संतरी और मंत्री
एक बार उज्जैन नगर के राजा रणजीत सिंह अपने मंत्री के साथ नगर भ्रमण कर
रहे थे । बड़ी शान से उनकी सवारी निकल रही थी । उनके कई संतरी उनके आगे - पीछे
तैनात थे । एक संतरी अपने दिल में सोच रहा था कि वह सबसे कठिन ड्यूटी देता है
फिर भी उसे सौ रुपए वेतन मिलता है और मंत्री उससे कम शारीरिक श्रम करता है फिर
भी उसे पांच सौ रुपए वेतन मिलता है । ऐसा क्यों ? इस बारे में उसने अपने राजा
से पूछने की ठानी ।
एक दिन राजा घूमते हुए उस संतरी के पास पहुंचे । संतरी
, "महाराज की जय हो , " कह कर कुछ सोचने लगा तो राजा ने उससे पूछा
, “ क्या सोच रहे हो संतरी? " " मेरे मन में एक शंका है महाराज । " संतरी ने
जवाब दिया । तो राजा बोले , " कहो ! क्या शंका है?" " महाराज ! मैं मंत्री जी
से अधिक कठिन ड्यूटी देता हूं फिर भी मेरा वेतन सौ रुपए है जबकि मंत्री जी आराम
की ड्यूटी देते हैं फिर भी उनका वेतन पांच सौ रुपए क्यों है महाराज ? " "
ठीक
है । वक्त आने दो । तुम्हारी शंका का समाधान हो जाएगा । " उसकी बात सुन कर राजा
ने मन ही मन मुस्करा कर उससे कहा ।
एक दिन राजा महल की छत पर खड़े थे । उन्हें
कुछ दूर घोड़े और तम्बू दिखाई दिए । उन्होंने सोचा " उस संतरी को इसके बारे में
। जानकारी करने के लिए भेजना चाहिए । उसके द्वारा दी गई जानकारी से उसकी
शंका का समाधान भी हो जाएगा ।
" यह सोच कर वे अपने उस संतरी से बोले , " संतरी
! जाकर देखो कि यहां से कुछ दूर कौन डेरा लगाए हुए है ? " " जो आज्ञा महाराज ।
" सुन कर उस संतरी ने उनसे कहा और फिर वह उस डेरा पर जाकर उसके मालिक से
बोला , " तुम कौन हो भाई ? "
" मैं घोड़ों का व्यापारी हूं। " उस डेरा के मालिक
ने जवाब दिया । इतना सुन कर संतरी राजा के पास पहुंच कर उनसे बोला , " महाराज !
वह घोड़ों का व्यापारी है । " " वह कहां से आया है ? " राजा ने उस संतरी से
पूछा तो वह बोला , " यह तो मैंने उससे नहीं पूछा । " " पूछ कर आओ। "
सुनकर
राजा ने उससे कहा तो वह संतरी फिर उस डेरा पर पहुंचा और उस व्यक्ति से बोला , "
तुम कहां से आए हो ? " "मैं काबुल से आया हूं । " उस व्यापारी ने जवाब
दिया । बस इतना सुन कर वह संतरी राजा के पास जाकर उनसे बोला ,
"महाराज ! वह
व्यापारी काबुल से आया है । " ' कहां जाएगा? " राजा ने पुनः उससे पूछा परन्तु
संतरी बोला , " यह तो मैंने उससे नहीं पूछा । " " जाकर उससे पूछो । " राजा ने
उस संतरी को आदेश दिया ।
🌺🌺उनकी इन बातों को सुनकर उस संतरी की शंका का समाधान हो चुका था वह जान चुका था कि हमें पद और वेतन योग्यता के आधार पर मिलता है । 🌺🌺
वह फिर उस व्यापारी के पास गया और उससे बोला , " तुम
कहां जाओगे ? " " मैं काशी जाऊंगा । " व्यापारी ने जवाब दिया । सुन कर संतरी ने
राजा को उसके बारे में बताया वो वे उससे बोले , " उसके घोड़े का दाम क्या है ?
" सुन कर सिपाही बोला , " यह तो मैंने उससे नहीं पूछा । " ' जाकर उससे पूछो ।
"
राजा ने उसे आदेश दिया तो वह संतरी उस व्यापारी के पास जाकर उससे पूछते हुए
उससे बोला , " घोड़े का दाम क्या है ? " " दो सौ रुपए । " व्यापारी बोला ।
संतरी इतनी ही जानकारी लेकर राजा के पास पहुंचा और उन्हें घोड़े का दाम बताया ।
घोड़े का दाम जानकर वे उससे बोले , " जाकर मंत्री जी को बुला कर लाओ । " " जो
हुक्म महाराज । " कह कर संतरी मंत्री जी को बुलाने चला गया । कुछ देर बाद
मंत्री जी राजा के पास पहुंचे तो राजा उससे बोले , " मंत्री जी । हमारे महल के
पास किसने डेरा डाल रखा है ? जाकर पता लगाओ । " " जो आज्ञा महाराज । " कह कर
मंत्री जी वहां से चले गए ।
उस डेरे पर जाकर उसके बारे में जानकारी लेकर कुछ ही
देर में राजा के पास पहुंच कर उनसे बोले , " महाराज । वह एक घोड़े का व्यापारी
है । काबुल से आया है और काशी जाएगा । उसके एक घोड़े का दाम दो सौ रुपए है । "
सुन कर राजा मुस्कराते हुए अपने उस संतरी से बोले , " देखा संतरी ? मंत्री जी
एक ही बार में उसके बारे में सारी जानकारी लेकर आ गए । इसीलिए ही संतरी को सौ
रुपए और मंत्री को पांच सौ रूपए वेतन मिलता है । " उनकी इन बातों को सुन कर उस
संतरी की शंका का समाधान हो चुका था । वह जान चुका था कि हमें पद और वेतन
योग्यता के आधार पर मिलता है ।
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संतरी और मंत्री ( कहानी )
Reviewed by Jeetender
on
August 08, 2021
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