माऊँट फूजी
माऊँट फूजी जापानी आर्ट पेंटिंग में इस्तेमाल किए जाने वाला एक खूबसूरत सा पहाड़ है। जापान की कलाकृति और संस्कृति में इसका स्थान बहुत ऊपर है।
इसे बहुत सम्मान और धार्मिक आस्था की नजर से देखा जाता है। जापान की पेंटिंग में पहाड़ को अलग-अलग कलाकृतियों और अलग-अलग रंगो के माध्यम से दिखाया जाता है।
मुख्यतः हल्की फुल्की ' वाटर कलर ' पेंटिंग्स में कुछ ऊपर की ओर जाती तिरछी रेखाएं खींची जाती हैं , चपटे ब्रश से कुछ हल्के स्ट्रोक और नीचे की ओर आती रेखा और सामने उभर आती है इसकी विस्मयकारी तथा सम्माननीय ' आकृति माऊंट फूजी की संतुलित खूबसूरती तथा इसकी 12 , 389 फुट की ऊंचाई जिससे ऊंचा जापान में कुछ भी नहीं है,
ने ' फूजीसान ' या ' फुजियामा ' को जापान का एक प्रतीक चिन्ह तथा श्रद्धा की वस्तु बना दिया है । यद्यपि माऊंट फूजी की चोटी बर्फ से ढंकी है , यह एक ज्वालामुखी है जो समय - समय पर फूटता रहता है । मुख्य कटोरानुमा गड्ढा 500-650 फुट गहरा है जिसका व्यास लगभग 2000 फुट है ।
ज्वालामुखी के घेरे के आस - पास 200 फुट से अधिक व्यास वाले छोटे - क्रेटर्स भी हैं । 1707-1708 में जब अंतिम बार माऊंट फूजी में विस्फोट हुआ था , 56 मील दूर एडो शहर पर राख की साढ़े 4 इंच मोटी परत जम गई थी । वही शहर आज टोक्यो के नाम से जाना जाता है ।
यह ज्वालामुखी पेंटिंग्स से कहीं अधिक प्रेरणादायक है । यह पर्वत जापानी कवियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण विचार है । इसकी रूपरेखा को गीतों में सराहा गया है , जैसे कि इसकी चोटी जो आमतौर पर बादलों से ढंकी रहती है । कवि चोटी से नीचे एक जादुई दृश्यावली की बात कहते हैं
जिसमें आदिकालीन जंगल तथा पांच झीलें शामिल हैं जिनमें पर्वत की छवि दिखाई देती है । इसकी इस छवि को निरंतर बढ़ती मानव बस्तियों के कारण खतरा उत्पन्न हुआ परंतु अब इसे फूजी - हाकोनेल्सू नैशनल पार्क के रूप में संरक्षित कर दिया गया है । ठीक वैसे ही जैसे रोमनों के लिए माऊंट ओलिम्पस था ,
ऐतिहासिक रूप में माऊंट फूजी को दिव्यता प्राप्त है । क्या देवताओं को इस विशाल ' सिंहासन ' से अधिक अच्छा स्थान मिल सकता था ? जापान के सबसे महत्वपूर्ण धर्म ' शिंतोवाद ' में भी इस पर्वत को बहुत श्रद्धेय स्थान प्राप्त है जो उनमें उनके पूर्वजों तथा प्रकृति दोनों के लिए सम्मान उत्पन्न करता है ।
सफेद दस्ताने तथा सरकंडों की बनी जूतियां पहन कर इस पर्वत पर तीर्थयात्रा के रूप में चढ़ाई करने की परम्परा बहुत पुरानी है । जापानी बौद्ध भी फुजिसान के प्रति श्रद्धा रखते हैं । तेरहवीं शताब्दी में बौद्ध समुराई तथा गुरु निचिरेन ने अपने विश्वासपात्रों को बुला कर माऊंट फूजी के आधार स्थल में सच्चे बौद्ध धर्म के लिए शरणस्थल बनाने के लिए कहा ।
सोका गाक्के नामक संस्था ने उनके इस आह्वान पर 1960 में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए शो - होण्डो मंदिरों का निर्माण करवाया । उनके आधुनिक कंक्रीट भवन , जिनके बारे में कहा जाता है कि विश्व में ये सबसे विशाल बौद्ध मंदिर हैं , मंदिरों के शहर ताईसेकिजी में स्थित हैं जहां से पवित्र पर्वत का नजारा स्पष्ट देखा जा सकता है ।
गाते - बजाते शिंतो तीर्थयात्री तथा अन्य श्रद्धानत यात्री जो इस पर्वत की तीखी ढलानों पर चढ़ाई करते हैं , अब कम गिनती में आ गए हैं क्योंकि जीवन में कम से कम एक बार इस पर्वत पर चढ़ाई करना जापान में एक लोकप्रिय ' पासटाइम ' बन गया है और बहुत से लोग इस पर कई बार चढ़ाई करते हैं ।
गर्मियों के कुछ सप्ताहांतों पर तो आप पूरे के पूरे । परिवार को बच्चों सहित पर्वत पर चढ़ाई करते देख सकते हैं और ऊपर आपको लगभग 30,000 लोग पिकनिक की टोकरियों के साथ डेरा डाले दिखाई दे जाएंगे । इस पर्वत पर प्रतिवर्ष चढ़ने वाले श्रद्धालुओं की संख्या अनुमानतः पांच लाख है ।
शिंतो तीर्थयात्रियों के विपरीत , जो इस 12,389 फुट ऊंचे पर्वत पर इसके आधार स्थल पर चढ़ाई करते हैं , अधिकतर लोग आसान माध्यमों से इसके ऊपर तक पहुंचते हैं । बसें ' लोगों को 7,545 फुट की ऊंचाई पर बने एक पार्किंग स्थल तक ले जाती हैं जहां से चोटी तक मात्र 5-7 घंटों में चल कर पहुंचा जा सकता है ।
भारत में जहां भगवान शिव के कैलाश पर्वत को श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक समझा जाता है । जहां तीर्थयात्री लाखों की संख्या में दर्शन करने जाते हैं । उसी प्रकार जापान में माउंट फूजी को श्रद्धा और सम्मान के रूप में देखा जाता है । जापान में भी तीर्थ यात्रा करने के लिए इस पर चढ़ाई करने की पुरानी परंपरा है । इसे जापान का कैलाश पर्वत भी कहा जा सकता है।
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