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भोला और चार चोर ( कहानी )

भोला और चार चोर 


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भोला की कहानी

रामगढ़ में भोला नाम का एक युवक रहता था । बचपन से ही वह बहुत आलसी और कामचोर प्रवृत्ति का था । घर परिवार के दैनिक कामकाज से उसका कोई वास्ता न होता । बस खा -पीकर दिन - रात अपने आवारा दोस्तों साथ मटरगश्ती करने में ही मशगूल रहता । 


घर के लोग उसकी इन हरकतों की वजह से बहुत तंग आ चुके थे । माता - पिता ने उसे प्यार से समझा - बुझा कर और डांट - फटकार कर यानी हर तरह से सही रास्ते पर लाने की भरसक कोशिश की पर उनके सारे प्रयास व्यर्थ गए । 

बरसात का मौसम था । कई दिनों से लगातार बारिश हो रही थी । एक दिन भोला की मां ने उसे जंगल से सूखी लकड़ियां लाने को कहा परन्तु भोला ठहरा कामचोर । इसलिए वह यह सब घरेलू काम क्यों करता । उसे तो सिर्फ पका - पकाया भोजन चट करने और फिर लम्बी तान कर सोने की लत लग गई थी । 

जब भोला ने जंगल से लकड़ियां लाने से साफ इंकार कर दिया तो उस दिन घर के लोगों ने उसे खाने - पीने को कुछ नहीं दिया तथा उसे घर से निकाल दिया । भोला गांव के बाहर बने एक पुराने मंदिर में जाकर बैठ गया । वह पुराना मंदिर नदी किनारे एक सुनसान जगह पर था । 


दरअसल भोला को उम्मीद थी कि थोडी देर में उसे घर से बुलाने के लिए जरूर कोई न कोई आएगा परन्तु यह क्या ? शाम हो चुकी थी पर घर से उसे लाने अब तक कोई नहीं आया ।

भूखा - प्यासा भोला बेचैन होने लगा । अब तो रात भी घिर आई थी । मध्य रात्रि के समय वहां चार चोर पहुंचे । दरअसल वह उजड़ा हुआ पुराना मंदिर उन चोरों का अड्डा था । वे यहां पर आकर चोरी की योजनाएं बनाते थे और चोरी करके लौटने पर यहीं पर चुराए गए माल का आपस में बंटवारा किया करते थे । 


अपने अड्डे पर एक अजनबी लड़के को देखकर चोर चौक गए। चोरों के सरदार ने कड़क आवाज में भोला से पूछा , " क्यों लड़के , कौन है तू और इस उजाड़ से पुराने खंडहर मंदिर में इतनी रात को क्या कर रहा है ।  भोला ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया , "मैं तुम्हारा नया साथी हूँ और इस समय बहुत भूखा - प्यासा हूँ । अगर कुछ खाने - पीने को मिल जाए तो ... !" चोरों ने उसे मक्के की रोटी और सरसों का साग खाने को दिया।

 
भूखा - प्यासा भोला खाने पर टूट पड़ा । खा पीकर वह उनसे बोला , " दोस्तो , तुम लोग परेशान न हो । मुझे इलाके के सारे मालदार और धनी लोगों का पता है । एक से एक बढ़िया घरों में हाथ साफ कराने तुम्हें साथ ले चलूंगा । " उस रात भोला उन चोरों के साथ एक ब्राह्मण के घर चोरी करने पहुंचा । चोर तो घर का माल लूटने में व्यस्त हो गए। पर भोला के हाथ पंडित जी का शंख लग गया । उसने शंख का परीक्षण करने हेतु शंख को मुंह से लगा कर उसमें जोर से फूंक मारी तो मध्य रात्रि के समय शंख की आवाज सुन कर पंडित जी का पूरा परिवार जाग गया और वे लोग लट्ठ लेकर चोरों पर टूट पड़े । 


किसी तरह सारे माल को वहीं छोड़ कर चोर अपनी जान बचा कर भागे और भोला भी शंख को वहीं पटक कर दूसरे रास्ते से भाग खड़ा हुआ। अपने अड्डे पर वापस पहुंच कर चोरों ने भोला को बहुत भला - बुरा कहा । दूसरे दिन फिर चारों चोर रात के समय भोला के साथ चोरी करने निकले ।
 

इस बार भोला उन्हें एक ढोली ( ढोल बजाने वाले ) के घर ले गया । चोर तो अपने कार्यों में लग गए पर भोला की नजर दीवार पर टंगे ढोल पर पड़ गई । बस , फिर क्या था , भोला ढोल को दीवार से उतार कर लगा नाच - नाच कर मस्ती में बजाने । ढोल की आवाज सुन कर ढोली की नींद खुल गई और उसने तथा उसके बेटों ने लाठियां लेकर चोरों को वहां से खदेड़ दिया । इस तरह चोर इस बार भी भोला की ही वजह से खाली हाथ अपने अड्डे पर लौट गए । 


अड्डे पर लौटकर चोरों के सरदार ने भोला को बहुत डांटा फटकारा और साफ - साफ कहा , ' अब तुम्हारा यह आखिरी मौका होगा । यदि इस बार भी तुमने ऐसा ही कोई पागलपन किया तो हम तुम्हें मार कर इस नदी में बहा देंगे । " तीसरी रात की बात है । 

इस बार भोला उन्हें एक धनी ग्वाले के घर ले गया । दरवाजे पर दर्जनों दुधारू भैंसे बंधी थीं । चोर घर का माल ढूंढने लगे और भोला एक कमरे में जा पहुंचा । उस कमरे में एक वृद्ध महिला खाट पर लेटी हुई जोर - जोर से खरटि ले रही थी । वहीं पर एक मटके में काफी सारा दूध रखा था । पास की कोठरी से बासमती चावल की खुशबू आ रही थी । बस . तभी भोला की इच्छा खीर खाने की हुई । 


उसने उसी जगह पर चूल्हा सुलगा कर खीर बनानी शुरू कर दी । तभी बुढ़िया के जोरदार खर्राटे की आवाज सुन कर वह चौंका । उसे लगा कि बुढ़िया उससे खीर मांग रही है । उसने आवाज लगा कर बुढ़िया को कहा , " दादी , जरा सब्र कर । अभी खीर पूरी तरह पकी नहीं है । " परन्तु उसकी खरटि तो एक्सप्रेस ट्रेन की तरह जारी थे । 


भोला ने एक बार फिर विनम्रतापूर्वक कहा , अरी कहा न दादी , मैं कहीं भागा थोड़े जा रहा हूं । खीर पक जाने दे , फिर तुझे भी दे दूंगा । " खीर उबलने लगी थी और उसकी सुगंध से भोला के मुंह से लार टपकने लगी थी लेकिन बुढ़िया के खर्राट से परेशान होकर भोला ने अब गुस्से में कहा , " 


दादी , क्यों बच्चों जैसी जिद कर रही हो ? कहा न , अभी खीर गर्म है । ठंडी होने दो , तबे दूंगा । " परन्तु बुढ़िया के खराटे भला कहां थमने वाले थे । आखिर तंग आकर भोला ने एक कड़छी गर्म - गर्म खीर बुढ़िया के खुले हुए मुंह में डाल दी । अब बुढ़िया बेचारी बुरी तरह छटपटाने और जोर - जोर से चिल्लाने लगी ।
 

शोर सुन कर बुढ़िया के पांचों हट्टे - कट्टे बेटे लाठियां लेकर चोरों पर टूट पड़े । चोर तो इस बार भी किसी तरह भाग निकलने में सफल हो गए पर इस बार भोला पकड़ा गया । बुढ़िया के बेटों ने उसकी पिटाई शुरू कर दी । भोला को दो चार लट्ठ ही लगे थे कि वह उनके पैरों में गिर पड़ा और रो - रो कर शुरू से अब तक की अपनी पूरी दास्तान उन्हें सुना डाली ।


भोला की भोली - भाली बातें सुन कर बुढ़िया के बेटे हंसने लगे । उन्होंने भोला के भोलेपन को देखते हुए उसे माफ कर दिया क्योंकि आज भोला की मूर्खता की वजह से ही सही समय पर उनका घर तो लूटने से बच ही गया था । उन्होंने भोला को हर समय घर में खाली पड़े रहने या गलत लोगों की संगत में रहने के बजाय कुछ काम - धंधा करने की सलाह दी और भोला ने भी उनकी सलाह मान कर घर के कामों में हाथ बंटाना शुरू कर दिया ।



           💙💙💙Discovery World 💙💙💙


भोला और चार चोर ( कहानी ) Reviewed by Jeetender on August 29, 2021 Rating: 5

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