हवाई के ज्वालामुखी
आकाश से देखने पर हवाईयन द्वीपों के लगभग 1500 मील लंबी श्रंखला प्रशांत महासागर के अथाह नीले पानी में एक लंबे घाव की तरह दिखाई देती है जो अभी भी बीच में से ऐसे दिखाई देते हैं जैसे उनमें से रक्त रिस रहा हो।
जब आप जरा नीचे आते हैं तब आपको आभास होता है कि प्रमुख रंग हरा है जिसमें लाल जिसमें लावा कार काला रंग मिला हुआ है। यहां रखते हुए ज्वालामुखीय गड्ढे, बहता हुआ लावा तथा बर्फ से ढंके पर्वतों की चोटियां है।
इस आर्किपेलागो के 8 बड़े तथा 26 छोटे द्वीपों की दृश्यावली में गगनचुंबी चोटियां इनसे टकराते महासागर के फेन तथा दूर-दूर तक फैले शानदार रेतीले तट शामिल है जो लगभग तीन करोड़ वर्ष पूर्व उस समय बने जब पृथ्वी के गर्भ से पिघले हुए पत्थर ने सागर की सतह से अपना रास्ता बनाया।
हवाई के द्वीप उन ज्वालामुखीयों की चोटियां है जो पानी के नीचे बहुत गहरे तक फैले हुए हैं। हवाई के मुख्य द्वीप में रहने वाले लोगों के कारण इस श्रंखला को यह नाम मिला है। इस बात पर गर्व है कि विशाल ज्वालामुखी 'मौना' कि दरअसल विश्व का सबसे लंबा पर्वत है
जिसकी लंबाई इसके आधार से चोटी तक 32,000 फुट है और अधिकतर पर्वत लगभग 18,000 फुट के हैं जो पानी के भीतर छुपे हुए हैं। जिन शक्तियों ने बस बसाल्ट की इन विशाल चट्टानों का निर्माण किया, वह समझ से परे की बात है। 'मौना की' में अंतिम बार लावा लगभग डेढ़ करोड़ वर्ष पूर्व फूटा था।
ज्वालामुखी विज्ञानिको के अनुसार अब वह ज्वालामुखी निष्क्रिय हैं। प्रसुप्त ज्वालामुखी की बर्फ से ढकी चोटी पर अमेरिका ने अन्य बहुत सारे देशों के सहयोग से 'मौना' की वेधशाला की स्थापना है। यहां अन्य कई वेधशाला में भी है क्योंकि जल तत्व से 97 प्रतिशत मुक्त होने के कारण अंतरिक्ष में देखने के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त स्थान है।
इन द्वीपों पर बहुत से छोटे ज्वालामुखी अभी भी सक्रिय है। मुख्य द्वीप पर केवल किलौए ज्वालामुखी ही गत दशकों के दौरान 15 से भी अधिक बार फटा है। इसका गड्ढा 'मौना' की एक ओर 3,646 फुट ऊंचा है और यह तीन मील से भी अधिक चौड़ा है।
इन गड्ढों के ऊपर चलना इन द्वीपों का विशेष आकर्षक है। यद्यपि गहरी धुंध निरंतर दृश्यव्यता को बाधित कर सकती है तथा पर्यटक अचानक अपने को किसी ज्वालामुखी गड्ढे के सुलगते मुंह में झांकता हुआ पाते हैं। वैसे इस तरह की क्रिया कलाप आम तौर पर सुरक्षित ही माने जाते हैं क्योंकि फूटने से पूर्व ज्वालामुखी चेतावनी अवश्य देता है।
किलौए के किनारे पर स्थित एक विशेष वेधशाला के माध्यम से ज्वालामुखीय गतिविधियों का बड़ी बारीकी से अध्ययन किया जाता है। यह केंद्र एक विशाल क्षेत्र में धरती के भीतर होने वाली हलचलों का रिकार्ड रखता है जिसके आधार पर भविष्यवाणियां की जाती हैं।
यहां तक कि ऐसा ज्वालामुखी जिसे समुद्र की सतह से बाहर नहीं देखा जा सकता, उस पर भी निरंतर निगाह रखी जाती है। बिल्कुल दक्षिण में स्थित द्वीपों के समूह में स्थित लोईही समुद्र की सतह से लगभग 3,100 फुट नीचे परंतु इससे भविष्य में इनके एक बड़ा खतरा बनने की आशंका में कोई कमी नहीं आती।
पहले-पहल इन द्वीपों पर आकर बसने वाले लोग पोलिनेशियाई आए थे जो हवाई में लगभग 700 ईसवी में पहुंचे और यहां की ज्वालामुखी मिट्टी तथा घने उष्णकटिबंधीय जंगलों को रहने के लिए एक अच्छे स्थान के रूप में पाया।
आज कल आतिशी आर्किपेलागो तथा अधिकतर बर्फ से ढकी 4000 चोटिया मुख्यतः वल्कैनाॅलो गिफ्ट्स, अंतरिक्ष विज्ञानियों तथा पर्यटकों की टुकड़ियों को आकर्षित करती है।
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