एफ.एम. प्रसारण
आवृति अनुकूलित ( फ्रीक्वैसी मॉड्यूलेटिड ) या एफ.एम. प्रसारण ने अपनी स्पष्टता तथा वार्ताओं या संगीत के पुनर्प्रसारण की सटीकता के कारण बहुत लोकप्रियता पाई है। यह सुनने वाले को स्टीरियोफोनिट ध्वनि के प्रभाव का भी आनंद दे सकती है ।
एफ.एम. प्रसारण सेवा रोडियो की गिरती लोकप्रियता को फिर से बनाने की आशा उत्पन्न की है। पहले - पहल के प्रसारण एम्प्लीच्यूड मॉड्यूलेटिड थे जो आवाज को फिल्टर नहीं कर सकते थे और इसीलिए उनमें एफ.एम. जैसी स्पष्टता नहीं थी लेकिन अब प्रश्न यह है कि ए.एम. तथा एफ . एम . प्रसारण में आधारभूत अंतर क्या है? दोनों ही मामलों में रेडियो तरंगों को प्रसारण के लिए ब्रॉडकास्टिंग संकेतों के रूप में बदला जाता है ।
ए.एम. प्रसारण में तरंगें फ्रीक्वेंसी में अनवरत होती हैं परंतु प्रसारित की जा रही तरंगों की चौड़ाई ( एम्प्लीच्यूड ) ब्रॉडकास्ट किए जा रहे संकेतों के अनुसार विभिन्नता लिए होती हैं जबकि एफ.एम. में एम्प्लीच्यूड अनवरत होता है तथा फ्रीक्वैसी प्रसारित किए जा रहे संकेतों के अनुसार होती है । साधारण भाषा में कहें तो ए.एम. में एम्प्लीच्यूड मॉड्यूलेट होता है जबकि एफ.एम. में फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेट होती है । मॉड्यूलेशन रेडियो तरंगों की कोडिंग करने की प्रक्रिया है और यह तरंग के एम्प्लीच्यूड या इसकी फ्रीक्वेंसी को परिवर्तित करके किया जाता है ।
यहां तीन आधारभूत धारणाओं मॉड्यूलेटिंग वेव , करियर ( वाहक ) तथा मॉड्लेटिंग तरंग सूचना प्राप्त करने वाला सिग्नल है । जैसे कि मनुष्य की आवाज या संगीत । यह वह संदेश है जिसे प्राप्तकर्ता या रिसीवर तक पहुंचाया जाना है । करियर वह तरंग है जिसे सूचना प्राप्त संकेत द्वारा विविधता पूर्ण बनाया जाता है ।
मॉड्यूलेटिड वेव वह तरंग है जिसे करियर पर सूचना प्राप्त संकेत को प्रभावित करके विकसित किया जाता है । यह तरंग रिसीवर को प्रेषित की जाती है । अब यह विचार उत्पन्न होता है कि किस वजह से एफ.एम. प्रसारण बढ़िया अभिग्रहण ( रिसैप्शन ) उपलब्ध कराता है । बोलने की आवाज एक अनियमित तरंग पैटर्न द्वारा प्रस्तुत की जाती है
क्योंकि एफ.एम. का इस्तेमाल कर रहे रिसीवर को केवल फ्रीक्वेंसी में हो रहे परिवर्तनों को खोजना होता है , यह विद्युतीय व्यवधानों के कारण उत्पन्न किसी भी एम्प्लीच्यूड परिवर्तनों को पुनरउत्पन्न नहीं करता इसके परिणाम स्वरूप फिल्टरो के इस्तेमाल से लगभग सारी पार्श्व ध्वनि को समाप्त कर दिया जाता है और हमें शानदार आवाज सुनने को मिलती है
एफ. एम. ट्रांसमिशन की रेडियो प्रसारण सेवाओं, मल्टीचैनल कैरियर टेलीफोन, संचार उपग्रह, टैलीग्राफी, मोबाइल संचार, नेवीगेशनल, मेटेओराॅलोजीकल एड्स के साथ-साथ मेडिकल डायग्नोस्टिक इंस्ट्रूमेंटेशन के लिए इस्तेमाल किया जाता है एफएम चैनल ग्रैबिंग भी करता है अर्थात एफ.एम. सिग्नल उपलब्ध हो तो दोनों में से शक्तिशाली को प्राप्त कर लिया जाता है
जबकि अन्य को बाहर निकाल दिया जाता है इसी वजह से एक ही फ्रिकवेसी पर काम कर रहे कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को एक दूसरे के काफी करीब रह कर भी काम करने का अवसर मिलता है यह सुविधा ए.एम. स्टेशनों को प्राप्त नहीं
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रेडियो तरंगे क्या है
रेडियो तरंगें इलैक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों के परिवार से संबंधित हैं जो इलैक्ट्रॉन्स के गतिशील होने के कारण उत्पन्न होती हैं । रेडियो तरंगों के बारे में सबसे पहले 1860 में जेम्स क्लार्क मैक्सवैल ने भविष्यवाणी की थी परन्तु इनको परीक्षण के तौर पर बनाने में सफलता 1887 में हेनरिख हर्ट्ज को मिली ।
बेतार टैलीग्राफी का प्रदर्शन सबसे पहले 1894 में सर ओलिवर लॉज और इतालवी वैज्ञानिक गुगलील्मो मार्कोनी पहले ऐसे व्यक्ति थे , जिन्हें 1900 में रेडियो तरंगों की सहायता से लम्बी दूरी तक प्रक्षेपण करने में सफलता प्राप्त हुई ।
रेडियो तरंगों की सहायता से ही प्रसारण केन्द्रों से आने वाली आवाज हमारे रेडियो सैटों तक पहुंच जाती है । इनका प्रयोग कई तरह के कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए भी किया जाता है । रेडियो तरंगें संचार संकेतों ( सिग्नल्स ) के वाहक के तौर पर कार्य करती हैं । संदेश रेडियो तरंगों द्वारा मॉड्यूलेट ( स्वर बदलना ) किया जाता है तथा ट्रांसमीटर की सहायता से प्रक्षेपित किया जाता है ।
मॉड्यूलेटिड संकेत को हमारा रेडियो रिसीवर पकड़ता है तथा फिर उन्हें डिकोड किया जाता है । रेडियो तरंगों का इस्तेमाल उड़ते हुए हवाई जहाजों के साथ सम्पर्क बनाए रखने के लिए भी किया जाता है । इन तरंगों की सहायता से उन्हें उड़ान के दौरान दुर्घटना से बचाने के लिए ठीक प्रकार निर्देशित तथा नियंत्रित किया जाता है ।
रेडियो तरंगें दरअसल अदृश्य इलैक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें हैं जो रोशनी की रफ्तार से यात्रा करती है अर्थात 300000 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार पर इन तरंगों की सहायता से उपग्रह तथा अंतरिक्षयानों को पृथ्वी के सम्पर्क में रखा जाता है । उपग्रहों तथा अंतरिक्ष यात्रियों के साथ सजीव ( लाइव ) संचार केवल रेडियो तरंगों के माध्यम से ही संभव हो सका है ।
ये तरंगें हवा तथा शून्य दोनों स्थितियों में यात्रा कर सकती हैं । यहां तक कि ये पानी तथा भूमि के नीचे भी कुछ मीटर तक यात्रा कर सकती हैं । समुद्री जहाजों के साथ सम्पर्क रेडियो तरंगों की सहायता से बनाया जाता है ।
प्रत्येक समुद्री जहाज पर रेडियो ट्रांसमीटर्स तथा रिसीवर्स लगे होते हैं । विभिन्न खगोलीय पिंडों से आने वाली रेडियो तरंगों के अध्ययन के लिए वैज्ञानिक रेडियो टैलीस्कोप्स ( दूरबीनों ) का प्रयोग करते हैं । इन दूरबीनों की सहायता से अब उन ग्रहों तथा सितारों की पहचान करना संभव हो सका है जो रेडियो तरंगें उत्पन्न करते हैं ।
रेडियो तरंगों का प्रयोग पुलिस द्वारा भी किया जाता है । उनके पास ऐसे उपकरण होते हैं जिनके द्वारा चलते वाहनों से संदेश प्रसारित तथा प्राप्त किए जा सकते हैं । दुर्घटना के दौरान सहायता उपलब्ध करते हुए फायर ब्रिगेड ( दमकल ) भी रेडियो तरंगों का इस्तेमाल करती है ।
इन तरंगों का इस्तेमाल ट्रैफिक को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है । आज हमारे पास ऐसे उपकरण हैं जो चलते हुए वाहनों की रफ्तार को माप लेते हैं और वह भी कंट्रोल रूम से ही । संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि इन रेडियो तरंगों के कारण विश्व में दूरियां घट गई हैं ।
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