समुद्र में लहरें कैसे उत्पन्न होती हैं ?
लहरों की शक्ति
लहरें समुद्र की गतिशीलता को बताती हैं । लहरो के ही कारण जहाज या नाव में बैठे व्यक्ति को ऐसा लगता है कि सब कुछ हिल रहा है । जब लहरें उठती हैं तो वे बड़े - बड़े जहाजों को अपने साथ ऊंचा उठा देती हैं और उसके बाद वे लहर के पीछे के गर्त में जा गिरते हैं ।
लहरें बराबर समुद्र तट से टकराती रहती हैं , कई बार धीमे से और कभी - कभार बड़े वेग से लहरों से विश्व भर में समुद्र तटों को हानि पहुंचाती है , गोदियां और पट्ट नष्ट भी हो जाते हैं । अगर कोई तट कट जाता है तो उसकी जिम्मेदारी भी लहरों पर ही हैं । इन सबके बावजूद लहरें आमोद प्रमोद का साधन भी बन जाती हैं ।
बहुत से लोग तख्ते आदि पर बैठकर लहरों का आनंद लेते हुए समुद्र में विचरण करते देखे जा .. सकते हैं । लहरों के बारे में कई प्रकार के प्रमेय हैं , लहरें हवा चलने से पैदा होती हैं । लहरों के माध्यम से जल एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं जाता जैसे कि धाराओं के माध्यम से जाता है । लहर तो जल की ऊपर नीचे होने वाली गतिमात्र है ।
जब धीमी हवा चलती है तो छोटे - छोटे पौधे हिलने लगते हैं और हवा के वेग से ही नीचे को झुकते और फिर अपना सिर उठाते हैं। जब हवा चलनी बंद हो जाती है तो पौधे फिर अपनी पहले वाली स्थिति में आ जाते हैं । इसी प्रकार हवा के वेग से जल नीचे - ऊपर होता है और हमें लहरों के रूप में दिखाई देता है ।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जल के कण ऊपर उठते हैं , आगे को चलते हैं फिर गिर पड़ते हैं और फिर पीछे चले जाते हैं । जल के कण कहीं बंधे हुए नहीं होते जैसे कि छोटे - छोटे पौधे होते हैं। इसलिए उनकी गति लहरों के रूप में होती है ।
इस प्रकार की लहरें खुले समुद्र में देखी जा सकती हैं जहां जल के कणों के इधर से उधर जाने में कोई बाधा नहीं होती लेकिन तटों या द्वीपों बल्कि जहाजों के आस - पास भी जल के कणों के लहरदार रास्ते में रुकावट आती है और जब लहरें टकराती हैं तो फेनिल तरंगों का रूप धारण कर लेती हैं।
लहर के चार भाग होते हैं उसका ऊपर का भाग , उसके बीच में खाली स्थान , उसकी ऊंचाई और उसकी लम्बाई लहर का सबसे भाग उसकी कलगी कहलाता है और ऊंचा उसका सबसे निचला हिस्सा वह खाली स्थान है जहां से जल ऊपर उठ गया है । सबसे ऊंचे स्थान और निचले स्थान के बीच की दूरी लहर की ऊंचाई है और दो लहरों की कलगियों के बीच की दूरी लहर की लम्बाई ।
जब तक लहर का ऊपरी और सबसे निचला भाग बिना किसी रुकावट के आगे जा सकता है । तब तक वह सच्चे अर्थों में लहरदार संचलन है लेकिन तट के समीप या जहां जल के नीचे चट्टानें हों लहर का निचला भाग उनसे टकराता है और चलते हुए जल के कणों की घुमावदार प्रगति में बाधा डालता है ।
परिणाम यह होता है कि लहर का सबसे ऊंचा भाग नीचे गिर पड़ता है और जल के कणों की डोलन जैसी गति समाप्त हो जाती है । जब लहर गिरती है तो उसे ब्रेकर ( अर्थात तट से टकराती ) लहर कहा जाता है । ऐसी लहरें बड़ी मात्रा में गतिज ऊर्जा को जन्म देती हैं । जब तक अधिक और लहर उत्पन्न करने वाली वायु का वेग स्थायी रहता है , तब तक गिरती हुई लहरों में बहुत शक्ति रहती है ।
जब हवा की गति सामान्य हो तो लहरों की ऊंचाई 2 से 5 मीटर तक होती है लेकिन जब वायु का वेग बहुत अधिक हो तो 10 से 12 मीटर तक ऊंची लहरें उठती हैं । दूसरे शब्दों में लहर की ऊंचाई चार मंजिल के मकान जितनी हो जाती है । कहीं - कहीं लहर की ऊंचाई तीस मीटर तक देखी गई है जो गगनचुम्बी इमारत जितनी होती है ।
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