महल में बीता । लाला जगत नारायण जी को राष्ट्रीयता , भारतीयता , प्रगतिशीलता , व्यक्तिगत साहस , निडरता , निर्भीकता जैसे संस्कार अपने पूर्वजों से विरासत में मिले जिन्होंने उनके व्यक्तित्व को निखारा । उनकी प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा लायलपुर में हुई ।
प्रखर स्वतंत्रता सेनानी पंजाब केसरी लाला लाजपत राय उनके आदर्श थे । 1916 में वह लाहौर के डी.ए.वी. कालेज में पढ़ाई के दौरान कालेज के तत्कालीन प्राचार्य प्रसिद्ध आर्य समाजी नेता महात्मा हंसराज के सम्पर्क में आए और उनके अनुयायी बन गए । 1916 से 1919 तक इसी कालेज में पढ़ाई के दौरान वह अनेक महान नेताओं के सम्पर्क में आए जिनमें गोकुल चंद्र नारंग , लाला दुनीचंद तथा भाई परमानंद आदि मुख्य हैं ।
भाई परमानंद तो इनके पत्रकारिता के गुरु सिद्ध हुए । 1920 में महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन के आह्वान पर ये सत्याग्रह में कूद पड़े । स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इन्होंने अनेक बार जेल यात्राएं कीं तथा यातनाएं सहीं । लाहौर में इनका प्रेस स्वतंत्रता सेनानियों की गतिविधियों का केन्द्र था ।
भाई परमानंद ने अपना पत्र ' आकाशवाणी ' तथा विरजानंद प्रैस इन्हें सौंप दिया था । इन दोनों को स्थापित करने के लिए उन्होंने कड़ा परिश्रम किया । लाला जगत नारायण जी का परिवार स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जालंधर आ बसा जहां उन्होंने उर्दू दैनिक ' हिंद समाचार का प्रकाशन आरंभ किया ।
बाद में लाला जगत नारायण जी ने अधिकाधिक पाठक वर्ग तक अपना संदेश पहुंचाने के लिए ' पंजाब केसरी ' ( हिंदी ) तथा ' जग बाणी ' ( पंजाबी ) का प्रकाशन आरम्भ किया और इस प्रकार हिंद समाचार पत्र समूह अस्तित्व में आया । वह विभाजन के बाद बनी पंजाब की भीमसेन सच्चर सरकार में शिक्षा मंत्री रहे तथा राज्यसभा के सदस्य भी निर्वाचित हुए।
स्वतंत्रता से पूर्व तथा स्वतंत्रता के पश्चात भी लाला जगत नारायण को अपनी निर्भीकता की कीमत चुकानी पड़ी । उन्होंने देश और समाज के हित में जो महसूस किया उसे कहने में कभी संकोच नहीं किया । समय के शासकों तथा अपने सिद्धांतों के साथ उन्होंने कभी समझौता नहीं किया ।
इसीलिए 1975 में अपातकाल के दौरान भी उन्हें जेल जाना पड़ा क्योंकि उन्होंने तत्कालीन शासकों की तानाशाही निरंकुशता और लोकतंत्र घातक कार्यकलापों के विरुद्ध आवाज उठाई थी । 1977 में उन्हें पटियाला जेल में दिल का दौरा भी पड़ा परन्तु उन्होंने हार नहीं मानी । अंततः तत्कालीन पंजाब सरकार को उन्हें बिना शर्त रिहा करना पड़ा।
सफेद कपड़ों में संत , युगद्रष्टा , पत्रकारिता के भीष्म पितामह आदि उपाधियों से विभूषित लाला जगत नारायण जी भविष्य के घटनाक्रम को भांप लेने में सिद्धहस्त तथा उग्रवाद के प्रखर आलोचक थे । उनकी प्रेरणा पर देश में अनेक वृद्धाश्रमों का निर्माण हुआ ।
पत्रकारिता जगत के लाला जगत नारायण जी का समस्त जीवन देश की सुरक्षा , एकता एवं .. अखंडता के लिए समर्पित रहा और अंततः 9 सितम्बर 1981 के दिन देश की एकता और अखंडता के इस मसीहा को आतंकवादियों ने शहीद कर दिया ।
अमर शहीद लाला लाजपत राय 28 जनवरी , 1865
' पंजाब केसरी ' के नाम से प्रसिद्ध लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी , 1865 को फिरोजपुर जिले के ढुढीके नामक गांव में हुआ था । कालेज के दिनों में ही वह आजादी के आंदोलन से जुड़ गए । साथ ही वह आर्य समाज की राष्ट्रीय विचारधारा और समाज सुधार की भावना से भी प्रभावित हुए और उसके सदस्य बने ।
पढ़ाई पूरी करने के बाद वह वकील बन गए । जल्द ही वह लाहौर के नामी - गिरामी वकीलों में शुमार होने लगे । 1888 में वह कांग्रेस से जुड़ गए । सन् 1905 में एक प्रतिनिधिमंडल ब्रिटेन की जनता का मत भारत के लिए एक जिम्मेदार सरकार के निर्माण के पक्ष में करने इंगलैंड पहुंचा । लाला लाजपत राय भी उसमें शामिल थे ।
इंगलैंड से लौटने के बाद भी उनका आंदोलन चालू रहा और वे कई बार जेल भी गए । एक बार उन्हें छः माह के लिए देश से निष्कासित कर बर्मा भेज दिया गया था । सन् 1914 में वे फिर इंगलैंड गए और उसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका में भी भारत की जिम्मेदार सरकार के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास किया ।
वहां उन्होंने इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की । लीग की देखरेख में ' यंग इंडिया ' नामक पत्रिका भी निकाली जाती थी । सन् 1919 में उनकी ' द पॉलिटिकल फ्यूचर ऑफ इंडिया ' नामक पुस्तक का प्रकाशन भी हुआ । सन् 1926 में वे स्वराज पार्टी से जुड़ गए ।
1927 में ब्रिटिश सरकार ने भारत के संविधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए एक आयोग ( साइमन कमीशन ) के गठन की घोषणा की । लाहौर में इस आयोग के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व लाला लाजपत राय ने किया । लाठीचार्ज के दौरान लाला लाजपत राय भी घायल हुए और अगले कई दिनों तक बिस्तर पर ही रहे ।
आखिर 17 नवम्बर , 1928 को चोटों के कारण उनका देहांत हो गया । वे सदा अन्याय के खिलाफ लड़ते रहे । वे आला दर्जे के शिक्षाविद् , विचारक , व्याख्याता और लेखक थे ।
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