चूहा नहीं 'छछूंदर' हूं मैं (Mole)
एक कहावत के अनुसार छछूंदर वह जीव है जिसे अगर सांप भी पकड़ ले तो उसे ना उगलना ही बनता है और ना ही निगलना। चूहे जैसा दिखने वाला यह प्राणी दिन और रात एक जगह से दूसरी जगह घूमती-फिरती है। लेकिन यह रात के समय अधिक सक्रिय रहती है।
छछूंदर की सभी प्रजातियां प्राय एक जैसी ही दिखाई देती है। अधिकतम लंबाई 20 सेंटीमीटर होती है और वजन सामान्यतः 35 ग्राम होता है वैसे विश्व का सबसे हल्का स्तनधारी जिसका वजन 2 ग्राम होने का गौरव भी छछूंदर की एक प्रजाति को ही प्राप्त है। इनके बाल मुख्य रूप से भूरे होते हैं। अन्य कीट भक्षीयों के समान ही इनकी त्वचा में भी गंध ग्रंथियां होती है ।
जिसके कारण घरों में प्रवेश करते ही पूरा घर गंध से भर जाता है और इसकी गंध एक बदबू के समान होती है जो बहुत तीव्र होती है।इनकी आंखें बहुत छोटी व दृष्टि कमजोर होती हैं लेकिन सूंघने की शक्ति प्रबल होती है। श्रवण शक्ति सुविकसित होती है
कई जीव विज्ञानिक मानते हैं कि बाधाओं को पहचानने में यह अल्ट्रासोनिक ध्वनियों का इस्तेमाल भी करती है। वैसे इनके बाहरी कान बहुत छोटे होने के कारण यह बात विश्वसनीय नहीं लगती।
इसकी खोपड़ी छोटी व थूथन आगे की ओर निकली हुई रहती है। ऊपर के दांत बड़े और मुड़े हुए रहते हैं। निचले दांत विशिष्ट रूप से बहुत तेज होते हैं इनकी गर्दन की पेशियां बहुत मजबूत होती है जो काटने में और बड़े शिकार से लड़ने में और यहां तक की बड़ी वस्तुओं को दातों से उठाने में मदद करते हैं।
एक यूरोपियन छछूंदर पानी में भी रह लेती है। इनकी रोएंदार पूंछ व फर तैरने में मदद करते हैं। कुछ एशियाई छछूंदरों में ऐसे रोए पाए जाते हैं जो इसे रेत में दौड़ते समय धसने से बचाते हैं। कुछ छछूंदर नीचे झाड़ियों पर लटकती रहती हैं और बिल बनाकर भी रहती हैं।
छछूंदर काफी सक्रिय प्राणी है। बहुत कम विश्राम करती हैं 24 घंटे में थोड़े से विश्राम के अलावा हर वक्त घूमती रहती है। इसकी आवाज भी बहुत तेज होती है यह टिट्-टिट् की आवाज निकालते हुए कभी-कभी रुक कर अपने थूथन से हवा को या चीजों को परखते हुए दौड़ भाग मचाती रहती है।
यह शीत निद्रा में नहीं जाती। अपने छोटे आकार की वजह से सूखे क्षेत्रों में पानी की कमी इनके लिए समस्या बन जाती हैं। यह नम स्थानों पर रहती हैं और एक ही जगह पर दो या दो से अधीक प्रजातियां पाई जा सकती हैं।
छछूंदर भुक्खड़ जीव मानी जाती है। यह अकेलापन पसंद करती है। लेकिन अन्य जंतुओं की घुसपैठ का यह विरोध करती है। वैसे तो यह कीट भक्षी है लेकिन कभी-कभी छोटे कोशिका जीवों को भी खा लेती है। इसके अलावा यह अनाज व अन्य वनस्पति भी खाती है और जरा देर खाना ना मिलने पर भूख के मारे मरने लगती है।
यह दिनभर खाती है और अपने वजन से ज्यादा खाती है। इसका एक कारण तो यह है कि इसके लगातार सक्रिय रहने से ऊर्जा की आवश्यकता भी ज्यादा होती है। दूसरा इनका भोजन अक्सर ज्यादा पोषक नहीं होता। उनका भोजन अक्सर पानी व अपाच्य पदार्थी होता है।
जल में रहने वाले छछूंदर (जलीय छछूंदर)अपने से बड़े मेंढको का भी शिकार कर लेती हैं। वैसे इनकी लार बहुत तीव्र क्रिया करती है जिसके कारण जंतुओं में इसका प्रभाव मौत के रूप में देखा गया है। मांसाहारी भोजन लेने से छछूंदरों में कुछ पोषक तत्व की कमी हो जाती है।
मल भक्षण के स्वभाव के कारण इन तत्वों की पूर्ति करना ही होता है बड़ी आत में बैक्टीरिया द्वारा निर्मित विटामिन बी मल के साथ बाहर आ जाता है अतः मल को खाकर इन का अवशोषण किया जाता है। कुछ छछूंदरों तो और भी विचित्र काम करती हैं यह बीच-बीच में अपने मलाशय को बाहर निकालकर मल को चाट लेती हैं।
समशीतोष्ण क्षेत्रों में छछूंदर गर्मियों में बच्चे देते हैं लेकिन उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में यह पूरे वर्ष प्रजनन करती है। विभिन्न प्रजातियों में गर्भकाल अलग-अलग 2 से 4 सप्ताह का होता है और यह एक मौसम में 4 बच्चे तक या उससे अधिक बच्चे को जन्म देती हैं।
पत्तियों से या पत्थरों से जो घोसले नुमा जगह तैयार की जाती है उसमें पूर्णतया बालवीहीन व अंधे बच्चे रखे जाते हैं मां बच्चों को 3 सप्ताह तक पोषित करती है। लेकिन बच्चे परिवार के साथ एक माह तक रहते हैं जब तक वह सामाजिक ना हो जाए।
छछूंदर की सफेद दांत वाली प्रजाति में रेल गाड़ी चलाने की मजेदार आदत है ऐसा देखा गया है कि एक बच्चा अपनी मां की पूंछ में मुंह से दबा लेता है दूसरा पहले वाले की पूंछ पकड़ता है और इसी तरह से 6 या और अधिक बच्चे मां का अनुसरण करते हुए चलते हैं बिल्कुल रेलगाड़ी के इंजन व दलों का दृश्य नजर आता है। शानदार पारिवारिक बरात होती है।
छछूंदर की उम्र तकरीबन 1 वर्ष ही होती है वैसे तो कुछ प्रजातियां ज्यादा भी जीती है सामान्यय: इनका जन्म जुलाई में होता है और यदि दुश्मनों व अन्य आपदाओं से बची रहे तो अगली गर्मियों में बच्चे जनने को जीवित रहती हैं। उम्र के अनुसार इनके फर में परिवर्तन आता रहता है।
शुरू में मटमैला छोटा फर होता है सर्दियों में लंबे गहरे रंग का फर आता है और पूंछ से आगे तक फैला रहता है। बसंत के आने तक इनके सर से शुरू होकर पूंछ तक फैलने वाला फर आ जाता है और अंत में व्यस्क फर जो छोटा लेकिन घना वह गहरे रंग का होता है उग आता है।
इनके मुख्यतः दुश्मन उल्लू व अन्य पक्षियों होती हैं। उल्लू का छछूंदर प्रिय भोजन होता है लेकिन इनकी त्वचा से तीव्र गंध निकलने के कारण स्तनधारियों के शिकार से यह बची रहती हैं। एक रोचक बात है कि चूहों की महा दुश्मन बिल्ली छछूंदर के साथ खेलती नजर आती है।
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