लोगों ने अपने कान कब छिदवाने शुरू किए ?
लोगों ने कानों में बालियां पहनने के लिए पूर्व ऐतिहासिक काल में कान बिंधवाने प्रारंभ कर दिए थे । प्राचीन फारसी , भारतीय , मिस्री, अरबी ये सभी लोग कानों में कुछ न कुछ पहनते थे ।
यूनानी लोग अपने देवताओं की प्रतिमाओं के लिए सोने के खूबसूरत ' इयररिंग्स ' बनाते थे और जब तक लड़के किशोरावस्था में नहीं पहुंच जाते थे , कानों में कुछ न कुछ पहनते थे । रोमन भी ' इयररिंग्स ' पहनते थे । वे तो अपने ' इयररिंग्स ' में मोती तथा हीरे भी जड़ते थे ।
पुरुष भी कानों में कुछ न कुछ पहनने के शौकीन थे , इसलिए उन सबने भी अपने कान बिंधवाने प्रारंभ कर दिए । ऐसा कहा जाता है कि तीसरी शताब्दी में रोमन सम्राट ने एक आदेश जारी करके पुरुषों के कान बिंधवाने पर प्रतिबंध लगा दिया ।
मध्यकाल के बाद पुरुषों ने केवल बाएं कान में बालियां पहननी शुरू कर दीं । जब बालों का स्टाइल बदला तथा बाल कानों के ऊपर रखे जाने लगे तो ' इयररिंग्स ' स्टाइल से बाहर हो गए लेकिन 15 वीं तथा 16 वीं शताब्दियों में ' इयररिंग्स ' फिर वापस आ गए ।
भारत में यह हमेशा से ही रहे तथा कभी भी फैशन से बाहर नहीं हुए । राजा तथा रानियां दोनों ही कानों में बालियां पहनते थे । आजकल अधिकतर महिलाएं ही कानों में कई तरह के आभूषण पहनती हैं तथा कानों को बिधवाती हैं हालांकि अब पुरुषों में भी यह रुझान फिर से पैदा होने लगा है ।
पुरुषों ने दाढ़ी बनानी कब शुरू की ?
पूर्व ऐतिहासिक काल के पुरुष अपनी दाढ़ी तथा बालों को बढ़ने देते थे । उन्होंने कब दाढ़ी बनाना तथा बाल कटवाना शुरू किया ?
शेविंग अर्थात दाढ़ी बनाने का काम धार्मिक रीति - रिवाजों के एक भाग के रूप में प्रारंभ हुआ था । किसी समय उन्हें अवश्य यह अहसास हुआ । होगा कि लम्बे बाल तथा दाढी काफी असहज हैं क्योंकि उनमें काफी धूल तथा गंदगी फंस जाती थी ।
धर्म सफाई के साथ भी सम्बद्ध था । इस तरह दाढ़ी बनाना एक धार्मिक रिवाज बन गया । प्राचीन भारतीय तथा मिस्त्री लोग धार्मिक कारणों से अपने चेहरे शेव करते थे । दूसरी ओर प्राचीन यहूदियों को धार्मिक कारणों से पूरी दाढ़ी रखनी पड़ती थी ।
यूनानियों के लिए सिकंदर महान दाढ़ी बनाने की शुरूआत करवाई क्योंकि उसके सैनिकों को युद्ध के मैदान में आमतौर पर दाढ़ी से पकड़ लिया ने जाता था । प्रारंभिक रोमन 300 ईसा पूर्व तक नाइयों के अस्तित्व में आने से पहले तक दाढ़ी बनाते थे ।
रोमन शोक की अवधि के दौरान अपनी दाढ़ी को बढ़ने देते थे जबकि - यूनानी शोककाल के दौरान अपनी दाढ़ी काट देते थे। "
प्रारंभिक हज्जाम कौन थे ?
आज हर गली की नुक्कड़ पर हमें हज्जाम की कोई न कोई दुकान मिल जाती है , लेकिन सबसे पहले यह काम किन लोगों ने शुरू किया था ? यह बताना कठिन है कि प्रारंभिक हज्जाम कौन थे । भारत में हज्जाम विभिन्न घरो में जाते थे तथा लोगों के बाल एवं दाढ़ी काटा करते थे ।
उनकी पत्नियां महिलाओं के कानों में छेद निकालती थीं , अधिकतर अमीर घरों में इतिहास में हज्जाम के पहले रिकार्ड प्राचीन मिस्र तक जाते है । रोम में प्राचीन यूनान तथा हज्जाम की दुकानें एक लोकप्रिय स्थल होती थीं जहां पुरुष विभिन्न मुद्दों पर विचार - विमर्श करते थे ।
प्राचीन काल के हज्जामों के बारे में एक अन्य रोचक तथ्य यह है कि वे शल्य चिकित्सा भी करते थे । वे जख्मों का उपचार करते थे और यहां तक कि दांत भी निकाल देते थे । इंगलैंड में , राजा ने लगभग 1540 ईस्वी में हज्जामों के शल्य चिकित्सा करने पर प्रतिबंध लगा दिया । धीरे - धीरे हज्जामों का काम शल्य चिकित्सकों से अलग हो गया ।
शब्द ' बार्बर ' लातीनी भाषा के शब्द ' बार्बा ' से आया है जिसका अर्थ है ' बियर्ड ' अर्थात दाढ़ी । उन दिनों हो सकता है कि दाढ़ी की छंटनी करवाना सिर के बालों को काटने से अधिक महत्वपूर्ण हो ।
पुरातन काल में किस तरह के दर्पण इस्तेमाल होते थे ?
धीरे - धीरे उन्हें अहसास हो गया कि समतल सतह रोशनी को परावर्तित करती है तथा एक छवि बनाती है । सतह को बहुत चिकनी होना चाहिए । और तब से लोगों ने चिकनी सतह बनाने के लिए बहुत-से तरीकों को इस्तेमाल किया ।
प्राचीन काल में दर्पण में पालिश की गई धातुओं से बनाए जाते थे । वे पीतल , तांबा , चांदी या सोने जैसी धातुओं के गोलाकार टुकड़े होते थे । वेनीयिन पहले ऐसे लोग थे जिन्होंने शीशे के दर्पण बनाना शुरू किया जिनके पीछे पारा तथा जस्ता लगाया जाता था ।
ईस्वी सन 1300 में उन्होंने ऐसे दर्पण बनाने शुरू किए तथा शीघ्र ही शीशे के बने दर्पणों ने धातु के दर्पणों का स्थान ले लिया । "
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