पृथ्वी के वातावरण में मौसम में दिन - प्रतिदिन परिवर्तन आता है । प्रतिदिन हमें अखबार , रेडियो तथा टैलीविजन से मौसम की भविष्यवाणी पता चलती है । मौसम विशेषज्ञ वर्षा, तूफान या गरज के साथ छींटे पड़ने की संभावना बारे अनुमान बताते हैं । क्या आप जानते हैं कि किस तरह से यह जानकारी प्राप्त की जाती है ?
वैज्ञानिकों को मौसम संबंधी भविष्यवाणी करने से पूर्व बहुत से पहलुओं का अध्ययन करना पड़ता है । दरअसल मौसम बारे भविष्यवाणी करना मौसम के व्यवहार के अध्ययन , जिसे मौसम विज्ञान का नाम दिया जाता है , से प्राप्त जानकारी की व्यावहारिक एप्लीकेशन है । मौसम मुख्यतः वातावरण पर निर्भर करता है अर्थात दबाव , हवाओं की दिशा , आर्द्रता , आसपास का तापमान , बादलों की बनावट , वर्षा , हिमपात आदि ।
मौसम की भविष्यवाणी सरकारी एजैंसियों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की जाती है और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (world meteorological organization ) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर मौसम की भविष्यवाणी कैसे की जाती है ? इसका समन्वयन किया जाता है । इसके तीन आधारभूत चरण हैं अवलोकन , विश्लेषण तथा भविष्यवाणी ।
अवलोकन या आब्जर्वेशन में शामिल है हर पल मौसम पर नजर रखना तथा भूकेन्द्रों , गुब्बारे उड़ा कर तथा उपग्रहों का इस्तेमाल करके संबंधी मौसम आंकड़े इकट्ठे करना । विश्लेषण में सूचना का राष्ट्रीय केन्द्रों पर समन्वयन किया जाता है तथा मौसम के नक्शों एवं चार्ट्स के रूप में बांटा जाता है । फिर भविष्यवाणी में भविष्य के मौसम के बारे में ' साईनॉप्टिक मैथड ' द्वारा भविष्यवाणी की जाती है ,
जिसमें भविष्यवक्ता अपने पुराने मौसम संबंधी आंकड़ों तथा वर्तमान स्थिति संबंधी अनुभवों का इस्तेमाल करता है । विभिन्न तरीकों से एकत्र आंकड़ों का कम्प्यूटर इन केन्द्रों पर विश्लेषण करता है । अब सुपर कम्प्यूटर के इस क्षेत्र में आ जाने के कारण मौसम की भविष्यवाणी के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आए हैं ।
आधुनिक सेटेलाइट की मदद के द्वारा भी बदलते मौसम पर नजर रखी जाती है । चक्रवात की संभावना बनते बिगड़ते मौसम और तापमान में बदलाव पर पहले से नजर रखी जाती है । जिससे उठने वाले तूफानों की जानकारी पहले ही मिल जाती है जिसके कारण समुद्री तट पर रहने वाले मछुआरों और वहां के लोगों को पहले से अलर्ट जारी कर दिया जाता है जिसके कारण जानमल का कम नुकसान होता है ।
' एनेमोमीटर ' नामक एक उपकरण की सहायता से हवा की रफ्तार तथा दिशा मापी जाती है , जबकि ' हाइग्रोमीटर ' नामक उपकरण का इस्तेमाल हवा में आर्द्रता मापने के लिए किया जाता है । वर्षा मापक वर्षा की मिकदार मापते हैं , जबकि ' सनशाइन रिकार्ड्स ' सूर्य की रोशनी की अवधि मापते हैं । ' मैक्सिमम मिनिमम थर्मामीटर ' दिन के 24 घंटों के दौरान विभिन्न तापमानों की जानकारी देते हैं ।
वातावरणीय दबाव को बैरोमीटर की सहायता से मापा जाता है । वातावरणीय दबाव में अचानक आने वाली गिरावट किसी तूफान या चक्रवात का संकेत होता है । दबाव में धीरे - धीरे आने वाली गिरावट संकेत होती है आर्द्रता में वृद्धि तथा वर्षा की संभावना का वातावरणीय दबाव में वृद्धि आगे अच्छे मौसम की पूर्वसूचक होती है ।
आसमानी बिजली कैसे बताएगी मौसम का हाल ?
अंधियारी रातों में कौंधती बिजली भले ही हमारे पुरखों को डराने में सफल रही हो लेकिन अब इसे समझने में विज्ञान को सफलता मिल चुकी है । अब न केवल बिजली को मापा जा सकता है बल्कि तूफान की गति , दिशा और जोर मापने में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है ।
इसका एक फायदा यह भी होगा कि तूफान की प्रकृति को समझ कर लोगों को समय रहते चेतावनी दी जा सकेगी और तुरंत ही आपात सुविधा को भी चाक - चौबंद किया जा सकेगा । शोधकर्ताओं का दावा है कि बिजली को समझने के लिए उठाए जा रहे कदम मौसम विज्ञान में बहुत बड़ी क्रांति लेकर आएंगे ।
अब तक के प्रयोग जिस जगह तक पहुंचे हैं , वहां से आसमान में चमकती बिजली का अवलोकन करके 5 मिनट में ही तूफान के बारे में अपनी रिपोर्ट तैयार की जा सकती है । अभी तक तूफान के बारे में लेखा - जोखा सैटेलाइट से पृथ्वी के उस स्थान विशेष की दृश्ययता ( विजिबिलिटी ) के आधार पर ही बनाया जाता था ।
इसके लिए 30 मिनट तक का समय लग सकता था । चूंकि तूफान क्षण - क्षण रंग बदलता रहता है इसलिए शोधकर्त्ता शुरू से ही इस बात पर बल देते रहे हैं कि तूफान के बारे में जो भी गणना हो , वह कम से कम समय में हो .. बिजली या आसमान में होने वाली कौंध वस्तुतः 5 सैंटीमीटर चौड़ी विद्युतधारा होती है । इसकी लम्बाई 60 से लेकर 30 किलोमीटर तक भी हो सकती है ।
इसकी गति 145000 किलोमीटर प्रति घंटा होती है । जब बिजली काँधती है तो इसके आसपास की हवा 29000 डिग्री सैल्सियस तक धधक उठती . है । यह तापमान तो सूर्य की सतह में होने वाले तापमान से भी पांच गुना है लेकिन यह पूरी प्रक्रिया इतनी क्षणिक होती है कि हवा को लगातार गर्म रहने का समय ही नहीं मिलता । बिजली कौंधने में जो ऊर्जा उत्पन्न होती है उसका तीन चौथाई भाग हवा को गर्म करने में ही खत्म हो जाता है ।
बाकी बचा 25 प्रतिशत , वह 12.5 करोड़ वोल्ट की विद्युत धारा के बराबर होता है । आज तक कोई ऐसा व्यक्ति बिजली गिरने के बाद अपने अनुभव बताने के लिए नहीं बचा लेकिन ऐसे तमाम तरीके हैं , जिनसे जाना जा सकता है कि बिजली गिरने वाली है । हवा में चारों ओर गंध फैल जाए और शरीर के बाल एकाएक खड़े हो जाएं तो इसे खतरे की घंटी समझना चाहिए और तुरंत जमीन पर लेट जाना चाहिए ।
अब शोधकर्ता वायुमंडल की बाहरी सतह पर संवेदनशील सैंसरों को लगाने की जुगत लगा रहे हैं । इसका नाम होगा लाइटनिंग मैपर सैंसर यानी एल.एम.एस .। ये सैंसर , पृथ्वी के साथ ही घूमेंगे । इन सैंसरों की विशेषता यह भी है कि जब हम दिन में बिजली गिरने को अनुभव नहीं कर पा रहे होते हैं , तब भी ये सेंसर आंकड़े इकट्ठा करते रहेंगे ।
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