भगवान कहां है ?
अक्सर हमारे मन में यह प्रश्न कभी ना कभी जरूर आता है । भगवान कहां पर है ? क्या भगवान किसी मंदिर में है ? जिसके लिए लोग दूर-दूर तक धार्मिक तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हैं । क्या वह पहाड़ों पर है ? जिसके लिए लोग वैष्णो दरबार, कैलाश मानसरोवर तथा अमरनाथ जी की यात्रा करते हैं ? भगवान कहां पर है ?
इसका उत्तर जानने के लिए जब हम धार्मिक ग्रंथों या धार्मिक लोगो के विचार सुनते हैं तो समझ में आता है कि भगवान सर्वव्यापी, सर्वज्ञ है । भगवान कण-कण में विद्यमान है, भगवान हर जीव प्राणी में है, भगवान का आदि है न अंत है, भगवान समय से भी परे हैं , भगवान अविनाशी है ,भगवान हर जगह व्याप्त है उनको कहीं ढूंढने के लिए जाने की आवश्यकता नहीं ।
यह प्रश्न जब असुर हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र भक्त पहलाद से पूछा था कि तुम्हारा भगवान कहां है ? भक्त पहलाद में उत्तर देते हुए हिरण कश्यप को कहां, 'भगवान श्री हरि हर जगह पर है । कण कण में है । हिरण्यकश्यप ने एक स्तंभ की ओर इशारा करते हुए भक्त पहलाद से पूछा कि, ' क्या तेरा भगवान स्तंभ में भी है' ? भक्त पहलाद में उत्तर दिया, " हां मेरा भगवान इस स्तंभ में भी हैं, वह हर जीव में है वह तुम्हारे अंदर और मेरे अंदर भी है"। क्रोधित हिरण्यकश्यप ने जब उस स्तंभ पर अपने गदा द्वारा प्रहार किया तो वह स्तंभ चूर-चूर हो गया और उस स्तंभ में भगवान श्री हरि नरसिंह अवतार में प्रकट हुए । यह देख कर दानव राज हिरण्यकश्यप अचंभित हो गया ।
अब प्रश्न ये उठता है कि क्या भगवान सचमुच कण-कण में है वह हर जगह विद्यमान है तो वह हमें दिखाई क्यों नहीं देते ? आइए अब श्री कृष्ण लीला में घटित एक और घटना का वर्णन करते हैं।
बाल अवस्था में जब भगवान श्री कृष्ण भूमि पर लेट कर मिट्टी खा रहे थे । यह देख कर मां यशोदा जी ने यह जानने के लिए कि उनके मुंह में क्या है उनसे मुंह खोलने को कहा । बार बर कहने पर जब भगवान श्री कृष्ण ने अपना मुंह खोला तो उसमें यशोदा जी को पूरे ब्रह्मांड के दर्शन हुए । अब प्रश्न यह उठता है कि क्या पूरा ब्रह्मांड किसी के मुंह में हो सकता है ?
जैसा कि हमने पहले बताया कि भगवान की परिभाषा क्या है। भगवान सर्वज्ञ, सर्वव्यापी , और हर कण-कण में विद्यमान है । भगवान का ना आदि है और ना ही अंत । भगवान समय से परे हैं अर्थात समय भी उन्हें बांधकर नहीं रख सकता और ना ही उन्हें नष्ट किया जा सकता है वह अविनाशी है ।
प्रश्न यह उठता है कि क्या इस ब्रह्मांड में कोई ऐसी चीज है जो इन प्रश्नों का उत्तर दे सके या असल में मौजूद हो अगर हम दिमाग लगाए तो एक चीज है ऐसी जो इन सभी प्रश्नों का उत्तर दे सकती हैं और वह पूरे ब्रह्मांड में मौजूद भी है वह है स्पेस यह रिक्त स्थान जो हमारे चारों तरफ फैला हुआ है । यह पूरे ब्रह्मांड में फैला हुआ है । जो हमारे चारों तरफ मौजूद है। जिसका आदि है न अंत जिसको मापा नहीं जा सकता । वह समय से परे हैं और यह अनंत भी है । यह हर कण-कण में है और यह हर जगह मौजूद है और इसे नष्ट भी नहीं किया जा सकता तो क्या स्पेस ही भगवान है ।
आइए इसे एक उदाहरण द्वारा समझते हैं हम सभी प्राणियों में चाहे वह जानवर हो या मानव सभी के पेट में सुक्ष्म कीट होते हैं । अगर हम एक मिनट के लिए यह मान ले कि वह कीट सोचने और समझने में इंसानों जैसे योग्य है इंसानों के शरीर में रहकर वह इंसान को ही ढूंढ रहे हैं लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद भी वह इंसानों को नहीं देख पा रहे हैं ।
वह इंसान के पूरे शरीर में भ्रमण कर रहे हैं लेकिन वह इंसान को नहीं देख सकते। उनको ऐसा करने के लिए इंसान के शरीर से बाहर निकलना होगा उसी प्रकार से मनुष्य पृथ्वी पर अपने आप को ढूंढ रहा है हालांकि उसे यह तो पता है कि वह पृथ्वी पर किस जगह किस शहर किस नगर किस मोहल्ले में है लेकिन पूरी आकाशगंगा में पृथ्वी किस जगह पर है पृथ्वी को नहीं मालूम है । इसी प्रकार पूरा अकाशगंगा इस ब्रह्मांड में कहां पर है आकाशगंगा को नहीं मालूम और पूरा ब्रह्मांड इस अंतरिक्ष में कहां पर है उसे भी नहीं मालूम ।
यह सब अनभिज्ञ है तो हो सकता है कि यह पूरा ब्रह्मांड पूरा अंतरिक्ष ही भगवान का शरीर हो और हम स्वयं भगवान के अंदर ही विद्यमान हैं और चारों तरफ हम भगवान को ढूंढ रहे हैं कि आखिर ईश्वर, भगवान कहां पर है । वह हमें दिखाई क्यों नहीं देते हम भी मात्र कीट जैसे ही हैं जो मनुष्य शरीर में रहकर भी स्वयं अपने मालिक को ढूंढ रहा हैं कि मनुष्य कहां पर हैं ।
ईश्वर को सामान्य मनुष्य सामान्य दिमाग से नहीं समझ सकता । यह आंकलन भी नहीं लगाया सकता है कि भगवान का स्वरूप क्या है । एक लाख साल के मानव इतिहास में अभी हमने विज्ञान नामक पुस्तक की सतह मात्र ही कुरेदी है पूरा किताब अभी हमें पढ़ना बाकी है ।
यह धरती, आकाश, सूरज और चांद सितारे । अनंत आकाश में टिमटिमाते अनगिनत तारे, आकाशगंगा में अनेक लोक अनेक नक्षत्र यह जो हम देख सकते हैं और नहीं भी देख सकते है, वह सब कुछ निराकार ब्रह्म के अंदर ही है । निराकार ब्रह्म के बाहर कुछ भी नहीं है । निराकार ब्रह्म का कोई आकार नहीं है उनकी कोई प्रतिमा नहीं है । वह अजन्मा और अविनाशी है चाहे सृष्टि हो या ना हो या चाहे प्रलय हो । वह सदा-सदा विद्यमान है उनकी कभी मृत्यु नहीं होती है । इसलिए उन्हें मृत्युंजय कहते हैं ।
इस संसार में जो आता है उनका जाने का समय भी निश्चित होता है परंतु निराकार ब्रह्म के जाने का कोई समय नहीं होता वह सदा-सदा विद्यमान रहता है । इसलिए उन्हें महाकाल कहते हैं । काल समय को कहते हैं और महाकाल अर्थात महा-समय को कहते हैं। ऋषि मुनि और साधु संत गण मोक्ष प्राप्ति के लिए इसी निराकार ब्रह्म का ही ध्यान करते हैं । वह इन्हें अपनी दिव्य दृष्टि से देख पाते हैं । इन्हीं निराकार ब्रह्म को शिव कहते हैं ।
इन्हीं से सारी आत्मा उत्पन्न होती है और अंत के पश्चात इन्हीं में संग्रहित हो जाती है । इसीलिए इन्हें शंहारकारी भी कहते हैं । सभी आत्माओं के स्वामी होने के कारण यह परम आत्मा है । ऋषियों ने बताया था यह अनंत आकाश संपूर्ण ब्रह्मांड भगवान शिव का शरीर ही है । सामान्य बुद्धि के लोगों ने आकाश की ओर देखा तो यह आकाश नीले रंग का दिखाई दिया तभी से लोगों ने माना कि भगवान का शरीर नीले रंग का ही होता है और तभी से ईश्वर के सभी रूपों को नीला मान लिया गया ।
संपूर्ण ब्रह्मांड भगवान का शरीर ही है जिसमें सारे लोक, ग्रह, आकाशगंगा और स्वयं मानव भी विद्यमान है । हम सब भगवान के शरीर में ही है जिन्हें अन्य कहीं ढूंढने की जरूरत नहीं है ।
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