बहरे - गूंगों को ' बोलना ' कैसे सिखाया जाता है ?
एक विद्यार्थी ने अपने टीचर से पूछा, " सर वह लोग जो सुन नहीं सकते तथा बोल नहीं पाते किस तरह से बोलना सीखते हैं ?
टीचर ने उत्तर दिया, "यह विचार जेरोम कोर्डान नामक एक इतालवी डाक्टर का था कि ऐसे लोगों को लिखे शब्दों के माध्यम से सिखाया जाए । यह बात 16 वीं शताब्दी की है । लगभग 100 वर्ष बाद ' फिंगर अल्फाबेट ' का विकास किया गया ताकि उंगलियों के माध्यम से अक्षर बनाए जा सकें तथा उनसे आगे शब्द बनाए जा सकें ।
" अश्मित ने कहा , " सर , मेरे एक मित्र का भाई गूंगा तथा बहरा है । मेरे मित्र ने मुझे बताया कि तीन उंगलियों से ठुड्डी पर ' टैप ' करने का अर्थ है ' मेरे अंकल ' । " सर ने उत्तर दिया , " हां , यह संकेतों की भाषा है । यदि आप यह कहना चाहते हैं कि आप मुझसे सच नहीं कह रहे हैं तो आपको अपनी तर्जनी उंगली को अपने होंठों के आगे से फिराना होगा।
इस ' वर्णमाला ' से ऐसे लोगों में से कई एक मिनट में 130 तक शब्द समझा सकते हैं । आज इनमें से बहुत से लोग बोलने वाले के होंठों को देख कर उसका अर्थ समझना सीख गए हैं । आजकल सुनने में सहायता करने वाले उपकरणों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है । "
शारीरिक रूप से अन्य बच्चों से अलग होने के कारण मूक बधिर बच्चों को पढ़ाना बहुत ही कठिन कार्य होता है लेकिन अध्यापकों द्वारा धीरे-धीरे इनके ज्ञान में वृद्धि की जाती है । जिसके कारण यह बच्चे वस्तुओं को उसके नाम से पहचान कर पाने में समर्थ हो जाते हैं।
अध्यापकों द्वारा गूंगे बहरे बच्चों को साइन लैंग्वेज के द्वारा पढ़ाया जाता है जिसके अंतर्गत विभिन्न वस्तुओं का फोटो दिखाकर बच्चों के ज्ञान में वृद्धि की जाती है अगर किसी बच्चे को फलों और सब्जियों के बारे में बताना हो तो पहले फलों या सब्जियों की फोटो दिखाई जाती है और उनके नाम को लिखा जाता है ।
जिससे बच्चों को पता लग जाता है कि इस फल का क्या नाम है। मूक बधिर बच्चों के स्कूल में साइन लैंग्वेज सिखाया जाता है । साइन लैंग्वेज एक प्रकार की बॉडी लैंग्वेज होती है। जिसमें हाथों और उंगलियों को अलग-अलग प्रकार से Move किया जाता है। हाथ और उंगलियों की हर एक Movement का कोई ना कोई अर्थ होता है।
जिसके माध्यम से यह बच्चे एक दूसरे से आसानी से बात कर पाते हैं और दूसरों की बातों को समझ लेते हैं । मूक बधिर बच्चों की तरह नेत्रहीन बच्चों को पढ़ाने के लिए एक विशेष प्रकार की पद्धति अपनाई जाती है । जिसे ब्रेल पद्धति कहते हैं। इस पद्धति में बच्चों के लिए एक विशेष प्रकार की पुस्तक होती है जिसमें अक्षरों की जगह पर छोटे-छोटे छिद्र वह अक्षरों के उभार होते हैं ।
सामान्य बच्चे जहां अक्षरों को देखकर पढ़ते हैं वही नेत्रहीन बच्चे अपनी उंगली के माध्यम से अक्षरों के उभारो को छूकर पढ़ते हैं। इस पद्धति को ब्रेल पद्धति कहते हैं। यह पद्धति दुनियाभर में नेत्रहीन बच्चों द्वारा अपनाई जाती है । इस पद्धति के द्वारा बच्चे अक्षरों के उभारो को छूकर पढ़ते व लिखते हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी की मूक बधिर बच्चे 10वीं 12वीं यहां तक कि ग्रेजुएशन भी करते हैं । कई मूकबधिर बच्चे सरकारी विभाग में कार्यरत है और अपनी सेवा दे रहे हैं। मूक बधिर बच्चों के लिए भारत सरकार कई प्रकार की योजनाएं चलाती हैं ताकि इन बच्चों का भविष्य उज्जवल बन सके।
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