लघु कथाएं
पिता का प्रश्न सुनकर पुत्री उलझन में पड़ थी , प्यार तो अपने पिता से खूब करती थी, पर कितना ? खुद उसे भी मालूम नहीं पड़ा था । राजा ने जब बार - बार जोर देकर अपने प्रश्न का उत्तर जानना चाहा तो अपने स्वभाव के अनुसार ही उसने कहा , " मुझे मीठा खाना बहुत अच्छा लगता है पिता जी ।
बस , आप से भी मैं मीठे जैसा ही प्यार करती हूं । " उत्तर सुनकर राजा बहुत खुश हुआ । अपनी पुत्री के सिर पर हाथ रखते हुए उसे आशीर्वाद दिया और बाहर भेज दिया । फिर उसने दूसरी पुत्री को अपने पास बुलाया और वही प्रश्न उसके सामने दोहराया , " बेटी , तुम मुझसे कितना प्यार करती हो ? " बड़ी बेटी ने राजा के कक्ष से बाहर निकलते ही अपनी सभी बहनों को संक्षेप में बतला दिया था कि पिता ने उससे क्या पूछा और उसने क्या उत्तर दिया । इसलिए दूसरी पुत्री ने भी प्यार भरी मुस्कराहट के साथ तुरंत उत्तर दिया , " मैं तो आपसे मीठे जैसा प्यार करती हूं ।
" इस प्रकार बारी बारी से बुलाए जाने पर सभी बच्चियों ने थोड़े बहुत शब्दों के अंतर के साथ राजा को एक जैसा ही उत्तर दिया , सिवाय सातवीं और सबसे छोटी बच्ची के । अंत में उसी की बारी आई । राजा ने बड़े लाड से बेटी की पीठ थपथपाते हुए अपना प्रश्न दोहराया , " मेरी प्यारी गुड़िया , तुम मुझसे कितना प्यार करती हो ? " " मैं .... मैं तो आपसे इतना ऽऽऽऽ अधिक प्यार करती हूं .... कि किसी भी बेटी ने अपने पिता से नहीं किया होगा । " उसने पिता के गले में बांहें डालते हुए कहा ।
राजा उत्तर सुनकर मन ही मन बहुत खुश हुआ लेकिन उससे भी वह शेष पुत्रियों द्वारा दिए गए उत्तर की तरह ही कोई ठोस उत्तर चाहता था । इसलिए उसने कहा , " वह तो ठीक है , बेटी , सभी पुत्रियां अपने पिताओं से ऐसा ही कहती हैं परन्तु तुम कितना प्यार करती हो , बतलाओ तो सही ?
तुम तो बुद्धिमती हो , सोच कर बताओ । "छोटी बच्ची को अपनी बहनों द्वारा दिए गए उत्तर का ज्ञान था , लेकिन उसका मन उस उत्तर से संतुष्ट नहीं था क्योंकि ज्यादा मीठा खाने की वजह से एक बार उसका पेट खराब हो गया था । तब कई दिन बाद उसका पेट ठीक हुआ था । वह भी तब जबकि वह काफी कमजोर हो चुकी थी इसलिए बड़ी बहन द्वारा पूरी बात बतलाए जाने के बाद से ही वह लगातार सोचे जा रही थी कि इस प्रश्न का क्या उत्तर दिया जाए ।
अब पिता द्वारा फिर से पूछे जाने पर उसने सरलता से कहा , " मैं तो आपको नमक जैसा प्यार करती हूं । " जिस बेटी से राजा इतना ज्यादा प्यार करता था , उसी बेटी से उसे ऐसे उत्तर की आशा नहीं थी । इससे उसके दिल पर बहुत चोट पहुंची ।
वह अपने क्रोध तथा निराशा पर काबू नहीं रख सका । इसलिए एकदम से चिल्ला उठा , " नमक जैसा भी कहीं प्यार होता है मूर्ख ! नमक तो खारा होता है..चुटकी भर नमक भी मुश्किल से खाया जा सकता है ... खाने की जिस चीज में जरा सा ज्यादा पड़ जाए तो उसे जीभ पर भी नहीं रखा जा सकता ... आज तुम मीठे की तरह मुट्ठी भर नमक खाना और फिर बतलाना कि उसे तुम कितना चाहती हो ? चल भाग यहां से ।
" पिता के इस व्यवहार से पुत्री दुखी हो उठी । उसकी बड़ी - बड़ी आंखों से आंसू छलछला उठे । रोते - रोते वह अपनी मां के पास पहुंची । मां ने पुत्री को प्यार किया । उसके आंसू पोंछे और कहा कि वह उसके पिता को समझा देगी।
रानी ने तुरंत अपने सेवकों को बुलाया और चुपके से उन्हें कोई बात समझाई । रात हो गई । राजा भोजन के लिए महल में पधारे । रानी ने उसका स्वागत किया । वह भी खाने के लिए साथ बैठ गई । सेवकों ने भोजन परोस दिया । राजा भोजन करने लगा । परन्तु यह क्या ? जिस भी कटोरी में वह अपनी रोटी का कौर डुबोता , उसी में सब कुछ मीठा मिलता । कई तरह की सब्जियां बनी थीं लेकिन किसी भी सब्जी में नमक नहीं था ।
सब मीठी ही मीठी । राजा क्रोध से फट पड़ा , " किसने बनाया है आज यह भोजन ? उसे बुलाओ ... मौत की सजा दी जाएगी उसे । " रानी ने विनम्रतापूर्वक पूछा , " क्यों महाराज , क्या हुआ ? " " सभी कटोरियों में मीठा ही मीठा परोस दिया उसने । दाल - सब्जी में भी नमक की जगह मीठा ही डाल दिया गया है आज तो । तुम्ही बतलाओ , कितना मीठा खा सकता है कोई ? " " आप ठीक कह रहे हैं महाराज, ज्यादा मीठा तो खाया ही नहीं जा सकता ।
मीठा तो थोड़ी देर के लिए ही अच्छा लगता है जबकि नमक से बनी चीज रोज - रोज खाते हैं और फिर भी बुरी नहीं लगती और सेहत भी ठीक रहती है परन्तु इन सेवकों को कौन समझाए महाराज कि जीवन के लिए नमक कितना जरूरी है । " रानी ने मुस्कराते हुए कहा ।
राजा को तत्काल दिन वाली घटना की याद आ गई । तब जाकर उसे पता चला कि ' नमक जैसा प्यार ' का क्या अर्थ होता है ।
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