मेजर ध्यान चंद्र (हॉकी के जादूगर), खशाबा जाधव (कुश्ती पहलवान)
ध्यान चंद्र
जो हॉकी के जादूगर के नाम से जाने जाते थे
ध्यान भारतीय हॉकी को सदा इस महान खिलाड़ी पर गर्व रहेगा । इन्होंने भारत को हॉकी में वहां पहुंचाया जहां आज तक कोई अन्य देश नहीं पहुंच पाया है । वह एक बेहतरीन सैंटर - फॉरवर्ड थे और उनकी पारे जैसी चपलता ने हॉकी के इतिहास में उन्हें भारतीय हॉकी का मिथक बना दिया । भारतीय हॉकी दल के कप्तान ध्यान चंद ' हॉकी का जादूगर ' नाम से मशहूर हुए । ध्यान चंद की मैदान में धाक थी कि लोग समझते थे कि वे कोई अनोखी स्टिक इस्तेमाल करते हैं।
हॉलैंड में अधिकारियों ने उनकी स्टिक लेकर देखी कि कहीं उसमें कोई चुम्बक तो नहीं । जापान में तो यह निर्णय ही कर लिया गया कि इसमें विशेष प्रकार का गोंद लगाया गया है । जर्मन शासक हिटलर ने ध्यान चंद से हॉकी स्टिक खरीदने की पेशकश की । विएना स्पोर्ट्स क्लबमें ध्यान चंद की एक मूर्ति रखी हुई है जिसमें उनके चार हाथ हैं , चार हॉकी स्टिकों के साथ ।
1928 के एम्सटर्डम और 1932 के लॉस एंजल्स ओलिम्पिक में ध्यान चंद के महत्वपूर्ण योगदान के बल पर ही भारत ने हॉकी का अपना पहला और दूसरा स्वर्ण जीता । 1936 के बर्लिन ओलिम्पिक में उन्होंने भारतीय हॉकी दल का नेतृत्व किया और लगातार तीसरी बार स्वर्ण दिलवाया । 1932 में भारत ने कुल 37 मैचों में 338 गोल किए । उनमें 133 गोलों का योगदान रहा ध्यान चंद का ।
1947 में 42 वर्ष की उम्र में वे युवा दल के साथ पूर्वी अफ्रीका गए । वहां 22 मैचों में उन्होंने 61 गोल दागे । ओलिम्पिक स्वर्ण पदक विजेता और उनके दल के सदस्य केशव दत्त ने कहा , " ध्यान चंद बिना देखे ही यह पता लगा लेते थे कि कौन - सा खिलाड़ी कहां है । " एक अन्य साथी गुरबख्श सिंह ने कहा , " 1959 में जब उनका सुनहरा दौर खत्म हो चुका था , तब भी कोई भारतीय खिलाड़ी उन्हें छकाकर उनसे गेंद नहीं छीन सकता था । " महान खिलाड़ी ध्यान चंद की मृत्यु 1979 में हुई । 1980 में भारत सरकार ने उन पर डाक टिकट जारी किया ।
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खशाबा जाधव
व्यक्तिगत स्तर पर कांस्य पदक जीतने वाले पहले भारतीय
खशाबा डी . जाधव का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के गोलेश्वर गांव में हुआ था । उन्हें बचपन से ही कुश्ती का बड़ा शौक था । उनके पिता तथा बड़े भाई सभी कुश्ती प्रेमी थे । उनका यह शौक रंग लाया और वे एक सुप्रसिद्ध पहलवान बन गए । वे भारत के पहले पहलवान हैं , जिन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर ओलिम्पिक पदक जीता ।
सन् 1952 के हेलिस्की खेलों में 57 किलोग्राम वर्ग में फ्रीस्टाइल कुश्ती में उन्होंने कांस्य पदक जीता था । सन् 1948 में लंदन ओलिम्पिक के लिए उन्हें चुना गया था लेकिन उन्हें भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती के नियमों के बीच फर्क ही नहीं समझाया गया था । इसके अलावा उन्हें गद्दे पर लड़ने की आदत ही नहीं थी । इसका खामियाजा उन्हें अखाड़े में भुगतना पड़ा और उन्हें छठे स्थान से संतोष करना पड़ा ।
सन् 1952 के हेलिस्की खेलों में मुकाबला करने के लिए उन्होंने बेहतर तैयारी की । पहले पांच दौरों में अपने प्रतिद्वंद्वियों को वह पांच मिनट से भी कम समय में आसानी से चित्त करते रहे । छठे दौर में उनका मुकाबला जापान के अपराजेय योद्धा सोवाची इशी से हुआ । यह दो भीमकाय व्यक्तियों की जंग थी । 15 मिनट की थका देने वाली लड़ाई के बाद जापानी पहलवान एक अंक से विजयी हुआ । जाधव अभी भी रजत पदक जीतने की उम्मीद रखते थे लेकिन अभी मुश्किल से उन्होंने अपने कपड़े बदले ही थे कि अगले दौर के लिए बुलावा आ गया ।
नियमों के अनुसार एक पहलवान को आधे घंटे के भीतर दूसरे दौर की कुश्ती के लिए बुलाया जा सकता था लेकिन आमतौर पर प्रशिक्षक और अधिकारीगणों की कोशिश होती है कि उसके पहलवान को पर्याप्त विश्राम मिले । जाधव की देखरेख करने वाला कोई नहीं था । भारतीय अधिकारीगण अनुपस्थित थे । उनका प्रतिद्वंद्वी था , सोवियत संघ का राशिद मामेदोकोव । जाधव बहादुरी से लड़े लेकिन सोवियत पहलवान भारी साबित हुआ और जाधव को कांस्य से संतोष करना पड़ा ।
जाधव 1955 में पुलिस में भर्ती हुए और सन् 1982 में सहायक पुलिस आयुक्त के पद से सेवानिवृत्त हुए । सन् 1994 में उन्हें मरणोपरांत छत्रपति शिवाजी पुरस्कार से सम्मानित किया गया । एक मोटरसाइकिल दुर्घटना में उनका दुखद अंत हुआ ।
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मेजर ध्यान चंद्र (हॉकी के जादूगर), खशाबा जाधव (कुश्ती पहलवान)
Reviewed by Jeetender
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August 06, 2021
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