प्रवासी पक्षी अपना रास्ता कैसे ढूंढते हैं ?
हर वर्ष वसंत में लाखों पक्षी प्रजनन के लिए अपने ठंडे क्षेत्रों से गर्म स्थानों की ओर प्रवास करते हैं । इन क्षेत्रों में भोजन की प्रचुरता होती है , जिसमें ये पक्षी अपने बच्चों की भूख शांत करते हैं । सबसे बड़े प्रवास उत्तरी अमरीका , यूरोप तथा एशिया के भागों की ओर होते हैं । कुछ प्रवास दक्षिणी गोलार्द्ध की ओर भी होता है ।
उदाहरण के लिए दोहरी पट्टी वाले डाँट्रेल प्रजनन के लिए ऑस्ट्रेलिया से न्यूजीलैंड जाते हैं । अमरीकी गोल्डन प्लोवर अलास्का तथा हवाई के बीच बिना रुके 3325 किलोमीटर की उड़ान भरते हैं । उत्तरी गोलार्द्ध में जंगली बत्तखें वसंत में अपने प्रजनन क्षेत्रों के लिए उत्तर की ओर तथा पतझड़ में दक्षिण की ओर प्रवास करते हैं । प्रवास का मुख्य कारण दिन की लम्बाई में परिवर्तन होता है , जिसकी वजह से पक्षियों में ए हार्मोन संतुलन में परिवर्तन आ जाता है ।
अब प्रश्न यह उठता है कि किसी स्थान से प्रवास करते समय या अपने मूल स्थान पर वापस आते हुए पक्षी अपना रास्ता कैसे ढूंढ लेते हैं। कुछ पक्षी यह सब अपने माता - पिता से सीखते हैं । वे अपना पहला प्रवास बड़ी आयु के पक्षियों के साथ करते हैं जो इससे पहले भी ऐसा दौरा कर चुके होते हैं ।
ये युवा पक्षी अगले वर्ष प्रवास का यह रास्ता अपने से छोटे पक्षियों को बताते हैं । कुछ पक्षी अपना मार्गदर्शन भूमि पर स्थित संकेत चिन्हों से करते हैं जैसे कि पर्वत , झीलें तथा तट आदि ।
अन्य पक्षी रास्ते के लिए सितारों तथा सूर्य की सहायता लेते हैं इसलिए यदि किसी दिन आकाश बादलों से ढंका हो वे आमतौर पर रास्ता भटक जाते हैं । दरअसल वैज्ञानिक अभी भी यह नहीं जान सके हैं कि किस तरह से सभी प्रवासी पक्षी अपना रास्ता तलाश लेते हैं ।
केवल पक्षी ही ऐसे जीव नहीं हैं जो प्रवास करते हैं । कई तरह की मछलियां , स्तनपायी , उड़ने वाले कीड़े - मकौड़े , टिड्डे , ईल भी प्रवास करती हैं ।
पानी पर चलने वाला पक्षी
जलमोर ( जकाना , लिली ट्रॉटर ) नामक पक्षी का नाम उसकी पानी पर चलने की असाधारण क्षमता के कारण पड़ा है । इसके अगले और पिछले पंजे खूब लम्बे होते हैं , जिनके द्वारा यह झीलों और तालाबों में तैरती पत्तियों पर बिना ड्रबे आसानी से चल सकता है ।
यह अपना घोंसला भी इन्हीं तैरते पत्तों पर बनाता है और कभी - कभी घोंसला और अंडे पत्तों के साथ तैरते - तैरते तालाब के एक किनारे से दूसरे किनारे पर पहुंच जाते हैं । इसके अंडे हमेशा गीले रहते हैं और इसके नवजात शिशु पैदा होते ही पानी में तैर सकते हैं । भारत में जलमोर पक्षी की दो प्रजातियां पाई जाती हैं ।
उड़ते - उड़ते
पक्षियों जैसे तीव्रगामी जीव बहुत ही कम हैं । समुद्र - पांखी जैसा दिखने वाला उत्तर - ध्रुवीय टर्न पक्षी हर साल उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव को जाता है और वहां से वापस लौटता है । इस तरह वह 36000 किलोमीटर की उड़ान भरता है । अल्बाट्रॉस नाम के पक्षी का पक्ष - विस्तार ( डैने फैलाने पर एक छोर से दूसरे छोर की लम्बाई ) बहुत बड़ा होता है ।
इससे वह लगातार पांच दिन तक बिना डैने हिलाए उड़ सकता है । यह पक्षी लम्बी दूरियां गजब की तेजी से तय करता है । एक अल्बाट्रास तो 32 दिनों में 6,400 किलोमीटर उड़ा था । यही नहीं , उड़ते - उड़ते ही अल्बाट्रास गोता मार कर मछलियां पकड़ता है और अपनी भूख शांत करता है । वह उड़ते - उड़ते झपकियां भी ले लेता है ।
मधुमक्खियां खाऊ चिड़िया
एक छोटी - सी चिड़िया है जो मधुमक्खी भक्षी है और ' बी - ईटर ' कहलाती है । जैसा नाम वैसा काम । यह चिड़िया उड़ते हुए ही अपनी लम्बी चोंच से हवा में उड़ती हुई मधुमक्खियों को पकड़ कर खा जाती है । क्या इसे मधुमक्खी के डंक से डर नहीं लगता ? उसे डर लगता है , इसलिए वह हमेशा उसे कमर से पकड़ती है ।
इसके बाद किसी सख्त चीज से मधुमक्खी का सिर टकरा - टकरा कर फोड़ देती । फिर उसका पेट पकड़ कर किसी सख्त चीज पर उसे बार - बार रगड़ती है ताकि डंक नष्ट हो जाए और सारा विष बाहर निकल आए । फिर मधुमक्खी के सिर को एक - दो बार पुनः रगड़ती है और पक्का विश्वास कर लेती है। की उसका शिकार मर गया है । फिर शांति से बैठ कर अपना पेट भरती है ।
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Nice Work
ReplyDeleteThank you sir❤
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