माइक्रोवेव अवन कैसे काम करता है ?
वर्षों से घरेलू क्षेत्र में इस्तेमाल की जा रही आधुनिक तकनीकों ने हमारे जीवन को और भी अधिक आरामदायक तथा आसान बना दिया है । वाशिंग मशीनें , वैक्यूम क्लीनर , माइक्रोवेव अवन आदि कुछ ऐसे उपकरण हैं जो आज के आधुनिक समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप हैं ।तकनीकों के नए उपहार , विशेषकर जो घरों के लिए हैं , हमेशा ही हमारे मन में उनकी कार्यप्रणाली के बारे में जानने के लिए जिज्ञासा बनी रहती है ।
आइए देखते हैं माइक्रोवेव अवन कैसे काम करता है !
माइक्रोवेव अवन में गैस या इलैक्ट्रिक कुकर की तरह आग की लपटें या ' लाल हॉट प्लेट्स ' नहीं होतीं । इसकी संचालन प्रक्रिया बहुत साधारण होती है । प्रयोगकर्ता धातु के बने एक बक्से में खाद्य पदार्थ रखता है और एक स्विच दबाता है ।
डिब्बे के भीतर ऊर्जा की अदृश्य किरणें भोजन पर बरसने लगती हैं । अवन को इसका नाम उन किरणों की वजह से मिला है जो भोजन को पकाती हैं । इन किरणों को माइक्रोवेव्ज़ कहा जाता है । माइक्रोवेव्ज़ उन इलैक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों के वर्णक्रम का एक भाग होती हैं जिसमें रोशनी की किरणें तथा एक्स - रेज शामिल होती है ।
उनकी वेवलैंग्थ 30 सेंटीमीटर से एक मिलीमीटर तक होती है जो इन्हें सबसे कम लम्बाई की रेडियो तरंगों तथा इन्फ्रारेड तरंगों के बीच स्थान दिलाती है । उनकी विशेषताओं में से एक है मॉलिक्यूल्स ( अणुओं ) को उत्तेजित करना , विशेषकर तरलों में जिससे वे कंपित तथा गर्म होने लगते हैं ।
इसी कारण वे खाद्य पदार्थ जिनमें पानी अधिक होता है , बहुत जल्दी पक जाते हैं । अवन में माइक्रोवेव्ज़ का स्रोत एक मैग्नेट्रॉन होता है । यह एक दो इलैक्ट्रॉड्स वाला वाल्व होता है जो उच्च आवृति का दोलन पैदा करता है । मैग्नेट्रॉन द्वारा उत्पन्न माइक्रोवेव्ज एक नली के द्वारा नीचे पहुंचाई जाती हैं जहां से ये धातु के एक पंखे द्वारा भोजन को हर तरफ से एक समान पकाने के लिए बिखरा दी जाती हैं ।
माइक्रोवेव अवन्स किरणों द्वारा गर्म होते हैं जिन्हें माइक्रोवेव कहा जाता है । इन अवन्स को सही तापमान पर तेजी से भोजन पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है ।
मॉलिक्यूल्स एक - दूसरे से रगड़ खाते हैं तथा इस घर्षण के कारण ताप उत्पन्न होता है । फिर पानी गर्म होता है तथा उसके परिणामस्वरूप शीघ्र भोजन गर्म हो जाता है । माइक्रोवेव अवन किसी हद तक विकिरण के खतरनाक स्रोत होते हैं । इसी कारण इनके बाहर धातु की लाइनिंग की जाती है और उनके दरवाज़े खासे मज़बूत होते हैं ।
जब तक इसके दरवाजे बंद न हों तब तक अवन काम नहीं करता और इसी कारण सुरक्षा सुनिश्चित रहती है । अधिकतर आधुनिक अवन्स में छोटे कम्प्यूटर्स होते हैं जो आवश्यक तापमान पर सही समय में भोजन को अपने आप पका देते हैं।
आजकल माइक्रोवेव अवन्स को अधिमान दिया जाता है और रेस्तरांओं , होटलों आदि में व्यापक रूप से इनका इस्तेमाल किया जाता है । जहां शीघ्र सेवा महत्वपूर्ण होती है ।
थर्मस फ्लास्क कैसे काम करता है ?
थर्मस फ्लास्क एक विशेष प्रकार की बोतल होती है जिसमें चाय और दूध जैसी चीजें गर्म रहती हैं तथा बर्फ या ठंडे पानी जैसी चीजें लम्बे समय तक ठंडी रहती हैं । इसका आविष्कार सर जेम्स देवार द्वारा 1892 में किया गया था । यही कारण है कि इसे देवार फ्लास्क भी कहा जाता है ।
इसमें दोहरे शीशे वाली एक बोतल होती है । शीशे की इन दीवारों पर भीतर की ओर से चांदी की परत चढ़ाई जाती है या यूं कह लीजिए कि चांदी जैसा चमकदार रंगा जाता है । इन दीवारों के बीच की जगह को वैक्यूम पम्प की सहायता से हवा रहित किया जाता है तथा सील कर दिया जाता है ।
इस बोतल को धातु के बने एक डिब्बे से सुरक्षित किया जाता है । इसके मुंह पर एक कार्क फिट किया जाता है । यह जानना बहुत रुचिकर होगा कि किस तरह से यह बोतल गर्म चीजों को गर्म तथा ठंडी चीजों को ठंडा रखने में सहायता करती है ।
हम जानते हैं कि गर्मी तीन माध्यमों से एक स्थान से दूसरे स्थान तक बह सकती है चालन ( कंडक्शन ) , संवहन ( कंवैक्शन ) , तथा विकिरण ( रेडिएशन ) द्वारा । थर्मस फ्लास्क इनमें से किसी भी तरीके से गर्मी के बहाव को रोकती है । फ्लास्क शीशे से बनी होती है जो गर्मी का कुचालक होता है ।
इस तरह से गर्मी चालन द्वारा नहीं बहती । चूंकि दीवारों के बीच खालीपन अर्थात वैक्यूम होता है । इसलिए संवहन द्वारा गर्मी के बहाव की बात भी मायने नहीं रखती इसकी दीवारों पर चांदी का पानी चढ़ाए जाने के कारण विकिरण के कारण भी इसकी गर्मी कम नहीं होती ।
परिणाम स्वरूप थर्मस फ्लास्क में रखी गर्म चीजें लम्बे समय तक ठंडी या ठंडी चीजें लम्बे समय तक गर्म नहीं होतीं ।
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