महाराजा विक्रमादित्य (विक्रमी सम्वत् 2079)
महाराज विक्रमादित्य भारतीय अस्मिता व गौरव के प्रतीक |
वर्तमान सृष्टि को आरम्भ हुए 1 अरब 95 करोड़ 58 लाख 121 वर्ष हो चुके हैं । सृष्टि के प्रारम्भ से ही नववर्ष चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की पहली तिथि को मनाया जाता रहा है क्योंकि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सूर्योदय के समय सृष्टि का निर्माण किया था । ब्रह्मलोक का एक दिन हमारे मनुष्य लोक के 4 अरब 32 करोड़ वर्ष का होता है ।
ब्रह्मा जी अपने लोक के अनुसार प्रतिदिन सायंकाल में महाप्रलय लाते हैं और अगले दिन प्रातः काल उठ कर नव सृष्टि की रचना जीवों के कर्मों के अनुसार करते हैं । महाप्रलय में सभी जीवों के कारण शरीर पराप्रकृति दुर्गा जी में लीन हो जाते हैं और प्रातः काल दुर्गा जी सभी प्राणियों के कारण शरीर ब्रह्मा जी को देकर सृष्टि निर्माण करने को कहती हैं
तथा ब्रह्मा जी नव सृष्टि की रचना महामाया दुर्गा जी की आज्ञा से करते हैं । इसीलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को जगत धात्री नवम तत्व श्री दुर्गा जी के नवरात्रे प्रारम्भ होते हैं । जब हमारी भारत भूमि में शकों के अधीन हो गई तो उन्होंने इस सम्वत्सर व्यवस्था को समाप्त कर दिया ।
तदुपरांत सम्राट विक्रमादित्य जी ने आततायी शकों को परास्त करके इस प्राचीन सम्वत्सर व्यवस्था को पुनर्स्थापित किया और तभी से यह सम्वत् विक्रमी सम्वत् कहलाया । सम्वत् ज्ञातव्य है कि भारत वर्ष की काल गणना में बीसों सम्वत् चले परन्तु कोई दीर्घजीवी नहीं रहा । जितने भी सम्वत् चले हैं उनमें सर्वाधिक व्यापकता और लोकमान्यता विक्रमा सम्वत् को ही प्राप्त है ।
विक्रमी सम्वत् का प्रारंभ भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात 470 में तदानुसार ईसा से 57 वर्ष तथा शक सम्वत् से 135 वर्ष पूर्व महान तेजस्वी शूरवीर परम प्रतापी , प्रजावत्सल , न्यायप्रिय , गुणीगुणज्ञ , उदात्त , बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी महाराज विक्रमादित्य के अवंती के राज सिंहासन पर आसीन होने पर हुआ ।
लगभग 13 वर्ष के पश्चात यह सम्वत् सम्पूर्ण भारत वर्ष में प्रचलित हो गया । प्रारंभ में यह सम्वत् कृत सम्वत् व मालव सम्वत् के नाम से व्यवहृत हुआ पर लोकनायक विक्रमादित्य की विमल कीर्ति के कारण तथा अवंती शासन पर आसीन होने का समय भारतवर्ष की शांति - समृद्धि व उत्कर्ष का काल होने के कारण बाद में वह विक्रमी सम्वत् के नाम से प्रचलित हो गया ।
उत्तर प्रदेश में यह सम्वत् चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से तथा दक्षिण भारत में कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा से आरंभ होता है । प्राचीन ग्रंथों में विक्रमादित्य को अनाथों का नाथ , बंधुहीनों का बांधव , पितृहीनों का पिता , निराश्रितों का आश्रयदाता और प्रजाजनों का प्राणत्राण एवं सर्वस्व तक बताया गया है ।
इस वर्ष नव विक्रम संवत् 2079 का शुभारम्भ 02 अप्रेल 2022 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा , शनिवार से है । विक्रम संवत 2079 नल नामक संवत्सर के नाम से जाना जायेगा । इस वर्ष का राजा शनि है और इस वर्ष के मन्त्री गुरु होंगे।
भारतीय या सनातनी व्यवस्था पूर्ण रूपेण विज्ञान पर आधारित है। हम सूर्योदय के साथ दिन का प्रारम्भ मानते हैं तथा एक महीने बाद जब संक्रांति के समय राशि बदलती है उसी दिन नया महीना चढ़ता है । संक्रांति के दिन सूर्य अपनी गति के अनुसार राशि के 30 अंश पूरे करता है - कुल 12 राशियां होने के कारण ही साल में 12 महीने होते हैं ।
इसी प्रकार सप्ताह का प्रारम्भ भी रविवार को ही होता है । यह दिन भी सूर्य के साथ जुड़ा होने के कारण रविवार या सन डे कहलाता है इस प्रकार चन्द्रवार अर्थात सोमवार को अंग्रेज भी मून डे के साथ जोड़ते हैं । सप्ताह के अन्य दिनों के नाम एवं प्रभाव ग्रहों के अनुसार ही हैं ।
संसार की कोई भी पद्धति साल के 13-14 महीने नहीं कहती और न ही कोई सप्ताह में पड़ते दिनों के नाम बदल सका । वास्तव में सारा संसार ही सनातनी पद्धति को मानता है इसीलिए भारतवर्ष विश्वगुरु कहलाता है । जो कुछ भी लोगों ने बदलने की कोशिश की वह प्रकृति के नियमों की कसौटी पर ठीक नहीं उतरी।
उदाहरण के तौर पर अंग्रेज 1 जनवरी को नया साल मनाते हैं परंतु इस दिन नया कुछ नहीं होता । वृक्षों पर लगे पत्ते भी झड़ जाते हैं । फूल समाप्त हो । जाते हैं । खून भी जमने लगता है । प्राणीमात्र घरों में बंद हो जाते हैं जबकि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरीर में नए रक्त का संचार होता है ,
वृक्षों पर नए पत्ते फल फूल आते हैं । गेहूं पकती है , ढोल बजते हैं और ऐसा लगता है कि मानो सम्पूर्ण प्रकृति ही नव वर्ष का अभिनन्दन कर रही हो । सारा साल खाने को नया अन्न जुटता है। लोग घरों से बाहर घूमते हैं और प्रसन्नता अनुभव करते हैं। हमारा नववर्ष प्रकृति के नववर्ष से जुड़ा हुआ है ।
चैत्र शुक्ल पक्ष का पहला नवरात्र स्वयं सिद्ध मुहूर्त है।
1. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का निर्माण हुआ ।
2. इसी दिन भगवान श्री राम जी का राज्याभिषेक हुआ ।
3. इसी दिन स्वामी दयानंद जी द्वारा आर्य समाज की स्थापना की गई ।
4. इसी दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक श्री हेडगेव जी का जन्म 1889 में नागपुर में हुआ ।
भारतवासियों को पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण छोड़ कर नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाना चाहिए ।
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