मदर टेरेसा
दीन दुखियों की मसीहा
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मदर टेरेसा 27 अगस्त 1910 |
दीन मदर टेरेसा का वास्तविक नाम एग्नेस गोंजा बोजाजियु है । उनका जन्म 27 अगस्त 1910 को अल्बानिया के मकदूनिया में हुआ था । छोटी - सी उम्र में ही वह रोमन कैथोलिक चर्च की नन बन गईं और सन् 1928 में आयरलैंड की ब्लैस्ड वर्जिन मैरी चर्च से जुड़ गई । इसी के माध्यम से वह एक मिशनरी दल के साथ भारत आईं । वह गरीबों की मदद करना चाहती थीं ।
कोलकाता आई तो वहां की घोर गरीबी देखकर उनके रौंगटे खड़े हो गए । उन्होंने सरकार की इजाजत ली और इन गंदी झोंपड़ - पट्टियों में रहने वालों की सेवा में जुट गईं । उन्होंने नर्सिंग का कोर्स भी कर लिया था । वह हर तरह से गरीबों की मदद किया करती थीं । सन् 1950 में उन्होंने नगरपालिका से एक होस्टल बनाने की अनुमति ली और अन्य सिस्टरों की सहायता से ' मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी ' आश्रम की स्थापना की ।
' मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी ' की सहायता से वह समाज के दीन - दुखी वर्ग को सहारा देने लगी । अनाथ बच्चों , अंधों , वृद्धों , बेसहारा औरतों , कुष्ठ रोगियों और समाज द्वारा त्यागे गए लोगों के लिए वह आशा की किरण बन कर आईं । वह समाजसेवा के हर क्षेत्र में अपने सेवाओं से राहत पहुंचाया करती थीं । उन्होंने ' निर्मल हृदय ' नामक एक सेवाश्रम की स्थापना की जहां अपनों द्वारा सताए गए लोगों को शरण मिलती है । मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए उन्होंने शिशु भवन की स्थापना की ।
कुष्ठ रोगियों के लिए उन्होंने आसनसोल के करीब शांति नगर की स्थापना की । उनके द्वारा की गई मानवयीय सेवाओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें कई राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया । सन् 1963 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री का सम्मान प्रदान किया । सन् 1971 में पोप षष्ठम ने उन्हें पहले पोप जॉन ( तेईसवें ) शांति पुरस्कार से सम्मानित किया । उन्हें रोम में आकर बसने का निमंत्रण भी दिया गया लेकिन उन्हें कोलकाता की झोंपड़ - पट्टियां ज्यादा रास आईं । सन् 1962 में रैमोन मैगसेसे , सन् 1972 में अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार , सन् 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार , सन् 1980 में भारत रत्न , सन् 1983 में आर्डर आफ मैरिट और सन् 1993 में राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
अब तक मदर टेरेसा भारत सहित सारे विश्व की धरोहर बन गई थीं । मानवों के प्रति उनकी सेवाएं आज एक विरासत बन गई हैं । उन्होंने सिखाया कि मानव सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं । 5 सितम्बर 1997 को उनका दुखद निधन हुआ ।
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मुरलीधर देवीदास आमटे
गरीबों दीन दुखियों के मसीहा
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मुरलीधर देवीदास आमटे 24 दिसंबर 1914
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मुरलीधर देवीदास आमटे को सारा देश बाबा आमटे के नाम से जानता है । बाबा आमटे ने समाज सेवा और कुष्ठ रोगियों को शरण देने और उनका इलाज करने के लिए जो पहल की आज वह एक अद्वितीय मिसाल बन गई है । बाबा आमटे का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा जिले के हिंगनघाट नामक गांव में 24 दिसम्बर , 1914 को एक जमींदार परिवार में हुआ । पढ़ाई के बाद वह पत्रकार बनना चाहते थे। सिनेमा में भी उनकी रूचि थी । उन्होंने द पिक्चर गोअर ' नामक पत्रिका के नए फिल्मों की समीक्षा भी लिखनी शुरू की । उन्होंने ग्रेटा गारबो जैसी अभिनेत्री से वार्ता भी की थी ।
लेकिन एक दिन उनके जीवन में अचानक एक मोड़ आया । बाबा अपने घर की तरफ जा रहे थे कि उन्होंने सड़क किनारे चीथड़ों की एक पोटली देखी । ध्यान से देखने पर पता चला कि वह तो एक आदमी था । कुष्ठ रोग के कारण उसके हाथ - पैर तक गल चुके थे । उसके शरीर पर कीड़े रेंग रहे थे । वह घर भाग आए लेकिन उनकी आत्मा ने उन्हें चैन से बैठने न दिया। वह वापस उस आदमी के पास गए और उसे खाना खिलाया । बारिश से बचाने के लिए उस पर एक छत बना दी । उनके मन में विचार आया कि हर व्यक्ति के बाबा भीतर एक दिव्य चिंगारी होती है और उसे शक्तिशाली अग्नि में परिवर्तित किया जा सकता है ।
मानव कल्याण की भावना लेकर उन्होंने आनंद आश्रम की स्थापना की । उन्होंने ' श्रमिक विद्यापीठ स्थापना का सपना देखा । बेकार भूमि को खेती लायक बनाने के लिए उन्होंने विद्यार्थियों का आह्वान किये और सरकार ने सोमनाथ के नजदीक उन्हें 2000 एकड़ भूमि प्रदान की । 1980 के दशक में उन्होंने साम्प्रदायिकता को मिटाने और एकता का माहौल तैयार करने के लिए ' भारत जोड़ो अभियान ' शुरू किया । आज उनका परिवार भी उनके समाज कल्याण के कार्य को आगे बढ़ा रहा है । उनके एक पुत्र डा . विकास आमटे अपनी पत्नी के साथ महारोगी सेवा समिति और एक अस्पताल चलाते हैं ।
उनके दूसरे पुत्र प्रकाश आमटे अपनी पत्नी के साथ हेमलकसा में स्कूल और अस्पताल चलाते हैं । बाबा आमटे ने ' नर्मदा बचाओ आंदोलन ' का नेतृत्व किया । वह ऐसे विकास के विरुद्ध हैं जो जनसामान्य का ख्याल नहीं रखती । उन्हें मैगसेसे और गांधी शांति पुरस्कार सहित कई नामी - गिरामी राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं ।
9 फरवरी 2008 को उनका दुखद निधन हुआ।
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