समुंद्र में हम दिशा कैसे ढूंढ लेते हैं?
प्रारंभ में, मनुष्य ने जब नौकाएं बनाई वह तभ भी उनका प्रयोग समुद्री यात्राओं के लिए करता था परंतु वह बहुत अधिक दूर जाने का साहस नहीं जुटा था क्योंकि उसे अपना रास्ता खो जाने का डर था। ऐसा इसलिए क्योंकि समुंद्र में दिशा ढूंढने के लिए उसके पास कोई उपकरण नहीं था।
उन दिनों समुद्री यात्री विभिन्न दिशाओं को खोजने का काम सूर्य तथा सितारों की सहायता से करते थे। परंतु जब बादलों से ढके आसमान में सूर्य तथा सितारों को देख पाना संभव नहीं था, तब सही दिशा को खोज पाना काफी कठिन काम था।
लगभग 1000 ईसा पूर्व में एशिया माईनर में मैग्नीशिया नामक स्थान पर विचित्र विशेषताओं वाला एक पत्थर पाया गया। यह लोहे के छोटे-छोटे टुकड़ों को अपनी ओर खींचता था। क्योंकि यह पत्थर मैग्नीशिया में खोजा गया इसलिए इसे 'मैग्नेट' (चुंबक) नाम दिया गया। ऐसा पाया गया कि स्वतंत्र रूप से लटकाया गया मैगनेट हमेशा उत्तर-दक्षिण दिशा की ओर इंगित रहता है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि खुद पृथ्वी भी एक विशाल चुंबक की तरह कार्य करती है इसलिए चुंबक के ध्रुवों को आकर्षित करती है। चीनी नाविकों ने प्राकृतिक चुंबक को इस विशेषता का लाभ लगभग वर्ष 1300 ईस्वी में समुद्र में दिशाओं को खोजने के लिए उठाना प्रारंभ किया। इस तरह विश्व का पहला कंपास बना।
आदिकालीन इन कंपासों में कार्क या लकड़ी के एक टुकड़े को पानी में तैराया जाता है तथा उसमें चुंबकीय पत्थर को बिठाया जाता है। आधुनिक कंपास अधातु के बने डिब्बे पर आधारित होते हैं जिनमें मोटे कागज का बना डायल होता है जिसे शीशे से ढंका जाता है। कागज को पूरे 4 कोणों में बांटा जाता है। और प्रत्येक कोण एक दिशा का सूचक होता है।
उन्हें उत्तर, दक्षिण, पूर्व तथा पश्चिम के लिए N (नॉर्थ), S से (साउथ),E (ईस्ट), तथा W (वेस्ट), नाम दिए जाते हैं) गोले के प्रत्येक चौथे भाग को आगे फिर 8 बराबर भागों में बांटा जाता है। इस तरह से पूरे गोले को 32 भागों में बांटा जाता है। इसे गोले के मध्य भाग में एक चुंबकीय सुई स्वतंत्र रूप से क्षैतिजीय दिशाओं में घूमने के लिए लगी होती है। उत्तर तथा दक्षिण दिशा की ओर इंगित करता चुंबक नाविकों को यह सुनिश्चित करने में सहायता करता है कि उनका जहाज किस दिशा में जा रहा है।
आजकल बहुत से जहाजों में अन्य नए तरह के उपकरण, जिसे 'गायरोकंपास' कहा जाता है का भी इस्तेमाल किया जाता है। दरअसल 'गायरोकंपास' एक निरंतर रूप से चलने वाला उपकरण है जो कंपास की तरह ही काम करता है इस पर चुंबकीय परिवर्तनों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और इसका इस्तेमाल जहाजों के परिचालन के लिए भी किया जाता है।
गायरोकंपास चुंबकत्व प्रयोग किए बिना एक मैग्नेटिक कंपास का कार्य करता है। इसमें घूमने वाली एक डिस्क होती है। जिसे एक इलेक्ट्रिक मोटर से ऊर्जा प्राप्त होती है डिस्क का धुरा हमेशा एक ही दिशा की ओर इंगित रहता है और इसे उत्तर दिशा की ओर सेट किया जा सकता है।
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