क्या सारा जीवन हमारी त्वचा वही रहती है ?
अपूर्व ने पूछा , " मैम , क्या हमारी त्वचा सारा जीवन वही रहती है ? " मैम ने उत्तर दिया , " दरअसल सारा जीवन वही त्वचा हमारा साथ नहीं देती । आपको यह जान कर हैरानी होगी कि हमारी त्वचा हर समय बदलती रहती है अर्थात हम कुछ समय बाद नई त्वचा प्राप्त कर लेते हैं । " आप सभी जानते हैं कि हमारी त्वचा में ऊतकों की दो परतें होती हैं ।
एक परत मोटी होती है , यह तंतुओं की भीतरी परत ' कोरियम ' कहलाती है । कोरियम के ऊपर कोशिकाओं की एक नाजुक परत होती है जिसे ' एपिडर्मिस ' कहा जाता है । इस एपिडर्मिस में कोई रक्त धमनियां नहीं होतीं । दरअसल यह मृत कोशिकाओं से बनी होती है । इन कोशिकाओं से निकली परत ही पोषण प्राप्त करती है तथा जीवित होती है ।
ये कोशिकाएं बहुत व्यस्त होती क्योंकि ये नई कोशिकाएं बनाती हैं । इस एपिडर्मिस अर्थात बाह्य त्वचा का विकास कैसे होता है ? इसका कारण नई कोशिकाएं होती हैं जो इन गहरी परतों द्वारा बनाई जा रही होती है । यह नई कोशिकाएं अन्य कोशिकाओं द्वारा ऊपर की ओर धकेली जाती हैं और इस कारण ये मर जाती हैं क्योंकि उन्हें किसी तरह का पोषण नहीं मिलता ।
परिणामस्वरूप उनमें एक रासायनिक परिवर्तन होता है और ये एक कड़ा पदार्थ बन जाती हैं । हमारी त्वचा प्रतिदिन कई अरब कोशिकाएं बनाती है तथा इसके साथ ही कई अरब कड़ी कोशिकाएं झाड़ भी देती है । जब आप अपना मुंह धोते हैं तो आपकी त्वचा बहुत - सी कड़ी कोशिकाएं झाड़ देती है । ऊपरी परत हट जाती है तथा एक नई परत उसका स्थान ले लेती है ।
इन कड़ी कोशिकाओं की तीन परतें होती हैं और जब एक परत उतर जाती तो नीचे की परतें एक नई परत को ऊपर धकेल देती हैं । हमारी त्वचा में इन कोशिकाओं की परतें कभी कम नहीं होतीं । "
त्वचा के भिन्न-भिन्न रंगों का कारण क्या है ?
रेशमा ने पूछा , “ मैम , हमारी त्वचा के रंग अलग - अलग क्यों होते हैं ? " मैम ने उत्तर दिया , “ हमारी त्वचा के भिन्न रंगों का कारण हमारे शरीर में मौजूद पिगमैंट्स होते हैं । पिगमैंट या रंग वाला पदार्थ , जो शरीर में पाया जाता है तीन किस्म का होता है । इनमें से पहली किस्म को ' मेलानिन ' कहा जाता है ।
यह एक भूरे रंग का पदार्थ है । दूसरी किस्म को ' कैरोटीन ' कहा जाता है जो एक पीला पदार्थ है और तीसरी किस्म हीमोग्लोबिन कहलाती है । यह रक्त की लाल पिगमँट है ।
गर्म क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की त्वचा का रंग गहरा क्यों होता है ?
ऐसा इसलिए क्योंकि सूर्य की रोशनी के कारण त्वचा के ऊतक अधिक मेलानिन उत्पन्न करते हैं जो एक भूरे रंग का पदार्थ है । अब आपका पता चल गया होगा कि क्यो एक ही तरह के लोगों में भिन्न-भिन्न रंगों की त्वचा पाई जाती है ऐसा विश्वभर में लोगों के रंगों के आपसी मिश्रण के कारण होता है।
शरीर में मेलानिन का क्या महत्व है ?
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हमारी त्वचा , बालों और आंखों में एक गहरा भूरा रंजक द्रव्य होता है , जिसे ' मेलानिन ' कहते हैं । अलग - अलग लोगों में यह अलग - अलग मात्रा में होता है जिसमें इसकी मात्रा जितनी ज्यादा हो , उसकी त्वचा और बाल उतने ही काले होंगे । मेलानिन का निर्माण त्वचा की मेलानोसाइट नामक की कोशिकाएं करती हैं ।
मेलानिन का काम है सूर्य की रोशनी में मौजूद अतिरिक्त पराबैंगनी विकिरणों को सोखना तथा उनके झुलसाने वाले असर से त्वचा की रक्षा करना । धूप मेलानोसाइट कोशिकाओं को मेलानिन उत्पन्न करने के लिए प्रेरित करती है । इसीलिए धूप में ज्यादा वक्त रहने पर त्वचा सांवली हो जाती है और गर्म देशों में रहने वाले लोग ठंडे देशों के निवासियों के मुकाबले ज्यादा सांवले होते हैं ।
अगर शरीर किसी कारण मेलानिन न पैदा कर सके तो वह मनुष्य आल्बिनो ( धवल ) रह जाएगा । आल्बिनोपन आंशिक भी हो सकता है , संपूर्ण भी । संपूर्ण आल्बिनोपन में शरीर का रंग हल्का गुलाबी , बालों का रंग सफेद या सुनहरी होता है और आंखों की पुतलियां रंगहीन होती हैं , पर आंखें गुलाबी दिखती हैं , क्योंकि पारदर्शक पुतली और पर्दे ( रैटीना ) के पीछे की रक्तवाहिनियों में बहता रक्त उनमें झलक उठता है ।
आल्बिनो लोगों की आंखें तेज रोशनी के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील होती हैं ।
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