दादाभाई नौरोजी का जन्म गुजरात के नवसारी में हुआ था । उनका परिवार काफी गरीब था । उनके पूर्वज पारसी पुजारी हुआ करते थे । वह केवल चार वर्ष के ही थे जब उनके पिता का देहांत हो गया । उनकी माता ने बड़ी मेहनत से उन्हें पाला - पोसा। उनकी माता ने एक पिता की जिम्मेदारी भी बहुत अच्छे से निभाई ।
दादाभाई नरोजी का विवाह मात्र 11 वर्ष की आयु में गुलबाई देवी के साथ हुआ । उस समय उनकी पत्नी की आयु केवल 7 वर्ष की थी । भारत में उस समय बाल विवाह की प्रथा थी बाद में इस प्रथा को हटा दिया गया । इस शादी से उन्हें तीन संतानों की प्राप्ति हुई। गरीबी के बावजूद उनकी मां ने उन्हें अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाया ।
वह एक कुशाग्र बुद्धि छात्र थे । स्कूल में उन्होंने कई छात्रवृत्तियां हासिल कीं । इसी कारण उन्हें एलफिंस्टन कालेज में प्रवेश पाने में आसानी हुई । उनके शिक्षक भी उनकी बुद्धिमत्ता से प्रभावित थे । वह गणित में बहुत ही होशियार थे । उनके एक प्रोफैसर तो उन्हें इंगलैंड भेजना चाहते थे लेकिन दादाभाई की परिस्थितियों ने उन्हें यह प्रस्ताव ठुकराने पर मजबूर कर दिया
और वह रोजी - रोटी की फिक्र में लग गए लेकिन कुछ ही दिनों बाद उन्हें लंदन में नौकरी मिल गई । वहां रहते हुए उन्होंने भारतीयों को संगठित कर एक इंडियन सोसायटी की स्थापना की । दादाभाई नरोजी जी ने पारसी सोशल रिफॉर्म की बात की थी। इसमें उन्होंने भारत में रहने वाले पारसी समुदाय के लोगो में फैले अंधविश्वास, पिछड़ापन और मध्यवर्गीय परिवार के कल्याण और उनके उत्थान की बात कही ।
सन 1855 में वह लंदन चले गए वहां वह कामायन कंपनी में पार्टनर रहे । यह पहली भारतीय कंपनी थी जो यूनाइटेड किंगडम में स्थापित की गई थी । वह तीन साल तक इस कंपनी में कार्यरत रहे । उसके बाद उन्होंने 1859 में अपनी एक कोटन ट्रेडिंग कंपनी स्थापित की जिसका उन्होंने नाम दिया दादाभाई नरोजी एंड कंपनी ।
दादाभाई नौरोजी में शुरू से ही देशभक्ति की भावना भरी हुई थी । वह एक अच्छे शिक्षा शास्त्री राजनीतिक शास्त्री और अर्थशास्त्री भी थे । जब ए.ओ. ह्यम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की , तब वह उनके साथ थे । यानी वह इसके संस्थापक सदस्यों में से एक थे । उन्होंने कांग्रेस के तीन अधिवेशनों की अध्यक्षता की । सन् 1906 में कांग्रेसियों में नीतियों को लेकर मतभेद होने लगे ।
नर्म और गर्म दल बनने के कगार पर ही थे कि दादाभाई को लंदन से बुलाया गया और उन्होंने कांग्रेस को विभाजित होने से बचा लिया । सन् 1892 में उन्हें ब्रिटिश संसद का सदस्य बनाया गया। यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय थे । वह भारत को एक जिम्मेदार सरकार को सौंपे जाने के पक्ष में थे । सन 1874 में दादाभाई नौरोजी को बड़ौदा स्टेट के महाराज ने उन्हें अपना दीवान बना लिया ।
1876 में इंडियन नेशनल एसोसिएशन को जब सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने आनंद बोस जी की मदद से बनाया तो उसके सदस्य दादाभाई नौरोजी भी बने थे । दादा भाई नौरोजी ने महत्वपूर्ण विचार दिया जिसका नाम उन्होंने The Drain Theory Of Wealth दिया । इसके माध्यम से उन्होंने दुनिया को समझाया कि कैसे ब्रिटिश सरकार किन-किन तरीकों का इस्तेमाल करके भारत की संपत्ति को अपने देश लेकर जा रही हैं और भारत का आर्थिक शोषण व कमजोर कर रही है ।
भारतीयों को उनके अधिकार मिलने चाहिए । उन्होंने अपने इस विचार को सन 1901 में अपनी एक पुस्तक पॉवर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया' प्रकाशित की। इन सब का असर ही था कि रॉयल कमिशन इंडियन एक्सपेंडिचर 1896 में गठित हुआ । इसे ब्रिटेन की अथॉरिटी ने ही बनाया और दादाभाई नरोजी को इसका सदस्य भी बनाया इसका उद्देश्य दादाभाई नरोजी द्वारा बनाए गए The Drain Theory Of Wealth पर कार्य हो सके और भारतीयों को उनके अधिकार मिल सके । हालांकि यह बस खानापूर्ति मात्र था । इस पर कोई कार्य नहीं हुआ।
नौरोजी ने यूनाइटेड किंगडम हाउस ऑफ कॉमन्स में लिबरल पार्टी के सदस्य के रूप में संसद सदस्य (एमपी) के रूप में कार्य किया। वह ब्रिटिश सांसद बनने वाले पहले भारतीय थे। उन्होंने 1865 में 'लंदन इंडियन सोसाइटी' के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1867 में 'ईस्ट इंडिया एसोसिएशन' की स्थापना में मदद की थी । 31 अक्टूबर 1861 इन्होंने एक धार्मिक, सांस्कृतिक, समजिक संगठन बनाया जो भारतीयों के अधिकार, न्याय के लिए बना । जिसका नाम दिया:-
The Zoroastrian Trust Fund of Europe (ZTEF)
लंदन इंडियन सोसायटी 1865
ईस्ट इंडिया एसोसिएशन 1867
अंग्रेजों द्वारा एथनोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन बना । इसमें यह बताया गया कि हम जो यूरोपियन है वह भारतीय से काफी समझदार है और उन्हें यह अधिकार मिलना चाहिए कि उन्हे भारतीयों को समझाना और सिखाना चाहिए । लेकिन दादाभाई नौरोजी की ईस्ट इंडिया एसोसिएशन जो उन्होंने 1867 में लिखी थी उसमें इस बात का खंडन किया कि भारतीय किसी से कम नहीं है उन्हें कमजोर ना समझा जाए। भारतीय भी उतने ही समझदार हैं जितने यूरोपियन ।
अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए दादाभाई नौरोजी लेखनी का सहारा लेते थे । वह अच्छे लेखक थे और राजनीतिक , सामाजिक और शैक्षिक विषयों पर लिखा करते थे । वह सामाजिक सुधारों और भारतीयों के बीच एकता के लिए सदैव सक्रिय रहे । और उन्होंने कुल 30 स्वैच्छिक संस्थाओं की स्थापना की । देश के सभी दिग्गज नेता उनका सम्मान किया करते थे और हर मामले में उनकी सलाह ली जाती थी ।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखने वाले दादा भाई नौरोजी को राजनीति का पितामह का दर्जा दिया गया था । दादा भाई नौरोजी बहुत प्रभावशाली व्यक्ति थे उनसे मोहम्मद अली जिन्ना, बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले और महात्मा गांधी जी ने बहुत कुछ सीखा । दादाभाई नौरोजी के सम्मान में कई नाम रखे गए हैं जैसे:-
दादाभाई नौरोजी रोड इन मुंबई
दादाभाई नौरोजी रोड इन कराची, पाकिस्तान
नौरोजी स्ट्रीट finsbury section of London
भारत सरकार ने दादाभाई नरोजी के नाम से कई डाक टिकट भी जारी किये है ।
30 जून , 1917 को इस महापुरुष का देहांत हुआ ।
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