पंडित गोविंद बल्लभ पंत (10 सितंबर 1887- 7 मार्च 1961)
पंडित गोविंद बल्लभ पंत
वह अंग्रेजों से नफरत करते थे। इसलिए कॉलेज में जब भी मौका मिलता उनके खिलाफ भाषण दिया करते उनके भाषणों में जैसे आग भरी रहती थी। अंग्रेजों को इसका पता चला और उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। बाद में मालवीय जी के हस्तक्षेप के बाद उन्हें कॉलेज में पुनः प्रवेश दिया गया।
वह वकील बने और जल्द ही प्रसिद्ध हो गए। सामाजिक और राजनीतिक मामलों में वह बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे। पहाड़ी इलाकों में बेगार-प्रथा बंद करवाने के लिए उन्होंने आंदोलन किया और सफल हुए वह असहयोग आंदोलन से जुड़े और वकालत छोड़ दी।
सन 1935 में प्रांतीय असेंबली के चुनाव हुए। वह उत्तर प्रदेश असेंबली में कांग्रेस दल के नेता चुने गए और मुख्यमंत्री बने। सन 1942 में उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और जेल गए आजादी के बाद भी वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
हिंदी को सबसे पहले किसी राज्य को राज्य भाषा बनने का गौरव उन्होंने ही दिया। देश में सबसे पहले जमींदार प्रथा समाप्त करने का श्रेय उत्तर प्रदेश को ही जाता है। वह लगातार 15-16 घंटे काम किया करते थे और सादा जीवन गुजारते थे। वह बहुत ही कम बोलते और लोगों को ध्यान से सुना करते 18 वर्ष तक वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
सरदार पटेल की मृत्यु के बाद उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई जिसे उन्होंने बखूबी निभाया और श्रेष्ठ सांसदों में गिना जाता है। उनका एक-एक शब्द देश के विकास के लिए अर्थ रखता था। उत्तर प्रदेश सहित उन्होंने पूरे देश की सेवा की और भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनकी असाधारण सेवाओं को देखते हुए भारत सरकार ने सन 1957 में उन्हें भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया 7 मार्च 1961 को उनका देहांत हुआ।
पंडित गोविंद बल्लभ पंत जी को हमेशा उनके महान कामों और सेवाओं के लिए जाना जाएगा।
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