प्राण और प्राण के प्रकार
प्रश्न : पिता के मरने के बाद मेरे पास उनके कुछ कपड़े हैं लेकिन मुझे मालूम है कुछ परंपराओं के हिसाब से मृत व्यक्ति के कपड़े नहीं रखनी चाहिए ऐसे हालात में क्या करना चाहिए ?
दोस्तों आपके मन में भी यह प्रश्न जरूर आता होगा कि क्या मृत व्यक्ति के कपड़े घर में रखने चाहिए या उन्हें जला दिया जाना या फेंक दिया जाना चाहिए । आइए इसके बारे में जानते हैं। सबसे पहले हम क्या जानेंगे प्राण और प्राण के प्रकार ?
प्राण और प्राण के प्रकार
जैसा कि आप जानते हैं कोई भी मनुष्य जब पैदा होता है तब उसका जन्मदिन पैदा हुए समय को ही माना जाता है लेकिन वह मां के शरीर में भी नौ महीनों तक रहता है। कोई भी बच्चा एकाएक पैदा नहीं हो जाता बल्कि उसका शरीर धीरे-धीरे बनता है उसी प्रकार मृत्यु भी धीरे-धीरे ही होती है ।
आप एक दिन में नहीं मरते आप धीरे-धीरे मरते हैं । मेडिकल रुप से व्यक्ति की मृत्यु घोषित करने के बाद भी मृत्यु पूरी तरह से नहीं होती अपितु धीरे-धीरे होती है। आइए इसे समझते हैं ।
भौतिक जीवन ऊर्जा जिसे प्राण वायु कहा जाता है उसके कई रूप हैं लेकिन आज हम उसके पांच रूपों की बात करेंगे। जो इस प्रकार से है । प्राण वायु , उदान वायु , समान वायु , अपान वायु, और व्यान वायु । किसी व्यक्ति की असल मृत्यु वह मृत्यु होती है जब यह पांच वायु शरीर से बाहर निकल जाती है । शरीर में पांच प्राण वायु होते हैं जो मृत्यु के पश्चात धीरे-धीरे बाहर निकलते रहते हैं ।
समान वायु
समान वायु शरीर में जठाअग्नि को उत्पन्न करती है। शरीर में पाचन की क्रिया सामान वायु से ही होती है । डॉक्टर जब किसी व्यक्ति को किसी पल में मृत्यु घोषित करता है तो अगले 21 से 24 मिनट में 'समान' वायु बाहर निकलने लगती है। 'समान' वायु का मुख्य कार्य शरीर में तापमान बनाए रखना होता है ।
व्यक्ति की मृत्यु होने पर शरीर ठंडा होने लगता है पारंपरिक रूप से मृत्यु का पता लगाने के लिए नाक को छुआ जाता है अगर नाक ठंडी हो गई है तो वह समझ जाते हैं कि व्यक्ति मर चुका है । समान वायु के बाहर निकलने पर शरीर अपना तापमान खो देता है और वह ठंडा हो जाता है ।
प्राण वायु
श्वास का आना जाना प्राण वायु के द्वारा ही होता है । प्राण वायु से ही हमारी सांसे चलती है । मृत्यु के 48 से 64 मिनट के बीच प्राण वायु निकल जाती है ।
उदान वायु
उदान वायु के द्वारा वाणी को शक्ति मिलती है जिससे व्यक्ति बोल पाने में सक्षम हो जाता है । मृत्यु के 6 से 12 घंटे में उदान वायु बाहर निकल जाती है ।
अपान वायु
शरीर में मल मूत्र का विसर्जन अपान वायु से होता है । मृत्यु के 8 से 18 घंटो के बीच अपान वायु बाहर निकल जाती है। अपान वायु का मुख्य कार्य शरीर को सुरक्षित रखना है।
व्यान वायु
व्यान वायु अति सूक्ष्म होती है । व्यान वायु शरीर को संगठित और सुरक्षित रखती है सामान्य मृत्यु में यह शरीर से 11 से 14 दिनों तक बाहर निकलती रहती है।
मृत्यु एक धीमी प्रक्रिया है वह हर समय होती रहती है इस समय भी हो रही है योग के माध्यम से हम मृत्यु के रास्ते में रुकावट डाल सकते हैं लेकिन उसे रोक नहीं सकते ।
मृत व्यक्ति के कपड़े क्यों नहीं पहने जाते ?
आज के समय में आपके पुराने कपड़ों से आप का डीएनए लिया जा सकता है । डीएनए के माध्यम से 100 साल के बाद भी आप का 'क्लोन' बनाया जा सकता है यानी कि आपकी भौतिकता आपके कपड़ों से ली जा सकती है और आपको दोबारा बनाया जा सकता है ।
डीएनए के माध्यम से मृत व्यक्ति का दुबारा शरीर बनाया जा सकता है, जो दिखने में मृत व्यक्ति जैसा ही होगा । हम डीएनए से शरीर बना सकते हैं । इसका मतलब आप अभी भी भौतिक रूप से हर जगह मौजूद है ।
जब कोई योगी मरता है तो उसकी कुटिया को जला दिया जाता है । जहां वह योगी अकेला रहता था ऐसा करने का यह पुराना तरीका है। क्योंकि वह नहीं चाहते कि उनके डीएनए का एक भी अणु वहां जीवित रहे।
आप का डीएनए आपके शरीर जैसा ही है जिससे आपका शरीर एक बार फिर से बन सकता है। तो जाहिर है कि आपका शरीर मौजूद होता है। इसलिए मृत व्यक्ति की छूट गई हर चीज को जला दी जाती है । मृत्यु के पश्चात घर को अच्छी तरह से साफ किया जाता है । इसी वजह से यह एक मुख्य कारण है की अध्यात्मिक तौर पर लोग अपनी भौतिक वस्तु को इतना कम रखना चाहते हैं ।
सन्यासी लोग जितना हो सके अपने सामान को कम रखना पसंद करते हैं अगर आप उनके कमरे में जाएं तो आप देखेंगे 3 जोड़ी कपड़े, पानी पीने के लिए एक बर्तन, खाना खाने के लिए एक थाली और सोने के लिए एक चादर के सिवा एक भी अतिरिक्त वस्तु नहीं होता । क्योंकि वह संसार की कोई अन्य वस्तु को लेना नहीं चाहते इसे जितना हो सके कम रखना चाहते है ।
योगी को पता है अगर वह अपने शरीर को चारों ओर से फैलायेगा तो उसे इकट्ठा करना और फिर संसार से जाना बहुत कठिन होगा । इसलिए वह किसी भी तरह का शारीरिक संबंध नहीं बनाता है । वह समझता है कि उसका शरीर हर जगह होगा तो उसे इकट्ठा करके जाना बहुत मुश्किल होगा ।
जो लोग आपके शरीर से उत्पन्न हुए हैं वह लोग भी समय आने पर आपके साथ वापस जाना नहीं चाहेंगे । वह हर तरह का प्यार आपसे जता देंगे लेकिन कोई भी आपके साथ वापस जाना नहीं चाहेगा ।
अगर किसी व्यक्ति के पास अत्याधिक कपड़े और जूते हैं तो उन्हें जला देना भी बर्बादी होगी सब कुछ जलाने का कोई मतलब नहीं है। कम से कम जो चीज शरीर से जुड़ी हुई है जैसे मृत व्यक्ति के कपड़े और वह कपड़े जो मृत व्यक्ति आमतौर पर अधिक पहनता हो उन कपड़ों को नहीं रखना चाहिए। उन्हें जरूर जला देना चाहिए।
मृत्यु के शुरुआती दिनों में मृत व्यक्ति आसपास ही होता है उससे जुड़ी वस्तुएं उसके रास्ते में अवरोध का काम करती है। वह व्यक्ति आसानी से आगे नहीं बढ़ पाता है । वह समझ नहीं पाएगा कि उसे यही रहना चाहिए या आगे बढ़ जाना चाहिए । वह निर्णय लेने में असमर्थ होता है क्योंकि मृत व्यक्ति मैं विवेक नहीं होता केवल प्रवृत्ति होती है ।
शरीर छूटने के बाद प्राणी चीजों में फर्क नहीं कर पाता। मृत व्यक्ति के शरीर से जुड़ी बहुत सारी वस्तुएं अगर घर में रहे तो वह उस व्यक्ति को हमेशा परेशान करेगी । इसलिए ऐसी चीजों को जला दिया जाना चाहिए।
मृत व्यक्ति भले ही उन कपड़ों में ना हो लेकिन डीएनए के रूप में वह उन कपड़ों में रहता है । अगर किसी पुलिस के कुत्ते को लाया जाए और 1000 जैकेट्स में उसे श्यामलाल की जैकेट ढूंढने को कहा जाए तो वह ढूंढ लेगा। इसका मतलब मृत व्यक्ति किसी रूप में उस जैकेट में मौजूद है जिसे कुत्ता भी देख सकता है तो जब किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसका शरीर कई रूपों में वहां होता है जिसके कारण कई तरह की ताकत और शक्तियां वहां रहने लगती हैं ।
इस तरह वह खाली जैकेट एक प्रकार का आपका शरीर ही है और शरीर को खाली छोड़ना ठीक नहीं। इसलिए उस जैकेट को तुरंत धो देना चाहिए या उसे जला देना चाहिए। भारत में शुरू से ही यह रिवाज रहा है। इसीलिए भारत देश में मृत व्यक्ति के कपड़ों दोबारा पहनने का रिवाज नहीं है उन कपड़ों को या तो फेंक दिया जाता है या जला दिया जाता है।- Sadhguru के विचार
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