हार गया शैतान का दूत
बहुत समय पहले की बात है । एक गांव में एक निर्धन कृषक रहता था । उसका नाम था मोतीराम । खेती के लिए उसके पास जमीन का एक ही टुकड़ा था । उसका परिवार बहुत बड़ा था , इसलिए हर समय उसे खाने के लाले पड़े रहते थे । फसल की बुआई के पश्चात मोतीराम मजदूरी किया करता और परिवार का पालन - पोषण करता ।
एक दिन शाम को वह मकई की गुड़ाई कर रहा था तो अचानक उसके खुरपे के साथ किसी चीज के टकराने के कारण टन्न की आवाज आई । मोतीराम ने सोचा शायद पत्थर है थोड़ा और खोदने पर उसने देखा कि एक बड़ा - सा बर्तन दबा पड़ा है । बर्तन शायद ताम्बे का था तथा काफी गहराई तक दबा हुआ था । उसने उसके मुंह पर से थोड़ी मिट्टी हटाते हुए उसका ढक्कन उठाया तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं ।
उस बर्तन में बहुमूल्य सोने के सिक्के ही सिक्के थे । यह देखकर उसकी आंखें चमक उठीं । तभी उसने आसपास डरते हुए दृष्टि डाली । वहां कोई नहीं था , उसने झट से ढक्कन बंद करके बर्तन मिट्टी से ढंक दिया । मोतीराम ने सोचा , वह गरीब है । अगर सारे खजाने को घर ले जाएगा तो राजा के सिपाही उसे पकड़कर ले जाएंगे क्योंकि देर सवेर उसके धनी होने की खबर पूरे नगर में फैल जाएगी । स्वयं उसकी पत्नी भांडा फोड़ देगी । उसके पेट में तो कोई बात पचती ही नहीं ।
ऐसे में मोतीराम को अपने बचपन के दोस्त साधुराम की याद आई। दोनों में अच्छी दोस्ती थी , प्यार था और भरोसा था । मोतीराम ने सोचा साधुराम से अच्छा राजदार कोई नहीं मिल सकता । साधुराम का व्यापार अच्छा था , राजा के सिपाहियों का शक उस पर नहीं जाएगा । साधुराम को आधी दौलत देकर थोड़ी - थोड़ी दौलत घर ले जाएगा तथा धीरे धीरे वह भी अमीर हो जाएगा । इस पूरी योजना में उसे कोई जोखिम नहीं दिखाई दिया। थोड़ा अंधेरा होने के बाद ही वह खेतों से साधुराम के घर की ओर चल पड़ा ताकि किसी को शक न हो।
शैतान का दूत यह सारा दृश्य देखं रहा था । उसने सोचा की अचानक एक साथ इतना सारा धन मिलने पर भी मोतीराम को जरा भी लालच नहीं हुआ । उलटे वह आधा हिस्सा साधुराम को दे देना चाहता है और फिलहाल सारा खजाना साधुराम के संरक्षण में रखने की ठान भी चुका है । ऐसे ईमानदार एवं दोस्तों पर इतना विश्वास रखने वाले लोगों के होते हमारा कारोबार तो चौपट हो जाएगा । किसी तरह मोतीराम का ईमान डिगा दूं या दोस्ती से विश्वास हटा सकूं तो शैतान मुझसे कितना खुश होगा , मेरी तरक्की भी कर देगा ।
साधुराम अपनी बात तथा ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध था । मोतीराम ने एकांत में ले जाकर साधुराम को सारी बात बताई। साधुराम पहले तो राजी न हुआ और कहने लगा , ' दोस्त उस खजाने पर तुम्हारा पूर्ण अधिकार है , मैं कोई हिस्सा नहीं लूंगा। " लेकिन मोतीराम ने अपनी दोस्ती तथा गरीबी की दुहाई देकर उसे राजी कर लिया । दोनों में तय हुआ कि खजाना साधुराम के पास बतौर अमानत पड़ा रहेगा तथा मोतीराम जब तक जिंदा है , रोज एक सोने का सिक्का सुबह आकर ले जाएगा ।
दोनों दोस्तों ने मिलकर वह सिक्कों से भरा हुआ बर्तन साधुराम के घर के अंदर सुरक्षित स्थान पर रख दिया । इस प्रकार मोतीराम रोज एक सोने की मोहर ले जाता । अब उसके दिन फिरने लगे । उसने काफी जमीन खरीद ली । पत्नी से वह झूठ कहता था कि कोई दानी सेठ उसे यह सिक्का दान में देता है । फिर धीरे - धीरे पत्नी ने भी पूछना बंद कर दिया। घर में सुख - समृद्धि थी और साधुराम पूरे विश्वास से मोतीराम को सिक्का दे देता था ।
शैतान के दूत को बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था। उसने मोतीराम के मन में तरह - तरह के लालच तथा संशय डाले लेकिन जैसे ही मोतीराम अपने दोस्त साधुराम के घर जाता था उसे देखकर दोनों का बचपन लौट आता था तथा वह सोने का सिर्फ एक सिक्का लेकर शांत भाव से घर आ जाता था । फिर शैतान के दूत ने साधुराम के मन में कपट तथा लालच के भाव डालने शुरू कर दिए लेकिन साधु राम का मन अपने दोस्त के साथ विश्वासघात करने को राजी ना हुआ ।
अगले दिन जैसे ही मोतीराम घर से बाहर निकला शैतान के दूत ने के एक भारी - सा पत्थर उसकी पीठ पर दे मारा , मोतीराम लहूलुहान हो गया । मोतीराम की हालत बहुत खराब हो गई थी । वह चल - फिर नहीं सकता था । सोने के सिक्के का राज भी वह किसी को नहीं बता सकता था । मोतीराम अजीब परेशानी में था । घर में पैसों की जरूरत थी। पत्नी ने पूछा , " वह दानी सेठ कहां रहता है तथा उसका नाम क्या है ताकि ! बड़े लड़के को भेजकर सोने का सिक्का ले आए ।
घर में पैसे बिल्कुल खत्म हो गए हैं । " मजबूर होकर घर की आर्थिक हालत तथा अपनी शारीरिक हालत देखते हुए मोतीराम ने उत्तर दिया , " वहां मैं खुद जाऊंगा , तुम ऐसा करो कि बड़े लड़के को मेरे दोस्त साधुराम के पास भेज दो । वह कुछ पैसों का इंतजाम कर देगा । ' बड़ा लड़का जब साधुराम के घर से वापस आया तो उसके हाथ में सोने के दस सिक्के थे । उतने ही जितने दिन मोतीराम सिक्के लेने नहीं गया था । उसकी पत्नी ने सोचा , " कहीं कुछ छुपी हुई बात जरूर है । "
अगले दिन ज्यों ही उसका लड़का खेतों की तरफ जाने लगा , मोतीराम की पत्नी ने बुलाकर कहा , " देख बेटा , आज फिर तुम साधुराम जी के घर जाओ तथा दस सोने के सिक्के और ले आओ। कह देना पिता जी की बीमारी पर कुछ अधिक ही खर्चा आ गया है । " साधुराम ने सोचा उसका मित्र इस समय विपत्ति में है इसलिए उसे दस सिक्के दे दिए । अगले दिन बीस, फिर तीस , पचास , सौ करते - करते मोतीराम की पत्नी ने काफी दौलत जमा कर ली ।
मोतीराम का माथा ठनका । वह समझ गया कि जरूर उसमें उसकी पत्नी की चाल है । साधुराम ने सारी बातें कह सुनाईं कि तुम्हारा लड़का रोज ही ढेरों सिक्के ले जाता था । अब तो ताम्बे का खाली बर्तन ही बचा है । शैतान का दूत खुश हो गया था कि बस अभी कुछ देर में असली अंतिम विजय होने वाली है । मोतीराम अजीब पशोपेश में था । मोतीराम भावुक हो गया और साधु राम के गले से लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगा।
वह साधुराम से माफी मांगते हुए कहने लगा । वह रोज का अपना एक-एक सिक्का का वादा पूरा न कर सका । वह बीमार अवस्था में था जिसका फायदा घरवालों ने उठाया है । " दोनों सब बातों का रहस्य समझ गए । गले मिलकर उनकी आंखों से अश्रुधारा बह निकली । शैतान के दूत का कलेजा भी पसीजने लगा मगर अगले ही क्षण अपने मालिक शैतान का स्मरण होते ही वह दुम दबाकर शर्म के मारे ऐसा भागा कि उस नगरी की तरफ कभी लौटकर नहीं आया ।
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