एड्स संक्रामक महामारी
एड्स के बारे में पहली आधिकारिक रिपोर्ट 1981 में एक अमेरिकी मैडीकल जरनल अखबार में छपी थी । न्यूयार्क तथा कैलिफोर्निया में डाक्टर वही लक्षण बताते थे जो 1970 के दशक से ही इस बीमारी के साथ बहुत नजदीक से जुड़े हैं ।
उन्होंने ध्यान दिया कि युवाओं की एक बढ़ती जा रही संख्या में बहुत से ऐसे संक्रमण विकसित हो रहे थे , जिन्हें पहले केवल बहुत अधिक उम्र के लोगों में देखा जाता था या फिर ऐसे लोगों में जिनकी प्रतिरक्षण प्रणाली को चिकित्सकीय उपचार से बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया गया था ।
एक बार जब एड्स की पहचान कर ली गई तो शोधकर्ताओं को इस बीमारी के लिए जिम्मेदार विषाणु को अलग करने में ही दो वर्ष का समय लग गया , जिसे ' ह्यमैन इम्यूनो डैफिशिएंसी वायरस ( एच.आई.वी. ) नाम दिया गया था क्योंकि यह प्रतिरक्षण प्रणाली कोशिकाओं पर हमला करता था ।
एच.आई.वी. को शीघ्र ही सभी महाद्वीपों पर मौजूद पाया गया । इस वायरस से संक्रमित बहुत से लोग स्वस्थ जैसे ही दिखाई देते थे लेकिन उनमें से बहुत में एड्स के लक्षण पैदा हो गए तथा वे मर गए ।
इन साक्ष्यों ने कि 1950 के दशक में एच.आई.वी जैसा एक विषाणु अफ्रीका में मौजूद था बहुत से वैज्ञानिकों को यह मानने को मजबूर कर दिया कि एड्स इसी समय कैसे आसपास यहां पैदा हुआ और यह बीमारी अफ्रीका से विश्व में किस तरह फैली होगी।
धीमा तथा मौन हत्यारा
जब लोग पहले - पहल एच.आई.वी. से संक्रमित हुए उन्हें फ्लू जैसे लक्षणों का अहसास हुआ लेकिन फिर वे ठीक होते दिखाई दिए क्योंकि प्रतिरक्षण प्रणाली ने विषाणु को नष्ट करना शुरू कर दिया था ।
एच.आई.वी. को पूरी तरह से मारा नहीं जा सकता क्योंकि विषाणु बड़ी तेजी से परिवर्तन करते हैं - विषाणुओं की अलग किस्में उत्पन्न करते हैं , जिन्हें नष्ट करने के लिए शरीर की प्रतिरक्षण प्रणाली को खुद को तैयार करना होता है ।
विषाणुओं तथा प्रतिरक्षण प्रणाली के बीच लड़ाई आमतौर पर 6 से 10 वर्षों तक जारी रहती है , जब तक कि प्रतिरक्षण प्रणाली को बेकार नहीं कर दिया जाता । एक बार ऐसा होने पर शरीर कई तरह के संक्रमणों के प्रति असुरक्षित हो जाता है
क्योंकि एच.आई.वी. से संक्रमित लोग इतने लम्बे समय तक एड्स के लक्षणों से मुक्त रहते बीमारी के फैलने का पता लगा पाना कठिन होता है और इससे भी कठिन होता है इसे रोक पाना। संक्रमित लोगों में से बहुत से लोग यह नहीं जानते कि उन्हें बीमारी है और अनजाने में ही वे विषाणु को अपने ब्याहता या अन्य विपरीत लिंग के साथियों तक पहुंचा देते हैं ।
इसकी समाज के कुछ वर्गों द्वारा नैतिक आधार पर आलोचना की गई । वे जिन्हें बीमारी ने पकड़ लिया था तथा दशकों तक बीमारी से लड़ने के लिए मिल - जुल कर काम करने में की गई देर के परिणामस्वरूप यह बीमारी फैल गई और विश्वव्यापी परेशानी बन गई जिसके उपचार का मैडीकल साइंस अभी भी कोई सक्षम हल नहीं ढूंढ पाई है ।
टी - कोशिकाओं पर आक्रमण
यहां मनुष्य की प्रतिरक्षण प्रणाली की कोशिका , जिसे टी.सैल ' के नाम से जाना जाता है , को असल आकार से 40,000 गुणा बड़ा करके दिखाया गया है , जिसकी सतह पर एच.आई.वी. ( नीले रंग में ) हैं । एच.आई.वी.टी. सैल्स को नष्ट कर देता है तथा मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर बना देता है ।
एक ऐसे समय पर जब यह समझा जा रहा था कि आधुनिक दवाओं द्वारा विश्व में महामारियों पर काबू पा लिया गया है , विश्व स्तर पर एड्स ( एक्वायर्ड इम्यूनो डैफिशैंसी सिंड्रोम ) के फैलने ने विश्व को डरा कर रख दिया ।
1997 तक लगभग 3 करोड़ लोग एच.आई.वी. से संक्रमित हो चुके थे । एच.आई.वी. वह विषाणु है जो एड्स का कारण बनता है केवल अमेरिका में ही 3,50,000 से अधिक लोग इस बीमारी से मारे जा चुके हैं ।
विषाणु मनुष्य के शरीर के द्रव्यों जैसे कि वीर्य , रक्त तथा ब्रैस्ट मिल्क में पहुंचता है । यह मां से अपने अजन्मे बच्चे तक भी पहुंचाया जाता है । यह धीरे - धीरे शरीर की प्रतिरक्षण प्रणाली को नष्ट करके मार देता है ।
एड्स से लड़ने के लिए दवाएं विकसित की गई हैं लेकिन वे केवल बीमारी के विस्तार की रफ्तार को कम करती हैं ।
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